‘उड़े जब-जब जुल्फें तेरी’..अभिनय के सम्राट “दिलीप कुमार”
‘उड़े जब-जब जुल्फें तेरी’..अभिनय के सम्राट “दिलीप कुमार”
एक कलाकार जिसने आते ही फ़िल्मी जगत में हलचल मचा दी वो हैं “दिलीप कुमार”
बॉलीवुड ऐसा नहीं था जैसा आज आप देख रहे हैं, इसको इस मुकाम तक पहुंचाने के लिए बहुत लोगों का अदद प्रयास रहा है। 1913-14 से शुरू हुआ ये सफ़र अभी तक जारी है और जारी रहेगा क्योंकि दोस्त, सिनेमा मनोरंजन और सीख देने का सबसे बड़ा माध्यम है। कलाकारों की कलाकारी से ले कर निर्देशकों ने अपने निर्देशन में भी खासे बदलाव किए, लेकिन एक कलाकार जिसने आते ही फ़िल्मी जगत में हलचल मचा दी वो हैं “दिलीप कुमार”
दिलीप कुमार जन्म- 11 दिसंबर, 1922 हिन्दी सिनेमा के प्रसिद्ध अभिनेता और राज्य सभा के पूर्व सदस्य रह चुके हैं। दिलीप कुमार का वास्तविक नाम ‘मोहम्मद युसुफ़ ख़ान’ है। दिलीप कुमार को अपने दौर का बेहतरीन अभिनेता माना जाता है, त्रासद भूमिकाओं के लिए मशहूर होने के कारण उन्हे ‘ट्रेजडी किंग’ भी कहा जाता था। दिलीप कुमार को भारतीय फ़िल्मों में यादगार अभिनय करने के लिए फ़िल्मों का सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार के अलावा पद्म भूषण, पद्म विभूषण और पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘निशान-ए-इम्तियाज़’ से सम्मानित किया गया है।
जन्म और बचपन
दिलीप कुमार का जन्म 11 दिसम्बर, 1922 को वर्तमान पाकिस्तान के पेशावर शहर में हुआ था। उनके बचपन का नाम ‘मोहम्मद युसूफ़ ख़ान था। उनके पिता का नाम लाला ग़ुलाम सरवर था जो फल बेचकर अपने परिवार का ख़र्च चलाते थे। विभाजन के दौरान उनका परिवार मुंबई आकर बस गया। उनका शुरुआती जीवन तंगहाली में ही गुजरा। पिता के व्यापार में घाटा होने के कारण वह पुणे की एक कैंटीन में काम करने लगे थे। यहीं देविका रानी की पहली नज़र उन पर पड़ी और उन्होंने दिलीप कुमार को अभिनेता बना दिया। देविका रानी ने ही ‘युसूफ़ ख़ान’ की जगह उनका नया नाम ‘दिलीप कुमार’ रखा। पच्चीस वर्ष की उम्र में दिलीप कुमार देश के नंबर वन अभिनेता के रूप में स्थापित हो गए थे।
दिलीप कुमार (युवावस्था में) ,फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत
दिलीप कुमार ने फ़िल्म “ज्वार भाटा” से अपने फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत की। हालांकि यह फ़िल्म सफल नहीं रही। उनकी पहली हिट फ़िल्म “जुगनू” थी। 1947 में रिलीज़ हुई इस फ़िल्म ने बॉलीवुड में दिलीप कुमार को हिट फ़िल्मों के स्टार की श्रेणी में लाकर खड़ा कर
दिलीप कुमार ने फ़िल्म “ज्वार भाटा” से अपने फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत की
दिया। 1949 में फ़िल्म “अंदाज़” में दिलीप कुमार ने पहली बार राजकपूर के साथ काम किया। यह फ़िल्म एक हिट साबित हुई। दीदार (1951) और देवदास (1955) जैसी फ़िल्मों में गंभीर भूमिकाओं के लिए मशहूर होने के कारण उन्हें ट्रेजडी किंग कहा जाने लगा। मुग़ले-ए-आज़म (1960) में उन्होंने मुग़ल राजकुमार जहाँगीर की भूमिका निभाई। “राम और श्याम” में दिलीप कुमार द्वारा निभाया गया दोहरी भूमिका (डबल रोल) आज भी लोगों को गुदगुदाने में सफल साबित होता है। 1970, 1980 और 1990 के दशक में उन्होंने कम फ़िल्मों में काम किया। इस समय की उनकी प्रमुख फ़िल्में थीं: क्रांति (1981), विधाता (1982), दुनिया (1984), कर्मा (1986), इज़्ज़तदार (1990) और सौदागर (1991)। 1998 में बनी फ़िल्म “क़िला” उनकी आखिरी फ़िल्म थी।
दिलीप कुमार अपने आप में सेल्फमेडमैन की जीती-जागती मिसाल
दिलीप कुमार अपने आप में सेल्फमेडमैन (स्वनिर्मित मनुष्य) की जीती-जागती मिसाल हैं। उनकी ‘निजी ज़िन्दगी’ हमेशा कौतुहल का विषय रही, जिसमें रोजमर्रा के सुख-दुःख, उतार-चढ़ाव, मिलना-बिछुड़ना, इकरार-तकरार सभी शामिल थे। ईश्वर-भीरू दिलीप कुमार को साहित्य, संगीत और दर्शन की अभिरुचि ने गंभीर और प्रभावशाली हस्ती बना दिया।
अभिनय के सम्राट
शहीद, अंदाज़, आन, देवदास, नया दौर, मधुमती, यहूदी, पैग़ाम, मुग़ल-ए-आजम, गंगा-जमना, लीडर तथा राम और श्याम जैसी फ़िल्मों के सलोने नायक दिलीप कुमार स्वतंत्र भारत के पहले दो दशकों में लाखों युवा दर्शकों के दिलों की धड़कन बन गए थे। सभ्य, सुसंस्त, कुलीन इस अभिनेता ने रंगीन और रंगहीन (श्वेत-श्याम) सिनेमा के पर्दे पर अपने आपको कई रूपों में प्रस्तुत किया। असफल प्रेमी के रूप में उन्होंने विशेष ख्याति पाई, लेकिन यह भी सिद्ध किया कि हास्य भूमिकाओं में वे किसी से कम नहीं हैं। वे ट्रेजेडी किंग भी कहलाए और ऑलराउंडर भी। उनकी गिनती अतिसंवेदनशील कलाकारों में की जाती है, लेकिन दिल और दिमाग के सामंजस्य के साथ उन्होंने अपने व्यक्तित्व और जीवन को ढाला। पच्चीस वर्ष की उम्र में दिलीप कुमार देश के नंबर वन अभिनेता के रूप में स्थापित हो गए थे। वह आज़ादी का उदयकाल था। शीघ्र ही राजकपूर और देव आनंद के आगमन से ‘दिलीप-राज-देव’ की प्रसिद्ध त्रिमूर्ति का निर्माण हुआ। ये नए चेहरे आम सिने दर्शकों को मोहक लगे। इनसे पूर्व के अधिकांश हीरो प्रौढ़ नजर आते थे।
दिलीप कुमार अच्छे पटकथा लेखक भी
इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि अभिनय में सबसे ज़्यादा नकल दिलीप कुमार के अभिनय की ही हुई है। शायद यह कम लोगों को ही पता हो कि दिलीप कुमार अच्छे पटकथा लेखक भी हैं। अपनी इस प्रतिभा का प्रदर्शन उन्होंने फ़िल्म ‘लीडर’ में किया था। हालांकि लीडर कामयाब फ़िल्म नहीं थी, लेकिन उसकी कहानी ऐसी थी, जिसमें भविष्य के संकेत छिपे थे। उसमें वोट और राजनीति के सही चेहरे को दिखाया गया था। दिलीप कुमार ने फ़िल्मालय स्टूडियो में एक पेड़ के नीचे बैठकर लीडर की पटकथा लिखी थी।
दिलीप कुमार ने 1966 में प्रसिद्ध अभिनेत्री सायरा बानो से शादी की
दिलीप कुमार ने 1966 में प्रसिद्ध अभिनेत्री सायरा बानो से शादी की
दिलीप कुमार ने 1966 में प्रसिद्ध अभिनेत्री सायरा बानो से शादी की थी। जिस समय दिलीप कुमार और सायरा बानो की शादी हुई थी उस समय सायरा बानो 22 साल और दिलीप साहब 44 साल के थे। आज यह जोड़ी बॉलीवुड की सबसे प्रसिद्ध जोड़ियों में से एक है। जब लोगों ने अखबारों में यह पढ़ा कि दिलीप कुमार अभिनेत्री सायरा बानो से शादी कर रहे हैं, तो वे चौंक गए। वैसे, उनका चौंकना स्वाभाविक ही था, क्योंकि शादी से पहले तक दिलीप कुमार ने सायरा बानो के साथ एक भी फ़िल्म नहीं की थी। दोनों में न दोस्ती थी और न ही मिलना-जुलना था। सबसे बड़ी बात यह है कि दोनों की उम्र में बहुत बड़ा फ़र्क़ था। एक और सच यह था कि उन दिनों फ़िल्मी पत्रिकाएं सायरा बानो का नाम भी उनके सहअभिनेता राजेंद्र कुमार से जोड़ रही थीं।
सायरा बानो उन नसीम बानो की बेटी हैं, जिन्होंने सोहराब मोदी की फ़िल्म पुकार में मलिका नूरजहां का किरदार निभाकर अपनी ख़ूबसूरती से सबको चकाचौंध कर दिया था। इस फ़िल्म के बाद नसीम बानो के साथ परी चेहरा का विशेषण जुड़ गया। सायरा जब पढ़ाई पूरी करके मुंबई लौटीं, तो अम्मी ने सायरा को अपने कदमों पर चलाया। पुराने मित्र सुबोध मुखर्जी से कहकर जंगली की हीरोइन बनवा दिया। रातोंरात सायरा स्टार बन गई। जंगली की कामयाबी के कुछ दिनों बाद एक पार्टी में सायरा ने जब दिलीप कुमार को देखा, तो मां से कहा, अम्मी दिलीप साहब से मिलाओ न। नसीम ने मिलाया, यूसुफ साहब, यह है मेरी बेटी सायरा। सायरा ने आदाब किया। कानों में धीरे से खुश रहो के लफ्ज घुल गए। इस मुलाकात के दौरान दरअसल, सायरा ने यह सोचा था कि दिलीप कुमार जंगली की कामयाबी की बधाई देंगे, लेकिन उन्होंने दो लफ्ज बोलने के बाद कोई तवज्जो नहीं दी। अलबत्ता नसीम बानो से बात जरूर करते रहे। सायरा दिलीप कुमार की जबरदस्त फैन थीं। इतनी कि जब लंदन में स्कूली पढ़ाई कर रही थीं, तो उन्होंने पत्र-पत्रिकाओं में से तस्वीरें काटकर दीवारों पर चिपका लिए थे, लेकिन वे दिलीप कुमार के साथ कभी हीरोइन बनेंगी, इसकी उन्हें कोई उम्मीद नहीं थी। वजह दोनों में उम्र का अंतर। शादी की बात तो सायरा के दिमाग में आने का सवाल ही नहीं था। हां, उनकी यह तमन्ना जरूर थी कि दिलीप साहब के साथ कम से कम एक फ़िल्म जरूर करूं।
दिलीप साहब से बात करने के लिए एक पार्टी में सायरा ने हैंडशेक के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया, लेकिन तब तक दिलीप आदाब कह चुके थे। मजबूरन सायरा को हाथ वापस लेना पड़ा। उन दिनों कुछ लोगों का मानना यह था कि सायरा के राजेंद्र कुमार से रिश्ते जुड़ने की खबरों से उनकी मां नसीम बानो परेशान थीं। राजेंद्र कुमार जुबली कुमार के नाम से कामयाब हीरो जरूर हो गए थे, लेकिन वे शादीशुदा ही नहीं, एक बेटे के बाप भी थे। कुछ लोगों ने इस रिश्ते को सांप्रदायिक रंग देने की भी कोशिश की। इन सबसे परेशान हो नसीम बानो ने अपनी बेटी के हाथ पीले करने का फैसला किया। जाहिर है कि बेटी के लिए नसीम बानो कोई कद्दावर दामाद ढूंढतीं-एक ऐसा व्यक्ति, जिसका रुतबा हो, इज्जत हो और जो उनकी लाडली को वह सब दे सके, जो एक ऊंचे घराने की दुल्हन को मिलना चाहिए। इस नजरिए से दिलीप कुमार सही पसंद थे। वे कुंवारे थे और बॉलीवुड के सबसे कद्दावर आर्टिस्ट माने जाते थे। अगर कोई कसर थी, तो वह थी उम्र की, क्योंकि सायरा से वे काफ़ी बड़े थे। सायरा को ‘सस्ता ख़ून महंगा पानी’ की शूटिंग से बुलाया गया। मां की पसंद पर बेटी ने भी हां की मुहर तुरंत लगा दी। दिलीप-सायरा की शादी कराने का सारा श्रेय नसीम बानो को ही जाता है।
सायरा से बात करने से पहले नसीम ने दिलीप से रिश्ते की बात की। उन्होंने कहा, पहले बेटी की रज़ामंदी तो ले लीजिए। नसीम बानो ने
सायरा को अपने आइडल स्टार के साथ गोपी, सगीना, बैराग, दुनिया जैसी सुपरहिट फ़िल्मों में काम करने का अवसर भी मिला
कहा, शादी! सायरा तो आपकी हीरोइन बन जाती, तो अपने को धन्य मानती। यहां तो बात हो रही है दिलीप की असली ज़िंदगी की हीरोइन बनने की। पहले तो सायरा को लगा कि अम्मी मजाक कर रही हैं, लेकिन जब यकीन हो गया कि बात सचमुच शादी की है और दिलीप की मंजूरी मिल चुकी है, तब तो जैसे सायरा के पंख लग गए। उन्होंने दिलीप को फोन किया। रिश्ते के लिए मुबारकबाद दी और शुक्रिया सुनकर शादी की तारीख पूछ बैठीं। जवाब मिला, सास से पूछिए। दरअसल, एक मुलाकात के दौरान नसीम बानो ने यह बताया था कि उनके मन में चार महीना पहले ही यह खयाल आया था कि सायरा के हाथ में हकीकत में शादी की मेहंदी लगे, लेकिन उन्होंने पल भर के लिए भी यह नहीं सोचा था कि उनकी तमन्ना इतनी जल्द पूरी हो जाएगी। शादी धूमधाम से हुई। दिलीप घोड़े पर सवार होकर बैंड बाजे के साथ अपने बंगले से निकल कर नसीम बानो के बंगले पर पहुंचे। क़ाज़ीने निकाह कराया। दावतें हुई सायरा के यहां और दिलीप के यहां भी। इस शादी ने सायरा बानो को अपने वक्त के सबसे बड़े अदाकार की बीवी बनने का मौका दिया। सच तो यह है कि बाद के दिनों में सायरा को अपने आइडल स्टार के साथ गोपी, सगीना, बैराग, दुनिया जैसी सुपरहिट फ़िल्मों में काम करने का अवसर भी मिला।
दिलीप कुमार के साथ काम करना हर कलाकार के लिए एक सपना
दिलीप कुमार के साथ काम करना हर कलाकार के लिए एक सपना
दिलीप कुमार के साथ काम करना हर कलाकार के लिए एक सपना होता है। ये सपना कम कलाकारों का ही पूरा हो पाया है क्योंकि दिलीप कुमार ने बेहद कम फ़िल्में की। साथ ही कुछ कलाकार उनके सामने आने से इसलिए बचते रहे क्योंकि वे दिलीप साहब के सामने कमज़ोर नहीं लगना चाहते थे। जिन प्रमुख कलाकारों ने उनके साथ काम किया है, वे इस प्रकार हैं :
राज कपूर और देवानंद से दोस्ती
दिलीप साहब की देवानंद और राज कपूर दोनों से दोस्ती थी। लेकिन राज साहब के साथ उनके बड़े नज़दीकी रिश्ते थे। दोनों ही
दिलीप साहब की देवानंद और राज कपूर दोनों से गहरी दोस्ती
पाकिस्तान के पेशावर शहर में एक ही मोहल्ले, एक ही सड़क के रहने वाले थे। बिलकुल भाइयों जैसा रिश्ता था उनका। देव साहब थोड़ा अलग किस्म के शख़्स थे, लेकिन उनके साथ भी साहब ने बड़ी दोस्ती निभाई।
एक बार देव अपनी फ़िल्म ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ की शूटिंग के सिलसिले में मुमताज के साथ काठमांडू जा रहे थे, तब किसी पार्टी ने मुसीबत खड़ी कर दी और ऐलान किया कि वो इस फ़िल्म की शूटिंग नहीं होने देंगे। वो लोग देव को रोकने एयरपोर्ट तक पहुंच गए, तब दिलीप जी एयरपोर्ट तक गए और देव की हिफाज़त में वहां खड़े रहे। सायरो बानो और दिलीप साहब दोनों ने फ़िल्म इंडस्ट्री के कई लोगों को इकट्ठा किया और देव के लिए एयरपोर्ट में जाकर डट गए। तब जाकर सही सलामत देव काठमांडू रवाना हो सके।
सम्मान और पुरस्कार:दिलीप कुमार का नाम सबसे ज़्यादा पुरस्कार पाने वाले भारतीय अभिनेता के रूप में “गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स” में दर्ज़
आज ज़्यादातर लोगों को इस बात पर आश्चर्य होता है कि इस महानायक ने सिर्फ 54 फ़िल्में क्यों की। लेकिन इसका उत्तर है दिलीप कुमार ने अपनी छवि का सदैव ध्यान रखा और अभिनय स्तर को कभी गिरने नहीं दिया। इसलिए आज तक वे अभिनय के पारसमणि बने हुए हैं जबकि धूम-धड़ाके के साथ कई सुपर स्टार, मेगा स्टार आए और आकर चले गए। दिलीप कुमार ने अभिनय के माध्यम से राष्ट्र की जो सेवा की, उसके लिए भारत सरकार ने उन्हें 1991 में पद्म भूषण, 2015 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया है और 1995 में फ़िल्म का सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान ‘दादा साहब फालके अवॉर्ड’ भी प्रदान किया। पाकिस्तान सरकार ने भी उन्हें 1997 में ‘निशान-ए-इम्तियाज’ से नवाजा था, जो पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। 1997 में ही उन्हें भारतीय सिनेमा के बहुमूल्य योगदान देने के लिए ए.नटी रामाराव पुरस्कार दिया गया, जबकि 1998 में समाज कल्याण के क्षेत्र में योगदान के लिए रामनाथ गोयनका पुरस्कार दिया गया। दिलीप कुमार, तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से सम्मानित भी हुए हैं। दिलीप कुमार का नाम सबसे ज़्यादा पुरस्कार पाने वाले भारतीय अभिनेता के रूप में “गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स” में दर्ज़ है।
फ़िल्मफेयर पुरस्कार: हासिल कर चुके हैं आठ बार फ़िल्म फेयर से सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार
सम्मान और पुरस्कार: दिलीप कुमार का नाम सबसे ज़्यादा पुरस्कार पाने वाले भारतीय अभिनेता के रूप में “गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स” में दर्ज़
1953 में फ़िल्म फेयर पुरस्कारों के श्रीगणेश के साथ दिलीप कुमार को फ़िल्म ‘दाग’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार दिया था। अपने जीवनकाल में दिलीप कुमार कुल आठ बार फ़िल्म फेयर से सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार पा चुके हैं और यह एक कीर्तिमान है जिसे अभी तक तोड़ा नहीं जा सका। अंतिम बार उन्हें सन् 1982 में फ़िल्म ‘शक्ति’ के लिए यह पुरस्कार दिया गया था, जबकि फ़िल्मफेयर ने ही उन्हें 1993 में राज कपूर की स्मृति में लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड दिया।
दिलीप कुमार को गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने पद्म विभूषण सम्मान से नवाजा
मुंबई: गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने रविवार को वेटरन एक्टर दिलीप कुमार के मुंबई स्थित घर जाकर उन्हें पद्म विभूषण सम्मान से
नवाजा। इस मौके पर दिलीप कुमार के साथ मौजूद उनकी पत्नी सायरा बानो थीं।
25 जनवरी को हुआ था एलान
दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन को पद्म विभूषण देने का एलान सरकार की ओर से किया गया था। इसके बाद अप्रैल में राष्ट्रपति भवन में पुरस्कार वितरण समारोह हुआ, जिसमें दिलीप कुमार प्रेजेंट नहीं हो सके थे। इसी वजह से सरकार ने उन्हें घर पर ही यह सम्मान देने का फैसला किया।
कई फिल्मों में रहा अहम योगदान
93 साल के दिलीप कुमार को ‘मुग़ल-ए-आज़म’, ‘नया दौर’, ‘देवदास’, ‘मधुमति’, ‘गंगा-जमुना’, ‘आजाद’, ‘लीडर’ और ‘मशाल’ जैसी फिल्मों के लिए जाना जाता है। उन्हें 1991 में पद्म भूषण और 1994 में दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है।
दिलीप कुमार तक का सफ़र आसान नहीं था” जानिये इन 10 बातों से
दिलीप कुमार साहब ने अपना करियर की शुरूआत 1944 में आई फ़िल्म “ज्वार भाटा” से की।
असली नाम युसुफ़ ख़ान,दिलीप कुमार जी ने फ़िल्मों में काम करने के लिए अपना नाम बदल लिया था।
“अंदाज़” से सफ़लता: फ़िल्मी करियर की शुरूआत तो 1944 में ही हो गई थी लेकिन पहचान इन्हें 1949 की “अंदाज़” से मिली. इस फ़िल्म में उन्होंने राज कपूर के साथ काम किया था।
देवदास” से ट्रेजिडी किंग: दिलीप साहब को “देवदास” और “दीदार” जैसी फ़िल्मों में दुखद भूमिका निभाने के बाद से “ट्रजिडी किंग” के नाम से जाना जाने लगा।
“शक्ति” के लिए फ़िल्मफ़ेयर: “एंग्री यंग मैन” के नाम से दर्शकों के बीच मशहूर अमिताभ बच्चन दिलीप कुमार जी को अपना गुरु मानते हैं। रमेश सिप्पी की फ़िल्म “शक्ति” में इन दोनों ने एक साथ काम किया था।
“दादा साहब फाल्के” से लेकर “निशान-ए-इम्तियाज़”: दिलीप कुमार जी को फ़िल्मी करियर में योगदान देने के लिए 1995 में “दादा साहब फाल्के” सम्मान से और 1998 में पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान “निशान-ए-इम्तियाज़” से नवाज़ा गया।
राज्य सभा के सदस्य: कला के क्षेत्र में बेहतर योगदान देने के लिए भारतीय सरकार ने उन्हें राज्य सभा की सदस्यता भी दी।
सायरा बानो से शादी: नसीम बानो की लड़की सायरा बानो से दिलीप कुमार लगभग 22 साल छोटी हैं लेकिन दोनों का प्यार हमउम्र ही है।
1980 में की थी दूसरी शादी: 1980 में दिलीप कुमार ने आसमां से दूसरी शादी की थी लेकिन ये शादी ज़्यादा समय तक चल नहीं पाई।
पाकिस्तान से आये: इनका जन्म पाकिस्तान के पेशावर में हुआ था, जब ये सीमाएं नहीं थी. दिलीप कुमार पाकिस्तान से आकर बॉलीवुड में अपनी जगह बनाने वाले पहले सुपरस्टॉर हैं।