सेब बागीचों में कांट-छांट करने का आजकल उपयुक्त समय, रखें इन बातों का भी ख्याल;- जानकारी दे रहे हैं बागवानी विशेषज्ञ एस.पी. भारद्वाज

इस वर्ष व्यापक हिमपात व वर्षाजल की प्राप्ति बागवानों के लिए सभी दृष्टिकोणों से लाभप्रद
चिलिंग हार्वस की आवश्यक पूर्ति

बहुत वर्षों के अन्तराल के पश्चात इस वर्ष जनवरी मास व फरवरी के प्रथम पखवाड़े के मध्य पूरे प्रदेश में व्यापक हिमपात व वर्षाजल की प्राप्ति हुई है जो सभी दृष्टिकोणों से लाभप्रद है। जनवरी माह में दिनमान लगभग दस घंटे के आस-पास रहता है जो फरवरी माह में लगभग एक घंटा बढक़र 11 घंटे तक हो जाता है।
दिनमान कम होने पर सूर्य का प्रकाश पृथ्वी पर कम समय तक उपलब्ध होता है और फरस्वरूप हिमपात लम्बे समय तक पिघलता नहीं है जिसका सीधा लाभ शीतोष्ण (सेब, नाशपाती), अखरोट, प्रीकन तथा गुटलीदार फलों(खुमानी, आडू, प्लम, बादाम, स्वीट चैरी) इत्यादि को चिलिंग हार्वस की आवश्यक पूर्ति हेतु प्राप्त होता है।
इसके अतिरिक्त हिमपात देरी से पिघलने के कारण भूमि में नमी लम्बे समय तक प्राप्त होती है जिससे आवश्यक पोषक तत्वों की आपूर्ति यथासमय हो पाती है तथा फूल खिलने की प्रक्रिया लम्बी अवधि तक चलती है तथा अच्छी फल की प्राप्ति की संभावना भी प्रबल हो जाती है।

कांट-छांट इस प्रकार करें कि पौधे के भीतरी भाग में पहुंच सके सूर्य का प्रकाश

सेब बागीचों में कांट-छांट करने का आजकल उपयुक्त समय है, इस कार्य को समझदारी व आवश्यकता के अनुरूप करें। यदि पौधों में विकास 30-45 सें.मी. तक हुआ है तो बाहरी टहनियों को एक तिहाई तक काट सकते हैं और यदि यह विकास 15-20 सें.मी. तक ही हो पाया है तो एक तिहाई से आधे भाग तक बाहरी टहनियों को काटकर उनसे व्यापक पत्तियों की उपलब्धता को सुनिश्चित किया जा सकता है।

बागवानी विशेषज्ञ डॉ. एस.पी. भारद्वाज

बागवानी विशेषज्ञ डॉ. एस.पी. भारद्वाज

प्रत्येक पौधे के आधे बीमों में से ही फल उत्पादन प्राप्त करना चाहिए

यदि सेब बागीचों में बीमे कमजोर व कम ही विकसित हो पाए हों तो बाहरी टहनियों की कमजोर शाखा को रखें और ताकतवर टहनी को हटा दें। ऐसा करने पर अगले वर्ष बीमों का विकास सुनिश्चित हो पाएगा। कांट-छांट इस प्रकार करें कि पौधे के भीतरी भाग में सूर्य का प्रकाश आसानी से पहुंच सके। आपस में उलझती टहनियों व आसमान की ओर या भूमि की ओर जा रही टहनियों को सम्पूर्णत: हटा दें। प्रत्येक पौधे की कांट-छांट पौधों में लगे बीमों, उनका स्वास्थ्य तथा सघनता पर निर्भर करता है। यह सर्वविदित है कि यदि बीमों की संख्या अधिक होगी तो फल भी अधिक लगेगा और इन फलों की गुणवत्ता भी प्रभावित होगी। इसलिए प्रत्येक पौधे के आधे बीमों में से ही फल उत्पादन प्राप्त करना चाहिए और शेष बीमों से अगले वर्ष फल की प्राप्ति गुणवत्ता के साथ मिलेगी, इन फलों को मंडियों में दाम भी सामान्य से अधिक मिलने की संभावना होती है।

ध्यान रखें कि एक बीमे में न हो अधिक फल

जब बीमों पर फल लग जाए तो यह ध्यान रखें कि अधिक फल एक बीमे में न हो, इसके लिए इनका विरलन करना भी आवश्यक हो जाता है। एक बीमे पर 2 फल रखने पर लार्ज, 3 फल रखने पर मिडियम, 4 फल होने पर एक्स्ट्रा स्मॉल तथा 5 फल होने पर पितु से सेपरेटर श्रेणी के फलों की प्राप्ति होती है। अत: फल केवल लार्ज से स्मॉल श्रेणी तक ही उत्पादित करने पर आय अधिक होती है और प्रत्येक वर्ष फल लगने की संभावना भी बढ़ जाती है।

कांट-छांट के उपरान्त ध्यान से करें भूमि पर गिरी टहनियों का अवलोकन
एक भी टहनी पर माईट के अण्डे दिखाई देने पर रैड माईट का प्रबन्धन आवश्यक

कांट-छांट के उपरान्त भूमि पर गिरी टहनियों का अवलोकन ध्यान से करें और यह देखें कि इनमें यूरोपियन रैड माईट के लाल रंग के अण्डे हैं या नहीं, यह अण्डे बीमों के आस-पास, पत्ती कक्ष या फिर टहनियों के खुरदरे भाग पर ही अधिक संख्या में होते हैं। यदि दस टहनियों में से एक टहनी पर भी माईट के अण्डे दिखाई दें तो ऐसे पौधों व बागीचों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है और ऐसी स्थिति में रैड माईट का प्रबन्धन आवश्यक हो जाता है। इन्हीं टहनियों को सैजोज़ स्केल या व्हाईट स्केल के आक्रमण के लिए भी अवश्य देखें, सैजोज़ स्केल काले से सलेटी रंग के तथा व्हाईट स्केल सफेद रंग के आसानी से दिख जाते हैं।
इन कीटों का प्रकोप होने पर मार्च में जब पौधों में हरी कली अवस्था से टाईट कलस्टर अवस्था हो, तो स्वीकृत एच.एम.ओ में से किसी एक का चयन करके 4 लिटर 196 लिटर पानी में घोलकर पौधों पर सम्पूर्ण ढंग से छिडक़ाव करें।बीमों की कांट-छांट उन पौधों में अवश्य करें जो 15वर्ष आयु से अधिक हो

बर्फ पिघलने के एक सप्ताह बाद मिट्टी भुरभुरी हो जाए, तब करें गोबर की गली सड़ी खाद तथा सुपर फास्फेट का प्रयोग

इस छिडक़ाव से पूर्व जब कांट-छांट पूर्ण हो जाए तो बोर्डो मिक्चर जिसमें 2 किलो नीला थोथा तथा 2 किलो साधारण चूने को घोलकर 200 लिटर पानी में मिलाकर सभी पौधों पर छिडक़ाव करें। इससे कैंकर, वूली एफिड तथा अन्य रोगों का सफल नियन्त्रण होता है। जिन बागीचों में गोबर की गली सड़ी खाद तथा सुपर फास्फेट अभी तक प्रयोग नहीं किया गया है, उनमें बर्फ पिघलने के एक सप्ताह बाद जब तौलिए की ऊपरी सतह की मिट्टी कुछ भुरभुरी हो जाए तब करें। फलदार पौधों में 2 किलो सुपर फास्फेट तथा 40-50 किलो गली सड़ी गोबर की खाद या फिर 10 किलो केंचुआ खाद का प्रयोग करें। खाद को केवल तौलिए के बाहरी क्षेत्र में जो तने से कम से कम 1 मीटर की दूरी पर हो, में डालें और फिर मिट्टी की हल्की परत से इसे ढक दें। खाद व उर्वरक को कभी भी खुला न रखें।

पेड़ों में बने तौलिए को रखें समतल

पहाड़ी क्षेत्र में प्राकृतिक ढलान होने के कारण पेड़ों में बने तौलिए को समतल रखने का प्रयत्न करें, ढलानदार तौलिए में खाद पौधों को पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं हो पाती, समतल तौलिए में खाद व उर्वरक की उपलब्धता पौधों में अधिक होती है और मिट्टी क्षरण भी नहीं हो पाता।

किसी भी कीटनाशक, फफूंदनाशक तथा पोषक तत्व को अपनी मर्जी से न मिलाएं

बागवानी विश्वविद्यालय द्वारा स्वीकृत कीटनाशकों, फफूंदनाशकों, पोषक तत्वों व अन्य रसायनों का प्रयोग, सही मात्रा व सही समय पर करें। किसी भी कीटनाशक, फफूंदनाशक तथा पोषक तत्व को अपनी मर्जी से न मिलाएं। यदि किन्हीं दो को मिलाना ही आवश्यक है तो विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की सलाह लेकर ही कार्य करें। अन्यथा लाभ के बजाए हानि होने की संभावना अधिक रहती है। किसी भी रसायन का अनावश्यक छिडक़ाव न करें।

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