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कमरूनाग झील में समाया है अपार खजाना
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“देव कमरूनाग” … स्थानीय लोगों के साथ-साथ जहां देश-विदेश के लोग भी होते हैं नतमस्तक
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परंपरा के कारण सिक्कों और अमूल्य धातुओं का भारी भंडार
हिमाचल में नागों में सबसे प्रसिद्ध कमरूनाग
हिमाचल को देवभूमि के नाम से ना केवल देशों में अपितु विदेशों में भी जाना जाता है। यहाँ हर देवी- देवताओं का एक विशेष स्थान और महत्व है। यहाँ बसे लोगों के मन में भी यहाँ के देवी- देवताओं के प्रति गहरी आस्था तो है लेकिन बाहरी देश-विदेश से आने वाले पर्यटक भी यहां की खुबसूरत वादियों के साथ-साथ यहाँ के देवी- देवताओं के प्रति नतमस्तक हुए बगैर नहीं रहते। ये ही कारण है कि हिमाचल को देवभूमि हिमाचल की कहा जाता है। हम आपको इस बार प्रदेश की हरी-भरी और खुबसूरत वादियों में बसे देवता कमरूनाग जी के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं।
प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों में नाग पूजा की परम्परा प्राचीनकाल से है। मंदिरों के अतिरिक्त कुछ स्थल एवं पेड़ भी नाग देवताओं को समर्पित हैं। हिमाचल में नागों में सबसे प्रसिद्ध कमरूनाग हैं। कमरूनाग स्थल चच्योट तहसील के कमराह नामक स्थान पर घने जंगल से घिरी पहाड़ी पर है। श्रद्धालु कमरूनाग को मन्नत या चढ़ावे की अमूल्य वस्तुएं झील में भेंट करते हैं। इस परंपरा के कारण झील में सिक्कों और अमूल्य धातुओं का भारी भंडार है। कमरूनाग मूल रूप से बासुकी नाग वंश के हैं।
हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में एक ऐसी झील है जिसके तलहटी में अरबों का खजाना छिपा है। रहस्यमयी कमरूनाग झील में यह खजाना किसी ने छिपाया नहीं है। यह खजाना आस्थावश लोगों ने झील के हवाले किया है। मंडी जिला के नाचन विधानसभा क्षेत्र में महाभारतकालीन कमरूनाग मंदिर से सटी पुरातन झील में कितना सोना-चांदी जमा है, इसकी सही जानकारी किसी को भी नहीं है। झील में सदियों से सोना-चांदी चढ़ाने की परंपरा चली आ रही है। गड़े खजाने के कारण रहस्यमयी कमरूनाग झील को देखने और अपनी मनोकामना के लिए हर साल यहां आने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। समुद्र तल से नौ हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित झील में अरबों की दौलत होने के बावजूद सुरक्षा का कोई खास प्रबंध नहीं है। यहां पर सामान्य स्थितियों जितनी सुरक्षा भी नहीं है। लोगों की आस्था है कि कमरूनाग इस खजाने की रक्षा करते हैं। देव कमरूनाग मंडी जिला के सबसे बड़े देव हैं।
मंडी शिवरात्रि में कमरूनाग स्वयं नहीं आते, केवल उनकी छड़ी ही आती है
देवता की ऐसी मान्यता है कि जब कभी आपत्ति आने या सूखे के काले बादल छा जाते थे तो मंडी का राजा कमरूनाग की पूजा का विशेष
मंडी शिवरात्रि में कमरूनाग स्वयं नहीं आते, केवल उनकी छड़ी ही आती है
प्रबंध करता था और संकट के बादल तुरंत छंट जाते थे। कमरूनाग साधु स्वभाव के एकांत प्रिय देवता हैं। वे भीड़-भड़ाके व गंदगी से दूर रहना पसंद करते हैं। शायद यही कारण होगा कि वे अपने प्रतिष्ठापित स्थल से बाहर अपने रथ तक को ले जाने की आज्ञा नहीं देते। मंडी शिवरात्रि में यही अकेले एकमात्र देवता हैं जो कभी स्वयं नहीं आते, उनकी केवल छड़ी ही आती है। महामारी के समय इस नाग देवता को प्रभावशाली समझा जाता है।
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देव कमरूनाग का वर्णन महाभारत से
मान्यता है कि रतन यक्ष नाम के योद्धा ने विष्णु की मूर्ति आगे रखकर कमरू विद्या सीखी और अनेक सिद्धियां हासिल की। महाभारत में कौरवों और पांडवों ने अनेक योद्धाओं को अपनी-अपनी तरफ से लडऩे का निमंत्रण भेजा लेकिन किसी ने भी रतन यक्ष को नहीं बुलाया। इससे आहत हुए देव ने अपने पिता का आशीर्वाद लिया और कहा कि वो युद्ध क्षेत्र में जो दल हार रहा होगा वो उसकी तरफ से लड़ेंगे। देव में इतनी शक्तियां थीं कि वो जिस तरफ से भी लड़ते वो जीतते। इसका ज्ञान सिर्फ कृष्ण को था तो वो वेश बदलकर कमरूनाग को मिले।
देव कमरूनाग का वर्णन महाभारत से
देव के युद्ध में जाने की बात को लेकर कृष्ण ने उन्हें परीक्षा देने को कहा और कहा कि आप अगर शक्तिशाली हैं तो पेड़ के सभी पत्तों में एक तीर से छेद करके दिखाओ। इसी दौरान कृष्ण ने चालाकी से कुछ पत्ते अपनी बगल व पैरों इत्यादि में छुपा दिए और जब कमरूनाग ने पेड़ पर तीर चलाए तो सारे पत्तों पर छेद हो गया, वहीं जो पत्ते कृष्ण ने अपने पैरों और बगल में छुपाए थे उनमें भी छेद हो गए थे। इससे कृष्ण काफी चिंतित हो गए कि कहीं कमरूनाग कौरवों की तरफ से युद्ध न लड़ ले, तो उन्होंने देव से पूछा कि तुम किसकी पूजा करते हो। जब कमरूनाग ने कहा कि विष्णु की, तो कृष्ण ने वहीं अवतार लेते हुए उनसे गुरु दक्षिणा की मांग की। बदले में कृष्ण ने देव से उनका सिर मांग लिया। देवता ने हामी भरी और कहा कि उनकी एक इच्छा है कि उन्हें युद्ध देखना है और उनका सिर ऐसी जगह पर लगाया जाए जहां से सारा युद्ध क्षेत्र दिखे। जब युद्ध शुरू हुआ तो कमरूनाग का सिर ऊंचे स्थान पर लगा दिया गया। उनके कटे सिर में भी इतनी ताकत थी कि जिस तरफ सिर का मुंह होता वहां तबाही होती जा रही थी। इस बात का पता जब कृष्ण को चला तो उन्होंने पांडवों से उनकी पूजा-अर्चना करने को कहा और उनकी मूर्ति की स्थापना करने को भी कहा। पांडवों ने देवता से वायदा किया कि अगर वह कौरवों का नाश करते हैं तो राज्याभिषेक उनसे करवाया जाएगा। युद्ध के बाद कमरूनाग ने कृष्ण से अलग राज्य मांगा और पांडवों ने उन्हें यहां कमरू पहाड़ी पर स्थापित किया और कृष्ण ने उन्हें शरीर दिया।
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इंद्रदेव से चुरा लाए थे बादल
देव कमरूनाग को सबसे बड़े देवता का दर्जा है और उन्हें बारिश का देवता भी कहा जाता है। जब भी लम्बे समय तक बारिश नहीं होती तो मंडी जनपद के कई देवताओं के कारकून व हरियान देवता से बारिश करवाने के लिए खास पूजा-अर्चना करते हैं। जब कारिंदे देवता की पूजा करते हैं तो देवता खुश होकर इलाके में बारिश करवाते हैं। मान्यता है कि कमरूनाग की स्थापना के बाद इंद्रदेव नाराज हो गए और उन्होंने घाटी में बारिश करवाना बंद कर दी तो लोगों के अनुरोध पर देव कमरूनाग इंद्रदेव से बादल ही चुरा लाए। इसके बाद इन्हें बारिश के देवता के नाम से भी जाना जाता है।
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