मण्डी : “मगरू महादेव” किसी को भी नहीं करते निराश; सबकी भरते हैं झोली …काष्ठकला के लिए भी विख्यात अदभुत मगरू मदेव मंदिर

मंदिर के भीतर शिव और पार्वती की पाषाण प्रतिमाएं दर्शनीय हैं

मगरू महादेव मंदिर,छतरी, थुनाग, मंडी छतरी गांव का मगरू महादेव मंदिर नामक भव्य स्मारक अपनी अदभुत  काष्ठकला के लिए विख्यात है। 13वीं शताब्दी में निर्मित इस मंदिर के भीतर शिव और पार्वती की पाषाण प्रतिमाएं दर्शनीय हैं वर्ष भर यहां मेलों का आयोजन होता रहता है और लोग दूर-दूर से यहां दर्शन के लिए आते हैं। यह गांव, करसोग से करीब 50 किलोमीटर और शिमला से लगभग 160 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस मंदिर का स्थापत्य पैगोडा व मण्डप शैली का मिश्रण है। इसका गर्भगृह पूर्ण वर्गाकार न हो कर, बदगुनिया (एक ऐसा वर्ग या आयत जिसके कोण 90 डिग्री में न हों) है।  गर्भगृह की दीवारें काठकुणी चिनाई से निर्मित हैं। इस भाग के ऊपर तीन-छत्ती पैगोडा छत है। गर्भगृह के चारों ओर अ-समान चौड़ाई के दो प्रदक्षिणा पथ हैं। गृहशिखर (Gabled) छत भाग, मण्डप व दोनों प्रदक्षिणा पथों को ढकता है। पैगोडा का शिखर वाला भाग, शंकुकार है और उसे लकड़ी के तख्तों की चार तहों, जिन पर समतल जस्ती लोहे की चादर लगी हैं, से ढका गया है।

काष्ठशिल्पी ने भारतीय काव्यों, रामायण व महाभारत के असंख्य प्रसंगों व विषय-क्षेत्रों को सफलतापूर्वक उकेरा है

मध्य-छत्त को लकड़ी के तख्तों की तीन तहों और ऊपर से स्लेट लगा कर ढका गया है। सबसे निचली छत को, जो कि अग्रभाग पर जाकर समाप्त होती है, को लकड़ी के तख्तों की दो तहों के उपर स्लेटों से ढका गया है। इस मंदिर के सबसे मनभावन मण्डप भाग में बारीक एवं सुशोभित ढंग से की गई लकड़ी की नक्काशी है। मण्डप में लकड़ी के उघड़े हुए हर ईंच भाग को बारीकी से नक्काशीकृत किया हुआ है, केवल एक आकृति ही नहीं जो स्थिर या जमी हुई हो, मानवरूप या पशुरूप हो, गतिविधि से भरी हुई हैं।  यहां तक की सर्प जो जिगजैग बनावट के साथ, तेज लहरीली गति से चलते हुए प्रतीत होते हैं वैसे ही हाथी व घोड़े भी अति उत्साहित हैं। काष्ठशिल्पी ने भारतीय काव्यों, रामायण व महाभारत के असंख्य प्रसंगों व विषय-क्षेत्रों को सफलतापूर्वक उकेरा है। उसने युद्ध सम्बंधी विषयों को विशेषकर रूचिकर रूप से प्रस्तुत किया है। यह बहुत ही सशक्त व लुभावने हैं। मण्डप की छत को बहुत प्रवीणता से गुम्बदाकार बनाया गया है। गुम्बद के रिम में खुदी नृत्यरत मानव आकृतियां व उससे अगली पट्ठी में लताओं और पुष्पों की अत्युत्तम नक्काशी की गई है।

आस्था का केंद्र

मंदिर में मेले लगते रहते हैं ,छतरी मेला सबसे प्रसिद्ध

यह मन्दिर दो छोटी छोटी नदियों के बीच छतरी नाम के स्थान पर स्थित है। यह एक खूबसूरत जगह पर,पहाड़ों से घिरा हुआ है। श्रद्धालु दूर-दूर से यहाँ मन्नत मांगने और पूजा करने आते हैं। मगरू महादेव किसी को भी निराश नहीं करते और सबकी झोली भर देते हैं।

मंदिर में मेले लगते रहते हैं,छतरी मेला उन में से सबसे प्रसिद्ध है। जो अगस्त महीने में दिनांक 15 से शुरू हो के 20 तक चलता है। यह मेला देखने लोग दूर -दूर से आते हैंमेले का मुख्य आकर्षण लोक गायक होते हैं,  जो मेले की शोभा को और बढ़ाते हैं।  इस मेले के अलावा इस मंदिर में और भी मेले होते हैं। जैसे छतरी लबी,छतरी व ठहिरषु। मंदिर में हर महीने (साजा) में लोग आते हैं और अपने दुःख बताते हैं। हर साल मगरू महादेव सभी आस पास के गावों की यात्रा करते हैं।

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