"गणेशोत्सव"......गणेश जी को संकट हरता क्यूँ कहा गया ?

गणेश चतुर्थी पर गजकेसरी और वैघृति योग: किन राशियों की चमकेगी किस्मत जानें.. : आचार्य महिंद्र कृष्ण शर्मा

“गणेशोत्सव”……गणेश जी को संकट हरता क्यूँ कहा गया?

गणेश चतुर्थी के दिन, भगवान गणेश को बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता के रूप में पूजा जाता है। यह मान्यता है कि भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष के दौरान भगवान गणेश का जन्म हुआ था।

कालयोगी आचार्य महिंद्र कृष्ण शर्मा

आचार्य महिंद्र कृष्ण शर्मा

शुभ महूर्त और शुभ योग

आचार्य महिंद्र कृष्ण शर्मा के अनुसार,गणेश चतुर्थी पर गजकेसरी और वैघृति योग बना है। यह योग 17 सितंबर को बना था, जोकि 20 सितंबर तक रहेगा। गणेश चतुर्थी पर बना यह योग मेष, मिथुन, मकर, कुंभ और मीन राशि वालों के लिए शुभ रहेगा भगवान गणेश की कृपा से आपको आर्थिक लाभ हो सकता है।

मेष, मिथुन, मकर राशि के लिए गणेश चतुर्थी अधिक शुभ होगी। अन्य राशियों के लिए सामान्य रहेगी, मगर गणेशजी की साधना से शुभ परिणाम आएंगे। गणेश के 12 नाम जप, अथर्व शीर्ष के नियमित पाठ से सभी मनोरथ पूर्ण होंगे। आचार्य महिंद्र कृष्ण शर्मा के अनुसार शुभ मुहूर्त 19 सितंबर को सुबह 11 बजकर 7 मिनट से दोपहर 01 बजकर 34 मिनट तक रहेगा। ऐसे में आप इस शुभ मुहूर्त के बीच में घर पर गणपति बप्पा का स्वागत कर सकते हैं।

चतुर्थी तिथि को चंद्रमा के देखने से बचना चाहिए। अगर चंद्रमा को देख लिया तो जिस तरह से श्रीकृष्ण को स्यमंतक मणि चुराने का कलंक लगा था, उसी तरह व्यक्ति पर झूठे आरोप लग जाते हैं। इसलिए अगर चंद्रमा को देख ही लिया तो स्यमंतक मणि की कथा को पढ़ने या सुनने से दोष मिट जाता है।

पूजा- विधि
इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें।
स्नान करने के बाद घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
इस दिन गणेश जी की प्रतिमा की स्थापना की जाती है।
गणपित भगवान का गंगा जल से अभिषेक करें।
गणपति की प्रतिमा की स्थापना करें।
संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें।
गणेश पूजा में सबसे पहले गणेश जी का प्रतीक चिह्न स्वस्तिक बनाया जाता है। गणेशजी प्रथम पूज्य देव हैं, इस कारण पूजन की शुरुआत में स्वस्तिक बनाने की परंपरा है।
भगवान गणेश को पुष्प अर्पित करें।
भगवान गणेश को दूर्वा घास भी अर्पित करें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दूर्वा घास चढ़ाने से भगवान गणेश प्रसन्न होते हैं।
भगवान गणेश को सिंदूर लगाएं।
भगवान गणेश का ध्यान करें।
गणेश जी को भोग भी लगाएं। आप गणेश जी को मोदक या लड्डूओं का भोग भी लगा सकते हैं।
भगवान गणेश की आरती जरूर करें।

गणेश

गणेश प्रतिमा बनाने का शस्त्रीय विधान: मंगलमूर्ति की मूर्ति शास्त्रीय विधिविधान से बनायीं जानी चाहिए। जिसमें मिटटी शुद्ध एवं पवित्र स्थान से ली गई हो मिटटी में गोबर, गंगाजल, तीर्थों का जल, तीर्थों की मिटटी, पंचगव्य, पंचामृत, दूर्वा के आलावा 56 प्रकार की औषधियों भी मिलायी जानी चाहिए। मिटटी गूथने से लेकर,गणेश आकर देने तक वैदिक मंत्रो का उच्चारण करना चाहिए मंगल मूर्ति को रंग देने के लिए सिंदूर, काजल, अबीर, गुलाल, हल्दी, भस्म का प्रयोग करें। किसी केमिकल या कलर का उपयोग वर्जित है गणेश प्रतिमा की स्थापना, प्राण प्रतिष्ठा विद्वान वैदिक ब्राह्मण पंडित से करवानी चाहिए सुबह शाम षोडशोपचार पूजन कर आरती करना चाहिए। इन बातों का रखें ध्यान: गणेश जी का रंग श्वेत है इस लिए इसी सिंदूरी या श्वेत रंग की प्रतिमा बनायें। दक्षिणावर्त सूंड वाले गणेश होने चाहिये। गणेश जी को तुलसी न चढ़ायें। इष्ट, साधना, प्रयोग अनुष्ठान के अनुसार गणेश प्रतिमा बनायें। मनोकामना पूर्ति के लिए 21 विशेष नाम मंत्रो के साथ मोदक चढ़ाने से हज़ार गणपति नामार्चन का फल मिलता है।

गणेश (तिल) चतुर्थी व्रत कथा: माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी गणेश चतुर्थी भी कहते हैं। इस दिन तिल चतुर्थी का व्रत किया जाता है। यह व्रत करने से घर-परिवार में आ रही विपदा दूर होती है, कई दिनों से रुके मांगलिक कार्य संपन्न होते है तथा भगवान श्रीगणेश असीम सुखों की प्राप्ति कराते हैं। इस दिन गणेश कथा सुनने अथवा पढ़ने का विशेष महत्व माना गया है। व्रत करने वालों को इस दिन यह कथा अवश्य पढ़नी चाहिए। तभी व्रत का संपूर्ण फल मिलता है।

संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कैसे करें…

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