सावन में सोमवार का व्रत करने से धन-धान्य से भरा रहता है जीवन, व्यक्ति को सभी पापों से मिलती है मुक्ति : आचार्य महेंद्र कृष्ण शर्मा
सावन में सोमवार का व्रत करने से धन-धान्य से भरा रहता है जीवन, व्यक्ति को सभी पापों से मिलती है मुक्ति : आचार्य महेंद्र कृष्ण शर्मा
सावन का पहला सोमवार व्रत आज, महादेव की पूजा विधि, व्रत का महत्व और कथा जानें विस्तार से
सावन व्रत का विद्यार्थी के लिए विशेष महत्व है, व्रत रखने से विद्यार्थी के ज्ञान में वृद्धि
सावन महीने में किए गए व्रत अत्यंत फलदायी होते हैं और यदि इन व्रतों को नियम से किया जाए तो निश्चय ही शुभ फल प्राप्त होते हैं। आज सुबह से ही शिव मंदिर में भगवान शिव के दर्शनों के लिए भक्तों का ताँता लगना शुरू हो गया है।
आचार्य महेंद्र कृष्ण ने जानकारी देते हुए बताया कि हिंदू कैलेंडर के अनुसार, श्रावण मास सभी महीनों की तुलना में सबसे पवित्र महीनों में से एक है। यह हिंदू कैलेंडर का पांचवां महीना है। इस महीने में, प्रत्येक सोमवार को श्रावण सोमवार के रूप में जाना जाता है। सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा की जाती है क्योंकि इसे बहुत शुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति इस महीने में सोमवार का व्रत करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं भगवान शिव की कृपा से पूरी होती हैं।
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उन्होंने बताया कि किस तरह से सावन महीने में सोमवार के व्रत का पालन किया जाना चाहिए और पूजा करनी चाहिए। सबस पहले ब्रह्म मुहूर्त में उठें और पूरे घर की सफाई कर स्नानादि से निवृत्त हो जाएं। उसके उपरान्त गंगा जल या पवित्र जल पूरे घर में छिड़कें। घर में ही किसी पवित्र स्थान पर भगवान शिव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। पूजन सामग्री में जल, दूध, दही, चीनी, घी, शहद, पंचामृ्त, मोली, वस्त्र, जनेऊ, चन्दन, रोली, चावल, फूल, बेल-पत्र, भांग, आक-धतूरा, कमल,गठ्टा, प्रसाद, पान-सुपारी, लौंग, इलायची, मेवा, दक्षिणा चढ़ाया जाता है।
सावन सोमवार व्रत सूर्योदय से प्रारंभ कर तीसरे पहर तक किया जाता है। शिव पूजा के बाद सोमवार व्रत की कथा सुननी आवश्यक है। सावन महीने में सोमवार के दिन भगवान शिवजी का व्रत करना चाहिए और व्रत के बाद भगवान श्री गणेश जी, भगवान शिवजी, माता पार्वती व नन्दी देव की पूजा करनी चाहिए। सावन में सोमवार का व्रत करने वाले को दिन में एक बार भोजन करना चाहिए।
शास्त्रों के अनुसार श्रावण माह शुरु होने से पहले ही देवशयनी एकादशी को भगवान विष्णु चार महीने के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं। इसलिए यह समय भक्तों, साधु-संतों के लिए अमूल्य होता है। यह चार महीनों में होने वाला एक वैदिक यज्ञ है, जो एक प्रकार का पौराणिक व्रत है जिसे चातुर्मास कहा जाता है। इस चार मास तक भगवान शिव ही इस सृष्टि के पालनकर्ता रहते हैं। इस दौरान वह ही भगवान विष्णु के भी कामों को भी देखते हैं। ऐसे में चार माह तक त्रिदेवों की सारी शक्तियां भगवान शिव के पास ही रहती हैं।
सावन के सोमवार की पौराणिक मान्यता
सावन के सोमवार के व्रत के विषय में पौराणिक मान्यता है कि सबसे पहले इस व्रत को माता पार्वती ने पति रूप में भगवान शिव को प्राप्त करने के लिये किया था। इस व्रत के फलस्वरूप ही उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया था। तभी से इस व्रत को मनोवांछित पति की कामना पूर्ति के लिये भी कन्याओं के द्वारा किया जाता है। इसीलिए सोमवार के व्रत का शिव की आराधना और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिये विशेष महत्व है।
यह व्रत स्त्री और पुरूष दोनों रख सकते हैं। सौभाग्यवती स्त्रियां जहां अपने पति की लम्बी आयु, संतान रक्षा के साथ-साथ अपने भाई की सुख-सम्रद्धि के लिये यह व्रत करती हैं, वहीं पुरूष लोग इस व्रत का पालन संतान, धन-धान्य और प्रतिष्ठा के लिए करते हैं।
सावन के व्रत रखने से विद्यार्थी के ज्ञान में होती है वृद्धि
सोमवार व्रत का नियमित रूप से पालन करने से भगवान शिव और देवी पार्वती की अनुकम्पा बनी रहती है। जीवन धन-धान्य से भरा रहता है और व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलती है। सावन सोमवार व्रत का विद्यार्थी के लिए विशेष महत्व है। इस व्रत को रखने से विद्यार्थी के ज्ञान में वृद्धि होती है।
सावन में शिवशंकर की पूजा
सावन के महीने में भगवान शंकर की विशेष रूप से पूजा की जाती है। इस दौरान पूजन की शुरूआत महादेव के अभिषेक के साथ की जाती है। अभिषेक में महादेव को जल, दूध, दही, घी, शक्कर, शहद, गंगाजल, गन्ना रस आदि से स्नान कराया जाता है। अभिषेक के बाद बेलपत्र, समीपत्र, दूब, कुशा, कमल, नीलकमल, ऑक मदार, जंवाफूल कनेर, राई फूल आदि से शिवजी को प्रसन्न किया जाता है। इसके साथ की भोग के रूप में धतूरा, भाँग और श्रीफल महादेव को चढ़ाया जाता है।
अभिषेक करने के पीछे पौराणिक कथा
महादेव का अभिषेक करने के पीछे एक पौराणिक कथा का उल्लेख है कि समुद्र मंथन के समय हलाहल विष निकलने के बाद जब महादेव इस विष का पान करते हैं तो वह मूर्च्छित हो जाते हैं। उनकी दशा देखकर सभी देवी-देवता भयभीत हो जाते हैं और उन्हें होश में लाने के लिए निकट में जो चीजें उपलब्ध होती हैं, उनसे महादेव को स्नान कराने लगते हैं। इसके बाद से ही जल से लेकर तमाम उन चीजों से महादेव का अभिषेक किया जाता है।
भगवान शिव को लस्सी का भोग भी लगाया जा सकता है। दही भगवान शिव को काफी प्रिय है। दही से भगवान शिव का अभिषेक भी किया जाता है। भगवान शिव को भोग लगाने के लिए दही में दूध डालकर इसे फेंट लें। इसके बाद इसमें चीनी डालकर अच्छे से घोल लें। आपकी लस्सी तैयार हो जाएगी। इसे भगवान शिव की पूजा करते समय भोग लगाएं।
एक हजार नीलकमल के बराबर एक बेलपत्र
भगवान शिव को भक्त प्रसन्न करने के लिए बेलपत्र और समीपत्र चढ़ाते हैं। इस संबंध में एक पौराणिक कथा के अनुसार जब 89 हजार ऋषियों ने महादेव को प्रसन्न करने की विधि परम पिता ब्रह्मा से पूछी तो ब्रह्मदेव ने बताया कि महादेव सौ कमल चढ़ाने से जितने प्रसन्न होते हैं, उतना ही एक नीलकमल चढ़ाने पर होते हैं। ऐसे ही एक हजार नीलकमल के बराबर एक बेलपत्र और एक हजार बेलपत्र चढ़ाने के फल के बराबर एक समीपत्र का महत्व होता है।
बेलपत्र ने दिलाया वरदान
बेलपत्र महादेव को प्रसन्न करने का सुलभ माध्यम है। बेलपत्र के महत्व में एक पौराणिक कथा के अनुसार एक भील डाकू परिवार का पालन-पोषण करने के लिए लोगों को लूटा करता था। सावन महीने में एक दिन डाकू जंगल में राहगीरों को लूटने के इरादे से गया। एक पूरा दिन-रात बीत जाने के बाद भी कोई शिकार नहीं मिलने से डाकू काफी परेशान हो गया। इस दौरान डाकू जिस पेड़ पर छुपकर बैठा था, वह बेल का पेड़ था और परेशान डाकू पेड़ से पत्तों को तोड़कर नीचे फेंक रहा था। डाकू के सामने अचानक महादेव प्रकट हुए और वरदान माँगने को कहा। अचानक हुई शिव कृपा जानने पर डाकू को पता चला कि जहाँ वह बेल पत्र फेंक रहा था उसके नीचे शिवलिंग स्थापित है। इसके बाद से बेलपत्र का महत्व और बढ़ गया।
22 जुलाई, दिन सोमवार: सावन माह का शुभारंभ, सावन का पहला सोमवार व्रत, महाकाल की पहली सवारी, कांवड़ यात्रा का प्रारंभ
23 जुलाई, दिन मंगलवार: सावन का पहला मंगला गौरी व्रत
24 जुलाई, दिन बुधवार: श्रावण संकष्टी चतुर्थी या गजानन संकष्टी चतुर्थी
27 जुलाई, दिन शनिवार: सावन कालाष्टमी, सावन जन्माष्टमी
29 जुलाई, दिन सोमवार: सावन का दूसरा सोमवार व्रत, महाकाल की दूसरी सवारी
30 जुलाई, दिन मंगलवार: सावन का दूसरा मंगला गौरी व्रत
31 जुलाई, दिन बुधवार: कामिका एकादशी
1 अगस्त, दिन गुरुवार: गुरु प्रदोष व्रत या सावन का पहला प्रदोष व्रत
2 अगस्त, दिन शुक्रवार: सावन शिवरात्रि
4 अगस्त, दिन रविवार: सावन अमावस्या या हरियाली अमावस्या
5 अगस्त, दिन सोमवार: सावन का तीसरा सोमवार व्रत, महाकाल की तीसरी सवारी
6 अगस्त, दिन मंगलवार: सावन का तीसरा मंगला गौरी व्रत
7 अगस्त, दिन बुधवार: हरियाली तीज, स्वर्ण गौरी व्रत
8 अगस्त, दिन गुरुवार: विनायक चतुर्थी
9 अगस्त, दिन शुक्रवार: नाग पंचमी
10 अगस्त, दिन शनिवार: कल्कि जयंती
11 अगस्त, दिन रविवार: तुलसीदास जयंती
12 अगस्त, दिन सोमवार: सावन का चौथा सावन सोमवार व्रत, महाकाल की चौथी सवारी
13 अगस्त, दिन मंगलवार: सावन का चौथा मंगला गौरी व्रत, सावन की दुर्गाष्टमी
16 अगस्त, दिन शुक्रवार: श्रावण पुत्रदा एकादशी, वरलक्ष्मी व्रत, सिंह संक्रांति
17 अगस्त, दिन शनिवार: शनि प्रदोष व्रत, सावन का दूसरा प्रदोष व्रत
19 अगस्त, दिन सोमवार: सावन पूर्णिमा, रक्षाबंधन, राखी, सावन का पांचवां सोमवार व्रत, सावन का समापन, पंचक प्रारंभ, महाकाल की पांचवी सवारी, लवकुश जयंती, संस्कृत दिवस
सावन माह में शिवलिंग पर सफेद चावल या अक्षत चढ़ाने से धन लाभ होता है। सावन सोमवारी के दिन एक मुट्ठी अक्षत शिवजी को चढ़ाएं और इसके बाद यह अक्षत किसी गरीब को दान दे दें। ऐसा करने से रुपये-पैसों से जुड़ी समस्या दूर होती है। लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि चावल का कोई भी दाना टूटा हुआ न हो।