वो आवाज जो दिल को आज भी छू जाती है: मन्ना डे

जिंदगी कैसी है पहेली हाय, कभी ये हंसाए कभी ये रुलाए…

मन्ना डे…एक ऐसा गायक जिसके गीतों ने कम से कम दो पीढिय़ों को अपना दीवाना बनाया और आज भी जब उनके गीत कानों में सुनाई पड़ते हैं तो लगता है कि कोई पुकार रहा है। उनकी आवाज दिल की गहराई में उतर गई है। फिल्म आनंद में उनका गाया गीत जिंदगी कैसी है पहेली हाय, कभी ये हंसाए कभी ये रुलाए…, वाकई उनकी जिंदगी के अंतिम मोड़ पर जेहन में याद आना स्वाभाविक है। मन्ना डे हमारे बीच कब तक रहेंगे, ये तो सांसों की डोर देने वाला ही जानता है लेकिन हिंदुस्तानी संगीत में उन्होंने जो प्रतिमान स्थापित किए हैं, शायद ही वह जगह कभी भर पाए। शास्त्रीय संगीत से लेकर रोमांटिक गीत तक में मन्ना दा की आवाज का जादू गीत को अमर बनाने के लिए काफी है।
बेंगलुरु के नारायण हरुदयाल्या अस्पताल के आईसीयू में 94 बरस का यह गायक जिंदगी और मौत से संघर्ष कर रहा है। काया जर्जर हो गई है, शरीर थक गया है लेकिन जिंदगी जीने की अंतिम लड़ाई अभी भी जारी है। कोलकाता के इस इंसान ने अपनी जिंदगी के 50 बरस दौड़ती-भागती मुंबई में बिताए और फिर शहर के कोलाहल से दूर बेंगलुरु में अपने जीवन की सांध्य को शांति के साथ बिताने का फैसला लिया। 1 मई 2013 को मन्ना दा ने अपना 94वां जन्मदिन मनाया था और उन्हें बधाई देने के लिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उनके निवास पर पहुंचीं थीं।
मन्ना डे पूरा नाम प्रबोध चन्द्र डे (जन्म 1 मई, 1920 कोलकाता) भारतीय सिनेमा जगत में हिन्दी एवं बांग्ला फिल्मों के सुप्रसिद्ध पार्श्व गायक हैं। 1950 से 1970 के दशकों में इनकी प्रसिद्धि चरम पर थी। इनके गाए गीतों की संख्या 34ब से भी अधिक है। इन्हें 2007 के प्रतिष्ठित दादा साहब फाल्के पुरस्कार के लिए चुना गया है। भारत सरकार ने इन्हें सन 2005 में कला के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया था। इन्होंने अपने जीवन के 50 साल मुंबई में बिताये।

जीवन परिचय

प्रबोध चन्द्र डे उर्फ मन्ना डे का जन्म एक मई 1920 को कोलकाता में हुआ। मन्ना डे के पिता उन्हें वकील बनाना चाहते थे, लेकिन मन्ना डे का रुझान संगीत की ओर था। वह इसी क्षेत्र में अपना कॅरियर बनाना चाहते थे। उस्ताद अब्दुल रहमान खान और उस्ताद अमन अली खान से उन्होंने शास्त्रीय संगीत सीखा। मन्ना डे ने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा अपने चाचा के सी डे से हासिल की।

बचपन

मन्ना डे के बचपन के दिनों का एक दिलचस्प वाकया है। उस्ताद बादल खान और मन्ना डे के चाचा एक बार साथ-साथ रियाज कर रहे थे। तभी बादल खान ने मन्ना डे की आवाज़ सुनी और उनके चाचा से पूछा, यह कौन गा रहा है। जब मन्ना डे को बुलाया गया तो उन्होंने कहा कि बस, ऐसे ही गा लेता हूं। लेकिन बादल खान ने मन्ना डे में छिपी प्रतिभा को पहचान लिया। इसके बाद वह अपने चाचा से संगीत की शिक्षा लेने लगे।

शिक्षा

मन्ना डे ने अपने बचपन की पढ़ाई एक छोटे से स्कूल इंदु बाबुर पाठशाला से की। स्कॉटिश चर्च कॉलिजियेट स्कूल व स्कॉटिश चर्च कॉलेज से पढ़ाई करने के बाद उन्होंने कोलकाता के विद्यासागर कॉलेज से स्नातक की शिक्षा पूरी की।

मन्ना डे

अपने स्कॉटिश चर्च कॉलेज के दिनों में उनकी गायकी की प्रतिभा लोगों के सामने आयी। तब वे अपने साथ के विद्यार्थियों को गाकर सुनाया करते थे और उनका मनोरंजन किया करते थे। यही वो समय था जब उन्होंने तीन साल तक लगातार ‘अंतर-महाविद्यालय गायन-प्रतियोगिताओं में प्रथम स्थान पाया।

कुश्ती

बचपन से ही मन्ना को कुश्ती, मुक्केबाजी और फुटबॉल का शौक़ रहा और उन्होंने इन सभी खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया। उनका काफ़ी हँसमुख छवि वाला व्यक्तित्व रहा है और अपने दोस्तों व साथियों के साथ मजाक करते रहते हैं।

परिवार

संगीत ने ही मन्ना डे को अपनी जीवनसाथी सुलोचना कुमारन से मिलवाया था। 18 दिसम्बर 1953 को मन्ना डे ने केरल की सुलोचना कुमारन से विवाह किया। इनकी दो बेटियाँ हुईं। सुरोमा का जन्म 19 अक्टूबर 1956 और सुमिता का 20 जून 1958 को हुआ। दोनों बेटियां सुरोमा और सुमिता गायन के क्षेत्र में नहीं आईं। एक बेटी अमरीका में बसी है।

संगीत निर्देशन

पहले वे के.सी डे के साथ थे फिर बाद में सचिन देव बर्मन के सहायक बने। बाद में उन्होंने और भी कईं संगीत निर्देशकों के साथ काम किया और फिर अकेले ही संगीत निर्देशन करने लगे। कईं फिल्मों में संगीत निर्देशन का काम अकेले करते हुए भी मन्ना डे ने उस्ताद अमान अली और उस्ताद अब्दुल रहमान खान से हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेना जारी रखा।

गायन का प्रारम्भ

मन्ना डे 1940 के दशक में अपने चाचा के साथ संगीत के क्षेत्र में अपने सपनों को साकार करने के लिए मुंबई आ गए। वर्ष 1943 में फिल्म तमन्ना में बतौर पार्श्व गायक उन्हें सुरैया के साथ गाने का मौका मिला। हालांकि इससे पहले वह फिल्म रामराज्य में कोरस के रूप में गा चुके थे। दिलचस्प बात है कि यही एक एकमात्र फिल्म थी जिसे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने देखा था। मन्ना डे की प्रतिभा को पहचानने वालों में संगीतकार शंकर जयकिशन का नाम ख़ास तौर पर उल्लेखनीय है। इस जोडी़ ने मन्ना डे से अलग-अलग शैली में गीत गवाए। उन्होंने मन्ना डे से आजा सनम मधुर चांदनी में हम… जैसे रुमानी गीत और केतकी गुलाब जूही… जैसे शास्त्रीय राग पर आधारित गीत भी गवाए। दिलचस्प बात है कि शुरुआत में मन्ना डे ने यह गीत गाने से मना कर दिया था।

पहला गाना

मन्ना डे ने 1943 की तमन्ना से पार्श्व गायन के क्षेत्र में कदम रखा। मन्ना डे को अपने कॅरियर के शुरुआती दौर में अधिक प्रसिद्धी नहीं मिली। इसकी मुख्य वजह यह रही कि उनकी सधी हुई आवाज किसी गायक पर फिट नहीं बैठती थी। यही कारण है कि एक जमाने में वह हास्य अभिनेता महमूद और चरित्र अभिनेता प्राण के लिए गीत गाने को मजबूर थे। प्राण के लिए उन्होंने फिल्म उपकार में कस्मे वादे प्यार वफा… और जंजीर में यारी है ईमान मेरा यार मेरी जिंदगी… जैसे गीत गाए। उसी दौर में उन्होंने फिल्म पडो़सन में हास्य अभिनेता महमूद के लिए एक चतुर नार… गीत गाया तो उन्हें महमूद की आवाज समझा जाने लगा। आमतौर पर पहले माना जाता था कि मन्ना डे केवल शास्त्रीय गीत ही गा सकते हैं, लेकिन बाद में उन्होंने ऐ मेरे प्यारे वतन…, ओ मेरी जोहरा जबीं…, ये रात भीगी भीगी…, ना तो कारवां की तलाश है… और ए भाई जरा देख के चलो… जैसे गीत गाकर आलोचकों का मुंह सदा के लिए बंद कर दिया।
हिंदी के अलावा बांग्ला और मराठी गीत भी गाए हैं। मन्ना ने अंतिम फिल्मी गीत प्रहार फि़ल्म के लिए गाया था। मन्ना दा ने हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला को भी अपनी आवाज़ दी है जो काफ़ी लोकप्रिय है। अब बढ़ती उम्र की वजह मन्ना डे उतने सक्रिय तो नहीं है, लेकिन उनकी आवाज का जादू बरकरार है।

प्रसिद्ध गीत

ये रात भीगी-भीगी (श्री 420)
कस्मे वादे प्यार वफा सब (उपकार)
लागा चुनरी में दाग़ (दिल ही तो है)
जि़ंदगी कैसी है पहली हाय (आनंद)
प्यार हुआ इकरार हुआ (श्री 420)
ऐ मेरी जोहरां जबी (वक्त)
ऐ मेरे प्यारे वतन (काबुलीवाला)
पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई (मेरी सूरत तेरी आँखें)
इक चतुर नार करके सिंगार (पड़ोसन)
तू प्यार का सागर है (सीमा)।

रफी और किशोर कुमार के साथ मन्ना डे

कुछ लोगों को प्रतिभाशाली होने के बावजूद वो मान-सम्मान या श्रेय नहीं मिलता, जिसके कि वे हकदार होते हैं। हिंदी फिल्म संगीत में इस दृष्टि से देखा जाए तो मन्ना डे का नाम सबसे पहले आता है। मन्ना ने जिस दौर में गीत गाए, उस दौर में हर संगीतकार का कोई न कोई प्रिय गायक था, जो फिल्म के अधिकांश गीत उससे गवाता था। मन्ना डे की प्रतिभा के सभी कायल थे, लेकिन सहायक हीरो, कॉमेडियन, भिखारी, साधु पर कोई गीत फिल्माना हो तो मन्ना डे को याद किया जाता था। मन्ना डे ठहरे सीधे-सरल आदमी, जो गाना मिलता उसे गा देते। ये उनकी प्रतिभा का कमाल है कि उन गीतों को भी लोकप्रियता मिली।
मन्ना डे ने अपने पांच दशक के कॅरियर में लगभग 35०० गीत गाए। भारत सरकार ने मन्ना डे को संगीत के क्षेत्र में बेहतरीन योगदान के लिए पद्म भूषण और पद्मश्री सम्मान से नवाजा। इसके अलावा 1969 में मेरे हज़ूर और 1971 में बांग्ला फिल्म निशि पद्मा के लिए सर्वश्रेष्ठ गायक का राष्ट्रीय पुरस्कार भी उन्हें दिया गया। उन्हें मध्यप्रदेश, केरल, महाराष्ट्र, उड़ीसा और बांग्लादेश की सरकारों ने भी विभिन्न पुरस्कारों से नवाजा है। मन्ना डे के संगीत के सुरीले सफर में एक नया अध्याय तब जुड़ गया जब फिल्मों में उनके उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए उन्हें फिल्मों के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

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