पश्चिम हिमालय के राणा-राजा

हिमाचल इतिहास : राणा और ठाकुर अभी तक पुरानी उपाधि धारण किए

  • राजाओं से पहले राणा-ठाकुर ही थे प्रभावी

कांगड़ा में राणाओं और ठाकुर परिवारों की बहुतात थी जो अब कम रह गए हैं। राजाओं से पहले यही राणा-ठाकुर प्रभावी थे। कुल्लू में राणा कम, ठाकुर ज्यादा थे। यही स्थिति मण्डी, सुकेत की रही है। तिब्बती मूल के परिवार की ब्रिटिश लाहौल में जागीर थी, उन्हें ठाकुर कहते थे। सत्रहवीं शताब्दी में यह कुल्लू के आधीन आया। शिमला की पहाड़ी रियासतें जो संख्या में 20 थीं, सामूहिक तौर पर ठकुरायण कहलाते हैं। केवल चार रियासतों में गवर्मेंट से राजा की उपाधि मिली, उनमें क्योंथल और जुब्बल के राणा हैं।

  • चम्बा, कांगड़ा, कुल्लू में और अन्य पर्वतीय क्षेत्रों में राणा और ठाकुर अभी तक पुरानी उपाधि धारण किए

कुल्लू और चम्बा में राणाओं की कोठी और टप्पे उनके केन्द्र होते थे जो चम्बा में बाद में परगना के केंद्र बने। चम्बा, कांगड़ा, कुल्लू में और अन्य पर्वतीय क्षेत्रों में राणा और ठाकुर अभी तक पुरानी उपाधि धारण किए हैं। साहित्य के स्त्रोतों से

 चम्बा, कांगड़ा, कुल्लू में और अन्य पर्वतीय क्षेत्रों में राणा और ठाकुर अभी तक पुरानी उपाधि धारण किए

चम्बा, कांगड़ा, कुल्लू में और अन्य पर्वतीय क्षेत्रों में राणा और ठाकुर अभी तक पुरानी उपाधि धारण किए

त्रिगर्त (कांगड़ा) और कुल्लू बारे हमें जानकारी मिलती है कि यहां रजवाड़े थे किन्तु दूरदराज पर्वतीय क्षेत्रों में राणाओं का स्वतन्त्र प्रभुत्व रहा है यद्यपि राजाओं को अपनी श्रेष्ठता स्थापित करने के लिए संघर्ष करना पड़ा।

  • राजा का ठाकुरों-राणाओं के साथ संघर्ष

कुल्लू राज्य की नींव शताब्दी पहली के प्रारम्भ में पड़ी। राजा का इन ठाकुरों, राणाओं के साथ संघर्ष चलता रहा। ब्रह्मपुर (भरमौर) के राजाओं ने पहले अप्पर रावी क्षेत्र के राणाओं को परास्त किया तभी ब्रह्मपुर राज्य में मिलाकर राज्य स्थापित किया। लोअर रावी की घाटी के राणाओं को बाद में राज्य में मिलाकर दशवीं शताब्दी में चम्बा को राजधानी बनाया। चुराह (चम्बा का उत्तरीय भाग) प्रारम्भ में बिल्लौर-बसोहली के आधीन था, गयारहवीं, बारहवीं शताब्दी में चम्बा-बसोहली के बीच आधिपत्य बदलता रहा किन्तु उसके बाद स्थायी तौर पर चुराह चम्बा का भाग बन गया। चन्द्र भागा घाटी के ठाकुर, राणा लद्दाख के आधीन रहे किन्तु दशवीं-गयारहवीं शताब्दी में लाहौल स्थायी तौर पर चम्बा रियासत का भाग बन गया। कुछ शताब्दियों बाद अप्पर लाहौल, कुल्लू के आधीन चला गया। लुज (पांगी) के एक शिलालेख में उल्लेख है कि पांगी घाटी चम्बा के राजा जष्टवर्मन के आधीन थी। पाडर के राणा बाहरवीं शताब्दी से चम्बा के आधीन थे। इसी प्रकार भद्रवाह और भलेस के राणा भी 16वीं शताब्दी तक चम्बा राज्य के आधीन रहे।

  • समस्त हिमालय क्षेत्र में राणाओं, ठाकुरों का प्रभुत्व

कांगड़ा में भी राणाओं के बहुत से वंश पहले से मौजूद थे। शिमला की पहाड़ी रियासतों में सबसे प्राचीन रामपुर-बुशैहर है जो कि अन्य रियासतों की भान्ति बाहर से आए साहसी राजपूतों ने स्थापित किया। राणाओं, ठाकुरों का प्रभुत्व समस्त हिमालय क्षेत्र में रहा। राजाओं का प्रभुत भी सारे क्षेत्र में एकदम स्थापित नहीं हुआ। उन्हें राणाओं, ठाकुरों के साथ बड़ा संघर्ष करना पड़ा। परास्त होने के बाद भी ये राजाओं के आधीन सामन्त बन कर रहे। राजा सोमवर्मन (चम्बा 1060-80) के काल में दो राणा, रिहीला और कहीला-प्रधानमंत्री और लेखागार के तौर पर कार्यरत रहे।

बैजनाथ की प्रशास्ति में (1208 ई.) में वर्णन है कि कीरग्राम में एक सामन्त वंश 8 पीढिय़ों तक राज करता रहा और त्रिगर्त के राजाओं के प्रति वफादार था। पन्निहारों पर पाए गए शिलाओं पर कई योद्धा सामन्तों के प्रेम की कहानियां अंकित है। ऐसा एक प्रशस्ति का शिलालेख सराहन (साहो- चम्बा) और देवीकोठी के मूल किहार, शिला पर उत्तम, प्रेममय अभिव्यक्तियों में अंकित है, उत्कीरित है।

राजंक की उपाधि का अर्थ राजा है जो कि महाराजा के प्रति की गई सेवाओं का प्रतीक है। राजा ललितवर्मन (चम्बा-1143-70 ई.) ने एक जागीरदार नागपाल देवीकोठी चुराह को राजंक की उपाधि दी थी

  • राणा और ठाकुरों के प्रभुत्व के लिए राजाओं के साथ संघर्ष

    राणा और ठाकुरों के प्रभुत्व के लिए राजाओं के साथ संघर्ष

    राणा और ठाकुरों के प्रभुत्व के लिए राजाओं के साथ संघर्ष

राणा और ठाकुरों के प्रभुत्व के लिए राजाओं के साथ संघर्ष काफी समय तक चलता रहा। ऐसा विश्वास किया जा सकता है कि तेरहवीं शताब्दी में इनका प्रभाव कम होना प्रारम्भ हो गया। कुल्लू के इतिहास से पता चलता है कि इनका संघर्ष कई शताब्दियों तक चलता रहा और सोलहवीं के मध्य में समाप्त हुआ। सुकेत और मण्डी की भी यही स्थिति है।

चम्बा में बन्नू के राणा की कथा प्रसिद्ध है बन्नू के राणा से कर मांगा गया। दरबार में आकर वह नम्रता से इकरार करता, किन्तु जूं ही बन्नू पहुंचता, वहां की मिट्टी के प्रभाव से वह गुस्ताख हो उठता कि उससे कर मांगने का किसे अधिकार है। कहावत प्रसिद्ध है- रिहला राणा, बहिला पानी, बन्नू कोट, सरोल पानी, भद्रम झिंजन खानी।

  • चुराह, पांगी में राणा आपसी शत्रुता-षडय़न्त्रों से लुप्त

चुराह, पांगी में राणा आपसी शत्रुता-षडय़न्त्रों से लुप्त प्राय: हो गए। आजकल चम्बा में 20 से 30 तक राणा परिवार निम्र परगनों में मौजूद हैं-भरमौर, रणूंह कोठी, पियूर, सामरा, पंजला, राजनगर, धुन्ध, लोहटिकरी, बैरा, सई, हिमगिरी, रावी घाटी में और घरवास, किलाड़, साच, लाहौल चन्द्रभागा घाटी में। अब ये परिवार साधारण कृषक हैं। लाहौल में त्रिलोकनाथ का राणा उस जागीर पर काब्ज रहा, वह त्रिलोक नाथ के मन्दिर का प्रबन्धक भी था। उलासा और स्वाई के राणा भी महत्वपूर्ण रहे हैं। अब तो राणा और ठाकुर जातिवाचक शब्द रह गए हैं।

  • कांगड़ा के प्रसिद्ध राणा परिवार

कांगड़ा के प्रसिद्ध राणा परिवार, चड़ी, घरोह, कनिहार, पठियार, हवरोल, दरवाल आदि स्थानों में हैं, कनिहार के राणा सुकेत के राज परिवार से हैं। चम्बा का राजा मूषवर्मन (800 ई.) जब सुकेत से अपने राज्य को वापस लेने के लिए आया तो उसके साथ राजा सुकेत का दूसरा पुत्र था। मूष वर्मन की आयु उस समय केवल 10 वर्ष की थी। आक्रमणकारियों को भगा देने के पश्चात उसने दुठांई (राजा सुकेत के पुत्र) को ब्रह्मपुर में ही रहने की प्रार्थना की ताकि वह राजा की सुरक्षा कर सके। उसे राजा की उपाधि दी जो तीन पीढिय़ों तक चलती ही और फिर राणा में बदल गई। चनौहता की जागीर उसे दी गई। कई पीढिय़ों के बाद राणा रत्नसेन जो उस समय परिवार का मुखिया था, चनौहता छोड़ धौलाधार के मार्ग से कनिहार में आकर बस गया जो कि उस समय चम्बा राज्य का भाग था।

  • पश्चिमी पर्वतीय क्षेत्र में राणा, ठाकुरों की थी प्राचीनतम राज-प्रणाली 

चड़ी और घरोह राणाओं के पूर्वज एक है और वे अपने का पाण्डुओं के वंशज कहलाते हैं। चड़ी में भी चम्बा की सती रानी सूई के समान एक कहावत प्रचलित है कि राणा ने पानी लाने के लिए अपनी पुत्र वधू की कुर्बानी दी। उसकी अभी तक पूजा होती है और यादगार मनाई जाती है। जो जानकारी प्राप्त हो सकी हैं, उनके आधार पर इस परिणाम पर पहुंचते है कि पश्चिमी पर्वतीय क्षेत्र में राणा, ठाकुरों की राज-प्रणाली प्राचीनतम थी और स्थानीय परिवर्तन, फेरबदल और भिन्न-भिन्न उपाधियों में यह प्रणाली सारे बाह्य हिमालय क्षेत्र में हावी थी। कनैत, राठी और ठाकुर जो कि राठी समुदाय का उच्च भाग हैं, मुख्यत: कृषक हैं, पहाड़ों के आदिवासी हैं। प्राचीन ठाकुर शासक उन्हीं से शक्तिवान बने। ये राणाओं से पहले के वासी हैं। राणा क्षत्रिय या राजपूत हैं। ठाकुर की उपाधि प्राचीनकाल से प्रचलित थी, राणा बाद में आए इसके भी बहुत पश्चात राजाओं ने ठाकुरों और राणाओं पर आधिपत्य स्थापित किया। कुल्लू के ठाकुरों में तिब्बती मिश्रण भी है। मण्डी-सुकेत में भी राणा-ठाकुरों की स्थिति कुल्लू जैसी है।

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