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कुल्लू जिला हिमाचल प्रदेश में अनार का सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्र
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अनार के पौधों में बेहद कम प्रूनिंग की आवश्यकता
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अनार के पौधे लगाकर सालों साल की जा सकती है बेहतर कमाई

अनार के पौधों में फल छेदक और पौधों को सड़ाने वाले कीड़े लगने का खतरा रहता है
हिमाचल कृषि-बागवानी प्रधान प्रदेश है जिसमें अधिकतर लोगों का व्यवसाय कृषि बागवानी पर ही निर्भर है। यहां पर कई प्रकार की खेती-बाड़ी की जाती है। अगर किसान खरीफ की फसलों के साथ इंटरक्रॉपिंग सिस्टम में दूसरी फसलें भी उगाएं तो जमीन की उर्वरा शक्ति बेहतर रहती है। इससे ज्यादा आमदनी भी होगी। कृषि वैज्ञानिक किसानों को मल्टी क्रापिंग यानी एक साथ दो या इससे अधिक फसलें उगाने की सलाह दे रहे हैं। इस कवायद का उद्देश्य परंपरागत खेती को बढ़ावा देना और जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाना है। इस बार हम आपको अनार की पैदावार के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं।
हिमाचल प्रदेश के बागवान अब अनार की व्यावसायिक खेती की ओर भी अग्रसर हो रहे हैं। इस समय प्रदेश के कुल्लू, मंडी, बिलासपुर, शिमला, सिरमौर व सोलन जिलों में 1800 हैक्टेयर क्षेत्र में अनार की विभिन्न किस्मों की व्यावसायिक खेती की जा रही है और 800 मीट्रिक टन उत्पादन हो रहा है। यह एक एरिड जोन क्रॉप (अधिक गर्मी में होने वाली) है, जिसके लिए कुल्लू घाटी सहित कई क्षेत्र जहां बारिश कम होती है उपयुक्त पाए गए हैं। खरीफ सीजन के दौरान दूसरी फसलों के साथ अनार की भी खेती की सकती हैं। इससे अतिरिक्त आमदनी का जरिया तो बनेगा ही, जमीन की उर्वरा शक्ति में भी सुधार होगा। साथ ही यह भी महत्वपूर्ण तथ्य है कि काश्तकारों के लिए खेती आज भी निश्चित आय का साधन नहीं बन पाया है। कभी मौसम की मार से पैदावार घट जाती है तो कभी अधिक उत्पादन के कारण बाजार में दाम जमीन पर पहुंच जाते हैं। ऐसे में थोड़ा व्यावसायिक नजरिया अपनाते हुए खेत के एक हिस्से में फलों के पौधे लगाना एक बेहतर सोच साबित हो सकती है।
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अनार प्रदेश का सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्र : कुल्लू
कुल्लू जिला हिमाचल प्रदेश में अनार का सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्र है। यहां कुल उत्पादन का करीब 45 से 48 फीसदी उत्पादन अनार का हो रहा है। प्रदेश में 800 मीट्रिक टन अनार उत्पादन होता है, जबकि कुल्लू जिला में करीब 350 मीट्रिक टन उत्पादन किया जा रहा है, जबकि इसके तहत आने वाला क्षेत्रफल प्रदेश का 20 फीसदी है। इसी प्रकार मंडी जिला में भी करीब बराबर क्षेत्रफल पर ही अनार के बगीचे हैं और उत्पादन केवल 90 मीट्रिक टन है।
कंधारी: इसका फल बड़ा और अधिक रसीला होता है, लेकिन बीज थोड़ा सा सख्त होता है। देखने में खूबसूरत होने के कारण इसे ऊंचाई वाले क्षेत्रों में व्यावसायिक तौर पर उगाने के लिए उपयुक्त माना जाता है।
भगवा: यह निचले क्षेत्रों के लिए अधिक उपयुक्त है व देश में पैदा होने वाले अनार का 90 फीसदी यही किस्म उगाई जा रही है। इसके फल केसरी रंग व साइज में छोटे होते हैं, बीज नर्म होते हैं व खाने में सबसे बढिय़ा माने जाते हैं।
गणेश: इसका फल पीला व थोड़ा पिंक होता है बीज नर्म होता है लेकिन देखने में ज्यादा बढिय़ा नहीं होता। इसके अलावा जी-137, मृदुला, जेलोर सेलेक्षन व चावला किस्में भी अनार की अच्छी फसल देने वाली हैं।
मसलन पांच हेक्टेयर के खेत में एक हैक्टेयर में फल के पौधे लगाकर कई सालों तक कमाई की जा सकती है। ऐसे में नई विधि के साथ अनार के पौधे लगाकर मुनाफा और बढ़ाया जा सकता है। अनार के पौधे दिसम्बर व जनवरी में कलम द्वारा लगाए जाते हैं व इसके बाद एक वर्ष के पौधों को सर्दियों के मौसम में लगाना चाहिए। इसके अलावा अनार के पौधों को बरसात के मौसम में यानि आजकल भी लगाया जा सकता है।
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प्रूनिंग के दौरान रखें इन बातों का ध्यान
अनार के पौधों में बेहद कम प्रूनिंग की जरूरत है और इसकी टहनियों को इतना ही काटें कि इसकी झाडियां न बने। इसके अलावा तने के

अनार के पौधों में बेहद कम प्रूनिंग की जरूरत
आसपास पैदा होने वाले जुड़वे निकाल देने चाहिए क्योंकि यह मुख्य पौधे के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं और उसकी क्षमता को कम कर देते हैं।
अनार का पौधा तीन-चार साल में पेड़ बनकर फल देने लगता है और एक पेड़ करीब 25 वर्ष तक फल देता है। साथ ही अब तक के अनुसंधान के मुताबिक प्रति हैक्टेयर उत्पादकता बढ़ाने के लिए अगर दो पौधों के बीच की दूरी को कम कर दिया जाए तो प्रति पेड़ पैदावार पर कोई असर नहीं पड़ता है। लेकिन ज्यादा पेड़ होने के कारण प्रति हैक्टेयर उत्पादन करीब डेढ़ गुना हो जाता है। परंपरागत तरीके से अनार के पौधों की रोपाई करने पर एक हैक्टेयर में 400 पौधे ही लग पाते हैं जबकि नए अनुसंधान के अनुसार पांच गुणा तीन मीटर में अनार के पौधों की रोपाई की जाए तो पौधों के फलने-फूलने पर कोई असर नहीं पड़ेगा और एक हैक्टेयर में छह सौ पौधे लगने से पैदावार डेढ़ गुना तक बढ़ जाएगी।
एक सीजन में एक पौधे से लगभग 80 किलो फल मिलते हैं। इस हिसाब से बीच की दूरी कम करके पौधे लगाने से प्रति हैक्टेयर 4800 क्विंटल तक फल मिल जाते हैं। इस हिसाब से एक हैक्टेयर से आठ-दस लाख रुपये सालाना आय हो सकती है। नई विधि को काम लेने से खाद व उर्वरक की लागत में महज 15 से 20 फीसदी की बढ़ोतरी होती है जबकि पैदावार 50 फीसदी बढ़ने के अलावा दूसरे नुकसानों से भी बचाव होता है। पौधों के बीच की दूरी कम होने से माइक्रोक्लाइमेट के कारण तेज गर्मी और ठंडक दोनों से पौधों का बचाव होने के साथ बर्ड डेमेज यानी पक्षियों से फलों को होने वाला नुकसान भी कम हो जाता है। राजस्थान के कुछ किसानों ने इस विधि को अपना कर देखा है। इसके बेहतर परिणाम मिले हैं।
अनार के पौधों में फल छेदक और पौधों को सड़ाने वाले कीड़े लगने का खतरा रहता है। इसके लिए कीटनाशक के छिड़काव के साथ पौधे के आसपास साफ-सफाई रखने से भी कीड़ो से बचाव होता है। अनार के पौधों के लिए गर्मियों का मौसम तो प्रतिकूल नहीं होता, लेकिन सर्दियों में पाले से पौधों को बचाने के लिए गंधक का तेजाब छिड़कते रहना जरूरी है। नियमित रूप से पानी देने से पाले से बचाव होने से पौधे जलने से बच जाते हैं। सर्दी के मौसम में फलों के फटने की आशंका ज्यादा होती है। इसलिए पौधों का सर्दी से बचाव करके फलों को बचाया जा सकता है। इस तरह खरीफ में दूसरी फसल के साथ अनार के पौधे लगाकर किसान कमाई का एक अतिरिक्त जरिया तैयार कर सकता है।

अनार के पौधे लगाकर किसान कमाई का एक अतिरिक्त जरिया
पूरे देश में अनार का मुख्य कीट अनार बटर फ्लाई है जिसके मादा फूल व फल पर अंडे देती हैं। अंडे से पैदा होने वाली सुंडी फूल व फल के माध्यम से अंदर पहुंच जाती है और अनार का गुदा खाकर फल को दागी व खराब कर देती है। इसकी रोकथाम के लिए साईपर मैथरिन 200 मिलीलीटर (रिपकार्ड) या मोनाक्रोटोफोस 200 मिलीमीटर (निवाक्रॉन, मोनोफिल, मासक्रॉन व मैक्रोफास) को 200 मिलीमीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें, इसमें स्टीकर अवश्य डालें। इसका पहला छिड़काव जून के दूसरे सप्ताह में, दूसरा जुलाई के प्रथम सप्ताह व तीसरा तीसरे सप्ताह में करना चाहिए।
अनार के फल जुलाई-अगस्त में लेने के लिये जून माह में 3 वर्षीय पौधों में 150 ग्राम, चार वर्षीय पौधों में 200 ग्राम, पांच या अधिक वर्षीय पौधों में 250 ग्राम यूरिया प्रति पौधा देकर सिंचाई करें। छोटे पौधों में भी यूरिया इसी माह में दें। एक वर्षीय में 50 ग्राम व दो वर्षीय में 100 ग्राम यूरिया प्रति पौधा देकर सिंचाई करें। वैसे जुलाई-अगस्त में अनार की उपज भी अच्छी होती है तथा बाज़ार भी ठीक रहता है।
प्रति हेक्टेयर उत्पादकता बढ़ाने के लिए अगर दो पौधों के बीच की दूरी को कम कर दिया जाए तो पौधों की बढ़वार पर कोई असर नहीं पड़ेगा और उपज भी करीब डेढ गुना बढ़ जाएगी। अनार का एक पौधा पांच मीटर लंबे व इतने ही चौड़े भूमि के हिस्से में लगाया जाता है। पौधों के बीच की दूरी कम होने से माइक्रोक्लाइमेट के कारण तेज गर्मी और ठंडक दोनों से पौधों का बचाव होने के साथ बर्ड डेमेज यानी पक्षियों से फलों को होने वाला नुकसान भी कम हो जाता है। गर्मियों में पक्षियों से छोटे पौधों को बचाने की जरूरत होती है। पौधे जब करीब डेढ़ फुट तक ऊंचे हों तो उन्हें नेट से ढंकना चाहिए।
परंपरागत तरीके से अनार के पौधों की रोपाई करने पर एक हेक्टेयर में 400 पौधे ही लग पाते हैं जबकि नए अनुसंधान के अनुसार पांच गुणा तीन मीटर में अनार के पौधे की रोपाई की जाएं तो पौधों के फलने-फूलने पर कोई असर नहीं पड़ेगा और एक हेक्टेयर में छह सौ पौधे लगने से उपज डेढ गुना तक बढ़ जाएगी।
Apr 28, 2016 - 02:50 PM
मुझे अनार की खेती करनी है
Apr 28, 2016 - 07:52 PM
आप हमसे “अनार की खेती” पर किस प्रकार की जानकारी चाहते हैं? हांलाकि हम “अनार की खेती” पर जानकरी दें चुके हैं फिर भी आप अपनी बात विस्तार से लिखे!
धन्यवाद
May 19, 2016 - 07:41 AM
बिहार मे बेहतर उत्पादन का जानकारी दिजिए?
Jul 24, 2016 - 01:14 PM
Kya अनार की खेती पिथौरागढ़ जिले मे भी की जा सकती है क्या सफल होगा पिथौरागढ़ मे अनार उत्पादन
Aug 03, 2016 - 11:09 AM
अनार के एक हेक्टेयर मे पैसे की लागत कितनी होती हैं