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अटूट आस्था व श्रद्धा के लिए विश्व विख्यात सराहन का "भीमाकाली मन्दिर"

अटूट आस्था व श्रद्धा का केंद्र सराहन का “भीमाकाली मन्दिर”

बुशहर राजवंश: सराहन गांव बुशहर रियासत की राजधानी रहा है। इस रियासत की सीमाओं में पूरा किन्नर देश आता था। मान्यता है किन्नर देश ही कैलाश है। बुशहर राजवंश पहले कामरू से सारे प्रदेश का संचालन करता था। राजधानी को स्थानांतरित करते हुए राजाओं ने शोणितपुर को नई राजधानी के रूप में चुना। कल का शोणितपुर ही आज का सराहन माना जाता है। अंत में राजा राम सिंह ने रामपुर को राज्य की राजधानी बनाया। बुशहर राजवंश की देवी भीमाकाली में अटूट श्रद्धा है। सराहन में आज भी राजमहल मौजूद है। एक पौराणिक गाथा के अनुसार शोणितपुर का सम्राट वाणासुर उदार दिल और शिवभक्त था जो राजा बलि के सौ पुत्रों में सबसे बड़ा था। उसकी बेटी उषा को पार्वती से मिले वरदान के अनुसार उसका विवाह भगवान कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध से हुआ। परंतु इससे पहले अचानक विवाह के प्रसंग को लेकर वाणासुर और श्रीकृष्ण में घमासान युद्ध हुआ था जिसमें वाणासुर को बहुत क्षति पहुंची थी। अंत में पार्वती जी के वरदान की महिमा को ध्यान में रखते हुए असुर राज परिवार और श्रीकृष्ण में सहमति हुई। तदोपरांत पिता प्रद्युम्न और पुत्र अनिरुद्ध के वंशजों की राज परंपरा चलती रही। महल में स्थापित भीमाकाली मंदिर के साथ अनेक पौराणिक कथाएं जुड़ी हैं जिनके अनुसार आदिकाल मंदिर के स्वरूप का वर्णन करना कठिन है परंतु पुरातत्ववेत्ताओं का अनुमान है कि वर्तमान भीमाकाली मंदिर सातवीं-आठवीं शताब्दी के बीच बना है। भीमाकाली शिवजी की अनेक मानस पुत्रियों में से एक है। मत्स्य पुराण में भीमा नाम की एक मूर्ति का उल्लेख आता है। एक अन्य प्रसंग है कि मां पार्वती जब अपने पिता दक्ष के यज्ञ में सती हो गई थीं तो भगवान शिव ने उन्हें अपने कंधे पर उठा लिया था। हिमालय में जाते हुए कई स्थानों पर देवी के अलग-अलग अंग गिरे। एक अंग कान शोणितपुर में गिरा और भीमाकाली प्रकट हुई। मंदिर के ब्राह्मणों के अनुसार पुराणों में वर्णन है कि कालांतर में देवी ने भीम रूप धारण करके राक्षसों का संहार किया और भीमाकाली कहलाई। कहा जाता है कि आदि शक्ति तो एक ही है लेकिन अनेक प्रयोजनों से यह भिन्न-भिन्न रूपों और नामों में प्रकट होती है जिसका एक रूप भीमाकाली है।

कैसे जाएं;-

ठंडा, शीतल जलवायु वाला स्थान सराहन आज भी शायद देवी कृपा से व्यवसायीकरण से बचा हुआ है। तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को सुगमता से यहां ठहरने और खाने-पीने की सुविधाएं प्राप्त हो जाती हैं। हिमपात के समय भले ही कुछ कठिनाइयां आएं अन्यथा भीमाकाली मंदिर में वर्ष भर जाया जा सकता है। शिमला से किन्नौर की ओर जाने वाले हिंदुस्तान-तिब्बत राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर 22 पर चलें तो एक बड़ा स्थान रामपुर बुशहर आता है जहां से सराहन 44 कि.मी. दूर है। कुछ आगे चलने पर ज्यूरी नामक स्थान से सराहन के लिए एक अलग रास्ता जाता है। ज्यूरी से देवी मंदिर की दूरी 17 कि.मी. है।हिमाचल प्रदेश के रामपुर बुशहर से करीब 30 किलोमीटर आगे सराहन नाम की जगह है जहां पर भीमाकाली माता का सुप्रसिद्ध मंदिर स्थित है । रामपुर से 17 किलोमीटर के करीब ज्यूरी नामक कस्बा पडता है जहां से सराहन के लिये रास्ता कटता है । सराहन नाम की जगह दोनो तरह से श्रेष्ठ है ।

धार्मिक लिहाज से देखा जाये तो यहां पर काली माता का विख्यात और प्राचीन मंदिर है जो कि अपने आप में अनुठी शैली में तो है ही करीब 1000 से 2000 वर्ष पुराना भी माना जाता है। दूसरा यदि कोई हिल स्टेशन के रूप में देखे तो ये पहाड़ों में बहुत ही सुंदर जगह है जहां पर ठंडे मौसम के अलावा शांति और सुकून से एक दिन से लेकर एक हफते तक भी आप आराम से बिता सकते हो।

रामपुर बुशहर के राजाओं की प्राचीन राजधानी के रूप में भी जाना जाता है सराहन

हिंदू और बौद्ध शैली का मिश्रण है ये मंदिर। प्राचीन मंदिर केवल आरती या विशेष मौको पर ही खुलता है। नया मंदिर 1943 में बनाया गया था। इसी परिसर में भैरो और नरसिंह जी को समर्पित दो अन्य मंदिर भी हैं पहाडो की बैकड्राप इस मंदिर की सुंदरता में चार चांद लगा देती है। इस मंदिर को शक्तिपीठो में भी गिना जाता है जहां पर देवी सती का बांया कान गिर गया था। इस लिहाज से ये मंदिर काफी महत्वपूर्ण बन जाता है। शिमला से करीब 175 किलोमीटर पड़ती है ये जगह। आम प्रचलित हिल स्टेशनों के मुकाबले यहां पर काफी शांति और नैसर्गिक सुंदरता है। सराहन शहर को रामपुर बुशहर के राजाओं की प्राचीन राजधानी के रूप में भी जाना जाता है।

मन्दिर के परिसर में भगवान रघुनाथ, नरसिंह और पाताल भैरव (लांकडा वीर) के अन्य महत्वपूर्ण मन्दिर भी हैं

मन्दिर के परिसर में भगवान रघुनाथ, नरसिंह और पाताल भैरव (लांकडा वीर) के अन्य महत्वपूर्ण मन्दिर भी हैं

यादवों के शासन काल में बनवाया गया था मंदिर

हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से 180 किलोमीटर दूर सराहन में व्‍यास नदी के तट पर स्थित है भीमाकाली मन्दिर, जो 51 शक्तिपीठों में से एक है। यह देवी तत्कालीन बुशहर राजवंश की कुलदेवी है जिसका पुराणों में उल्लेख मिलता है। यह मंदिर बेहद सुंदर है जहां कई भगवानों की मूर्ति को प्रर्दशित किया गया है। इस मंदिर को यादवों के शासन काल में बनवाया गया था। हर साल यहां बड़े स्‍तर पर काली पूजा की जाती है जिसमें लाखों लोग भाग लेते है।

एक पौराणिक गाथा के अनुसार शोणितपुर का सम्राट वाणासुर उदार दिल और शिवभक्त था जो राजा बलि के सौ पुत्रों में सबसे बडा था। उसकी बेटी उषा को पार्वती से मिले वरदान के अनुसार उसका विवाह भगवान कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध से हुआ। परन्तु इससे पहले अचानक विवाह के प्रसंग को लेकर वाणासुर और श्रीकृष्ण में घमासान युद्ध हुआ था जिसमें वाणासुर को बहुत क्षति पहुंची थी। अंत में पार्वती जी के वरदान की महिमा को ध्यान में रखते हुए असुर राज परिवार और श्रीकृष्ण में सहमति हुई। तदोपरान्त पिता प्रद्युम्न और पुत्र अनिरुद्ध के वंशजों की राज परम्परा चलती रही।

पुरातत्ववेत्ताओं का अनुमान: सातवीं-आठवीं शताब्दी के बीच बना है वर्तमान भीमाकाली मन्दिर

महल में स्थापित भीमाकाली मन्दिर के साथ अनेक पौराणिक कथाएं जुड़ी हैं जिनके अनुसार आदिकाल मन्दिर के स्वरूप का वर्णन करना कठिन है परन्तु पुरातत्ववेत्ताओं का अनुमान है कि वर्तमान भीमाकाली मन्दिर सातवीं-आठवीं शताब्दी के बीच बना है। भीमाकाली शिवजी की अनेक मानस पुत्रियों में से एक है। मत्स्य पुराण में भीमा नाम की एक मूर्ति का उल्लेख आता है। एक अन्य प्रसंग है कि मां पार्वती जब अपने पिता दक्ष के यज्ञ में सती हो गई थीं तो भगवान शिव ने उन्हें अपने कंधे पर उठा लिया था। हिमालय में जाते हुए कई स्थानों पर देवी के अलग-अलग अंग गिरे। एक अंग कान शोणितपुर में गिरा और भीमाकाली प्रकट हुई। मन्दिर के ब्राह्मणों के अनुसार पुराणों में वर्णन है कि कालांतर में देवी ने भीम रूप धारण करके राक्षसों का संहार किया और भीमाकाली कहलाई।

हिमाचल प्रदेश के भाषा व संस्कृति विभाग के एक प्रकाशन के अनुसार बुशहर रियासत तो बहुत पुरानी है ही, यहां का शैल

हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से 180 किलोमीटर दूर सराहन में व्‍यास नदी के तट पर स्थित है भीमाकाली मन्दिर

हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से 180 किलोमीटर दूर सराहन में व्‍यास नदी के तट पर स्थित है भीमाकाली मन्दिर

(स्लेट वाला पत्थर) भी अत्यंत पुराना है। भूगर्भवेत्ताओं के अनुसार, यह शैल एक अरब 80 करोड वर्ष का है और पृथ्वी के गर्भ में 20 किलोमीटर नीचे था। ठण्डा, शीतल जलवायु वाला स्थान सराहन आज भी शायद देवी कृपा से व्यवसायीकरण से बचा हुआ है। तीर्थयात्रियों और पर्यटकों को सुगमता से यहां ठहरने और खाने-पीने की सुविधाएं प्राप्त हो जाती हैं। हिमपात के समय भले ही कुछ कठिनाइयां आयें अन्यथा भीमाकाली मन्दिर में वर्ष भर जाया जा सकता है। शिमला से किन्नौर की ओर जाने वाले हिंदुस्तान-तिब्बत राष्ट्रीय राजमार्ग नम्बर 22 पर चलें तो एक बड़ा स्थान रामपुर बुशहर आता है जहां से सराहन 44 किलोमीटर दूर है। कुछ आगे चलने पर ज्यूरी नामक स्थान से सराहन के लिये एक अलग रास्ता जाता है। ज्यूरी से देवी मन्दिर की दूरी 17 किलोमीटर है।

वर्तमान में कोटशैली में बने पांच मंजिलों के दो भव्य भवन

भीमाकाली मंदिर अनेक विशिष्टताओं को अपने में समेटे हुए है जहाँ पर वर्ष भर लोगों का आना जाना लगा रहता है। मंदिर में वर्तमान में कोटशैली में बने पांच मंजिलों के दो भव्य भवन हैं। नए भवन की सबसे ऊपरी मंजिल में मूल प्रकृति आदि- शक्ति देवी कन्या रूप में पूजित है तथा उससे निचली मंजिल में सतीमाता का हिमालयपुत्री पर्वत रूप दिखाया गया है। अद्भुत पहाड़ी शैली में निर्मित इस मंदिर में कारीगरों की मेहनत तथा भव्य काष्ठशिल्प का हुनर देखने को मिलता है। मंदिर परिसर में भगवान रघुनाथ , नरसिंह तथा पाताल भैरव (लंकड़ा वीर ) के अन्य महत्वपूर्ण मंदिर भी हैं। राजधानी शिमला से ठियोग, कुमारसैन, रामपुर से ज्यूरी होने के पश्चात लगभग 160 किलोमीटर की दूरी तय करने पर आप यहां सराहन पहुंच सकते हैं।

यात्रा का बेहतर समय मार्च से सितम्बर का

श्री भीमकाली मंदिर ट्रस्ट की बागडोर सरकार के हाथों में है तथा इसी ट्रस्ट के अंतर्गत अन्य 27 मंदिर भी आते हैं। यात्रियों की बेहतर सेवा के लिए सभी वस्तुएं इस स्थान पर आसानी से मिल जाती हैं और सबसे बेहतर यह है कि यहां पर प्राइवेट होटल्स के इलावा मंदिर परिसर की भी सरायं है जिसे यात्री बहुत कम पैसे में किराये पर ले सकते हैं। और यहां से श्रीखण्ड पर्वत की चोटी को निहार सकतें हैं। पर्वतों के ऊपर माँ का यह मंदिर अति सुन्दर दार्शनिक स्थल है। यात्रा का बेहतर समय मार्च से सितम्बर का माना गया है।

भीमाकाली मन्दिर के साथ अनेक पौराणिक कथाएं

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