श्रमिकों की कमी के कारण सेब तुड़ान में नहीं आ रही तेजी, जबकि रॉयल सेब की खरीद के लिए बड़ी कंपनियां दिखा रही रूचि

इस प्रकार से करें सेब बागवानी

  • डण्ठल के साथ ही तोड़ने चाहिए सेब

सेब का मूल स्थान हिमाचल व दक्षिण-पूर्व एशिया है। भारत में सेब का उत्पादन हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब व जम्मू-कश्मीर में होता है। सेब का पेड़ 35 फुट तक ऊंचा बढ़ने वाला, चौड़े पत्ते वाला, गोलाकार बढ़ने वाला पतझड़ी होता है। सेब के फल बहुत बड़ी मात्रा में लगते हैं सेब का एक पेड़ औसतन 30 से 50 किलो फल देता है।

 हवामान: सेब समशीतोष्ण प्रदेशों में उत्पादन देने वाला पेड़ है। सेब की अच्छी अभिवृद्धि व अच्छी गुणवत्ता के लिए ठंड की आवश्यकता पड़ती है। सेब के पेड़ पर फल आने के समय तापमाद 21.1 डिग्री से 26.7 डिग्री होना आवश्यक है।

सेब की बागवानी

सेब की बागवानी

जमीन : पानी का पर्याप्त रिसाव, उर्वरा, पानी का जमाव न होना- इन विशेषताओं से युक्त जमीन सेब के लिए उपयुक्त होती है।

 किस्में: सेब की अनेक प्रजातियां हैं और उनके अनुसार उनकी उत्पादन क्षमता भी अलग-अलग है। इन किस्मों में कुछ महत्वपूर्ण किस्में निम्र प्रकार की हैं:- मालस बंकाटा, मालस कारोनेरिया, मालस आयोन्सीस, मालस यूमिला, तथा मालस सिन्टहेस्ट्रिस। इन किस्मों को सन् 1887 में अलेक्जेन्डर कोटस ने हिमाचल प्रदेश में शिमला के पास लगाया था।

हिमाचल प्रदेश की किस्में: रेड डेलिसियस, गोल्डन डेलिसियस, ओरेस्टर, पिअरमेन, न्यूटन वंडर, कॉक्स ऑरेंज पिप्पीन, किंग आफ पिप्पींस, स्टार किंग आदि।

सहयोगी फसलें : नाशपाती, स्ट्रॉबेरी, दलहल बीन्स आदि।

उत्पादन: सेब का एक पेड़ औसतन 30 से 50 किलो फल देता है।

ढलान पर सीढ़ियां और अभिवृद्धि : हिमालयन पहाड़ियों में ज्यादा ढलान होती है। जब भी हम सेब के पौधे लगाते हैं तब हमें ध्यान रखना चाहिए कि ढलान के विरूद्ध नाली तैयार करें। ऐसा इसलिए करते हैं ताकि पानी को रोका जाए, पानी रोकने से भूमि का ह्यूमस रूकता है। पहाड़ी के तलहटी से ऊपर जाते हुए गोलाकार सीढ़ियों का निर्माण करें। इन सीढ़ियों में काष्ठ पदार्थ डाल दें और निश्चित अंतर पर निशान लगाएं। वहां 1.5 x 1.5 x 1.5 फुट के खड्ढे खोदिए, खड्ढे भरने के लिए चार हिस्से मिट्टी, दो हिस्से छना हुआ गोबर, एक हिस्सा घनजीवामृत मिलाएं। यह मिश्रण तैयार रखें। साथ-साथ हर दो सेब के बीच एक और चार सेबों के बीच उसी आकार के खड्ढे सहयोगी फसल नाशपाती लगाने के लिए खोदें। अब एक साल पहले क्राफ्ट की सेब की कलम को खड्ढे में डालकार उस तैयार मिश्रण से अच्छी तरह दबाएं और बाद में हल्का पानी दें। इसी प्रकार नाशपाती की एक वर्ष पूर्व क्राफ्ट की हुई कलम किसी भी खड्ढे में रखकर तैयार मिश्रण से अच्छी तरह दबाएं और बाद में हल्का पानी दें। कलम लगाते समय इस बात का ध्यान दें कि कलम की जड़ भूमि के सतह एक फुट ऊपर आनी चाहिए।

सेब और नाशपाती के बीच स्ट्राबेरी के तने के टुकड़े लगाएं और जहां भी रिक्त स्थान दिखाई देता हो वहां आपके क्षेत्र मं जो भी दलहन की फसल आती हो उसके बीज लगाएं। यदि आवश्यकता पड़े तो कलम को सहारा देने के लिए बांस गाड़ दें।

जीवामृत: कलम लगाने के बाद निरंतर महीने में एक या दो बार पानी से सिंचन के साथ 200 से 400 लीटर जीवामृत दें। यदि सिंचन नहीं है तो पौधों के पास भूमि पर थोड़ा-थोड़ा जीवामृत महीने में एक या दो बार डालें। साथ-साथ शुरू में ही महीने में एक बार 5 प्रतिशत से 10 प्रतिशत तक जीवामृत का स्प्रे भी करें। साल में एक बार पौधों के पास घनजीवामृत भी डालते रहें।

 आच्छादन: सेब के बगीचे में जहां भी खाली जगह मिले वहां पर काष्टाच्छादन करते रहें। आप जितना भी काष्ठ पदार्थ बिछाएंगे, उतनी ही अच्छी फसल का उत्पादन होगा।

छंटाई : जब-जब सेब सुप्तावस्था में जाते हैं और धूप कड़ी होती है। जब अनावश्यक उप-डालियों और खड़े ऊपर बढ़ने वाले अंकुर निकाल देने चाहिए। इससे पेड़ को सही आकार प्रदान किया जाता है। इस छटाई से फसल का उत्पादन बढ़ता है, फलधारण की क्षमता बढ़ती है तथा फलों की गुणवत्ता बढ़ती है। छटाई के बाद एक कपड़े से नीम पेस्ट लगाएं।

फलों की थिनिंग: सेब के फल बहुत बड़ी मात्रा में लगते हैं लेकिन यदि इन सभी फलों को बढऩे दिया जाए तो फलों का ठीक से विकास नहीं होगा। कम विकसित

फल तोड़ने की शुरूआत शाखाओं के पिछले हिस्सों से करनी चाहिए

फल तोड़ने की शुरूआत शाखाओं के पिछले हिस्सों से करनी चाहिए

फलों के दाम भी कम मिलेंगे अत: फलों के प्रत्येक गुच्छे में एक या दो फल रखें और शेष निकाल दें। थिनिंग हाथ से करें, इसके करने में रसायनों का प्रयोग न करें। फल गिरना एक आम बात है। पकने से पहले फल गिरने के कई कारण होते हैं। फलधारण की शुरूआत में बारीक फल गिरते हैं, वे पराग सिंचन न होने से होते हैं। जून महीने में प्राकृतिक तापमान में अचानक परिवर्तन के कारण फल गिरते हैं और फलों को तोड़ने से पहले भी फल गिरते हैं। तापमान में अचानक वद्धि या अचानक गिरावट, लगातार घने बादलों से आकाश के ढक जाने से सूर्य के प्रकाश का पत्तों को उपलब्ध न होना, भूमि में किसी सूक्ष्म खाद्य तत्त्व की कमी के कारण, पोषक तत्त्व का जड़ों को उपलब्ध न होना, फल-पोषण के लिए आरक्षित खाद्य पर्याप्त मात्रा में न होना, रासायनिक खादों का आवश्यकता से अधिक प्रयोग होना, फलों के गिरने के कारण होते हैं लेकिन जीरो बजट प्राकृतिक कृषि में फल गिरते नहीं हैं।

फलों को तोड़ना : जब फलों का रंगे हरे से पीला होने लगे तब फलों को तोड़ना चाहिए। फल तोड़ने की शुरूआत शाखाओं के पिछले हिस्सों से करनी चाहिए और अंत में अग्रभाग की ओर के फल तोड़ने चाहिए। फल डण्ठल के साथ ही तोड़ने चाहिए।

 

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