सभी प्रकार की भूमियों में पैदा की जा सकती है “पालक” की उन्नत खेती

सभी प्रकार की भूमि में पैदा की जा सकती है “पालक” की उन्नत खेती

पालक की खेती के लिये ठन्डे मौसम की जलवायु की आवश्यकता होती है

पालक की खेती के लिये ठन्डे मौसम की जलवायु की आवश्यकता होती है

हम आपको इस बार पालक की उन्नत खेती कैसे करें के बारे में विस्तार से जानकरी देने जा रहे हैं। क्यूंकि पत्तियों वाली सब्जियों में पालक भी एक भारतीय सब्जी है जिसकी खेती अधिक क्षेत्र में की जाती है। यह हरी सब्जी के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसकी पत्तियां स्वास्थ्य के लिये बहुत ही लाभकारी हैं। इसकी खेती सम्पूर्ण भारतवर्ष में की जाती है। यह सब्जी विलायती पालक की तरह पैदा की जाती है। पालक एक खनिज पदार्थ युक्त एवं विटामिन्स युक्त वाली फसल है जिसका कि प्रत्येक मनुष्य को साधारण प्रयोग करना चाहिए। यहां तक कि 100-125 ग्राम पालक रोज दैनिक जीवन के लिये संतुलित आहार के रूप में खाने की सिफारिश की जाती है। अन्यथा पत्ती वाली सब्जी अवश्य प्रतिदिन खानी चाहिए। इसकी पत्तियों का प्रयोग सब्जी के अतिरिक्त नमकीन पकौड़े, आलू मिलाकर तथा भूजी बनाकर किया जाता है। पालक के सेवन से पोषक तत्वों की प्राप्ति होती है। अधिक मात्रा में प्रोटीन, कैलोरीज, खनिज, कैल्शियम तथा विटामिन्स ए, सी का एक मुख्य साधन है जो कि दैनिक जीवन के लिए अति आवश्यक है।

 पालक की खेती के लिये आवश्यक भूमि व जलवायु : पालक की खेती के लिये ठन्डे मौसम की जलवायु की आवश्यकता होती है। यह फसल जाड़े में होती है। पालक के लिये अधिक तापमान की आवश्यकता नहीं होती लेकिन कुछ जगह पर वसन्त ऋतु के आसपास पैदा करते हैं अर्थात् जायद की फसल के साथ पैदा करते हैं। पालक जनवरी-फरवरी में अधिक वृद्धि करता है।

पालक की खेती के लिये खेत की तैयारी : पालक की खेती लगभग सभी प्रकार की भूमियों में पैदा की जा सकती है लेकिन सबसे उत्तम भूमि बलुई दोमट होती है। पालक का हल्का अम्लीय भूमि में भी उत्पादन किया जा सकता है। उर्वरा शक्ति वाली भूमि में बहुत अधिक उत्पादन किया जा सकता है। पालक के खेत में जल निकास का उचित प्रबन्ध होना चाहिए। भूमि का पी. एच. मान 6.0 से 6.7 के बीच का अच्छा होता है।

पालक के खेत की 3-4 बार जुताई करके खेत तैयार करना चाहिए। जुताई के समय हरी या सूखी घास को खेत से बाहर निकाल कर जला देना चाहिए। इस प्रकार से खेत को अच्छी तरह तैयार व साफ करके मिट्‌टी को भुरभुरा करना चाहिए तथा बाद में खेत में क्यारियां तैयार कर लेनी चाहिए। खेत में खाद आदि डालकर मिट्‌टी में भली-भांति मिला देना चाहिए।

गोबर की खाद एवं रासायनिक खादों का प्रयोग : पालक की फसल के लिये 18-20 ट्रौली गोबर की खाद तथा 100 किलो D.A.P. प्रति हेक्टर की दर से बुवाई से पहले खेत तैयार करते समय मिट्‌टी में मिलाना चाहिए तथा पहली कटाई के बाद व अन्य कटाई के बाद 20-25 किलो यूरिया प्रति हेक्टर देने से फसल की पैदावार अधिक मिलती है। इस प्रकार से वृद्धि शीघ्र होती है।

बगीचे की यह एक मुख्य फसल है। पालक को बोने के लिये खेत को ठीक प्रकार से तैयार करके बोना चाहिए। खेत को तैयार करते समय 4-5 टोकरी गोबर की खाद सड़ी हुई या डाई अमोनियम फास्फेट 500 ग्राम 8-10 वर्ग मी. के लिये लेकर मिट्‌टी में बुवाई से पहले मिला देते हैं। बाद में फसल को बढ़ने के पश्चात् काटते हैं तो प्रत्येक कटाई के बाद 100 ग्राम यूरिया उपरोक्त क्षेत्र में छिड़कना चाहिए जिससे पत्तियों की वृद्धि शीघ्र होती है तथा सब्जी के लिये पत्तियां जल्दी-जल्दी मिलती रहती हैं।

  • पालक की उन्नतशील जातियां : पालक की कुछ मुख्य जातियां हैं जिनको भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा बोने की सिफारिश की जाती है, वे निम्नलिखित हैं-

पालक ऑल ग्रीन :  इस किस्म से एक साथ हरी पत्तियां प्राप्त होती हैं। पत्तियां 40 दिन में तैयार हो जाती है। पत्तियां छोटी-बड़ी न होकर एक-सी होती हैं। वृद्धि काल-अन्तिम सितम्बर से जनवरी आरम्भ का समय होता है। इसे 5-6 बार काटा जा सकता है।

 पालक पूसा ज्योति :  यह जाति अधिक पैदावार देती है। पत्तियां समान, मुलायम होती हैं तथा गहरी हरे रंग की होती हैं। पहली कटाई 40-45 दिनों में आरम्भ हो जाती है। सितम्बर से फरवरी के अन्त तक पत्तियों की वृद्धि अधिक होती है। 8-10 बार फसल की कटाई की जाती है। यह फसल 45 हजार किलोग्राम-हेक्टर पैदावार देती है।

पालक पूसा हरित : इस किस्म के पौधे ऊंचे, एक समान तथा वृद्धि वाले होते हैं। अधिक पैदा देने वाली किस्म है जो सितम्बर से मार्च तक अच्छी वृद्धि करती है।

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