हिन्दू-बौद्ध शैलियों का संगम सराहन का “भीमाकाली मन्दिर”
हिमाचल जिसे देवभूमि के नाम से जाना जाता है। यहां बहुत से प्राचीन मंदिर हैं। हर मंदिर की अपनी खास महत्ता है। उन्हीं में से एक विश्वभर में प्रसिद्ध है सराहन का “भीमाकाली मन्दिर”। जहां इस मंदिर से लोगों की गहरी आस्था जुड़ी हुई है वहीं पर्यटन की दृष्टि से भी यह मन्दिर काफी विख्यात है। ऐसा माना जाता है कि जो भी भक्त भीमाकाली मन्दिर में आकर माँ के चरणों में शीश झुकाता है उसे अपार शांति का अनभुव होता है और माँ उसकी हर दुःख तकलीफ दूर करती है।
मन्दिर परिसर में भगवान रघुनाथ, नरसिंह और पाताल भैरव के अन्य महत्वपूर्ण मन्दिर
कहा जाता है कि राजाओं का यह निजी मन्दिर महल में बनवाया गया था जो अब एक सार्वजनिक स्थान है। मन्दिर के परिसर में भगवान रघुनाथ, नरसिंह और पाताल भैरव (लांकडा वीर) के अन्य महत्वपूर्ण मन्दिर भी हैं। लांकडा वीर को मां भगवती का गण माना जाता है। यह पवित्र मन्दिर लगभग सभी ओर से सेबों के बागों से घिरा हुआ है और श्रीखण्ड की पृष्ठभूमि में इसका सौंदर्य देखते ही बनता है।
बुशहर राजवंश की देवी भीमाकाली में अटूट श्रद्धा
सराहन गांव बुशहर रियासत की राजधानी रहा है। इस रियासत की सीमाओं में पूरा किन्नर देश आता था। मान्यता है किन्नर देश ही कैलाश है। बुशहर राजवंश पहले कामरू से सारे प्रदेश का संचालन करता था। राजधानी को स्थानांतरित करते हुए राजाओं ने शोणितपुर को नई राजधानी के रूप में चुना। कल का शोणितपुर ही आज का सराहन माना जाता है। अंत में राजा रामसिंह ने रामपुर को राज्य की राजधानी बनाया। बुशहर राजवंश की देवी भीमाकाली में अटूट श्रद्धा है। सराहन में आज भी राजमहल मौजूद है।
सराहन में एक ही स्थान पर भीमाकाली के दो मंदिर हैं। प्राचीन मंदिर किसी कारणवश टेढ़ा हो गया है।
सराहन में एक ही स्थान पर भीमाकाली के दो मंदिर
हिंदू और बौद्ध शैली में बना है भीमाकाली मंदिर
मंदिर पुराने मंदिर की शैली पर बनाया गया है। यहां 1962 में देवी मूर्ति की स्थापना हुई। इस मंदिर परिसर में तीन प्रांगण आरोही क्रम से बने हैं जहां देवी शक्ति के अलग-अलग रूपों को मूर्ति के रूप में स्थापित किया गया है। देवी भीमा की अष्टधातु से बनी अष्टभुजा वाली मूर्ति सबसे ऊपर के प्रांगण में है। भीमाकाली मंदिर हिंदू और बौद्ध शैली में बना है जिसे लकड़ी और पत्थर की सहायता से तैयार किया गया है। पगोडा आकार की छत वाले इस मंदिर में पहाड़ी शिल्पकारों की दक्षता देखने को मिलती है। दिवारों पर लकड़ी की सुंदर छिलाई करके हिंदू देवी-देवताओं के कलात्मक चित्र बनाए गए हैं। फूल पत्तियां भी दर्शाए गए हैं। मंदिर की ओर जाते हुए जिन बड़े-बड़े दरवाजों से गुजरना पड़ता है उन पर चांदी के बने उभरे रूप में कला के सुंदर नमूने देखे जा सकते हैं। भारत के अन्य भागों की तरह सराहन में भी देवी पूजा बड़ी धूमधाम से की जाती है, विशेषकर चैत्र और आश्विन नवरात्रों में। मकर संक्रांति, रामनवमी, जन्माष्टमी, दशहरा और शिवरात्रि आदि त्योहार भी बड़े हर्षोल्लास व श्रद्धा से मनाए जाते हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि भीमाकाली की प्राचीन मूर्ति पुराने मंदिर में ही है। हर कोई उसके दर्शन नहीं कर सकता। हिमाचल प्रदेश के भाषा व संस्कृति विभाग के एक प्रकाशन के अनुसार बुशहर रियासत तो बहुत पुरानी है ही, यहां का शैल (स्लेट वाला पत्थर) भी अत्यंत पुराना है।भूगर्भवेत्ताओं के अनुसार यह शैल एक अरब 80 करोड़ वर्ष का है और पृथ्वी के गर्भ में 20 किलोमीटर नीचे था।
सराहन के अमूल्य सांस्कृतिक वैभव का प्रतीक भीमाकाली मंदिर
समुद्र तल से 2165 मीटर की ऊंचाई पर बसे सराहन गांव को प्रकृति ने पर्वतों की तलहटी में अत्यंत सुंदर ढंग से सुसज्जित किया है। सराहन को किन्नौर का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है। यहां से 7 किलोमीटर नीचे सभी बाधाओं पर विजय पाकर लांघती और आगे बढ़ती सतलुज नदी है। इस नदी के दाहिनी ओर हिमाच्छादित श्रीखण्ड पर्वत श्रृंखला है। समुद्र तल से पर्वत की ऊंचाई 18500 फुट से अधिक है। माना जाता है कि यह पर्वत देवी लक्ष्मी के माता-पिता का निवास स्थान है। ठीक इस पर्वत के सामने सराहन के अमूल्य सांस्कृतिक वैभव का प्रतीक भीमाकाली मंदिर अद्वितीय छटा लिए स्थित है। राजाओं का यह निजी मंदिर महल में बनवाया गया था जो अब एक सार्वजनिक स्थान है। मंदिर के परिसर में भगवान रघुनाथ, नरसिंह और पाताल भैरव (लांकड़ा वीर) के अन्य महत्वपूर्ण मंदिर भी हैं। लांकड़ा वीर को मां भगवती का गण माना जाता है। यह पवित्र मंदिर लगभग सभी ओर से सेबों के बागों से घिरा हुआ है और श्रीखण्ड की पृष्ठभूमि में इसका सौंदर्य देखते ही बनता है।
बुशहर राजवंश:-
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