- …क्यों दहक उठी “दिल्ली” ? दिल्ली की हिंसा अचानक तो नहीं हुई…!
- सवाल..! आखिर बसे बसाये शहर को उजाड़ने वाले दंगाई कौन थे? किसकी साजिश थी?
दिल्ली में नागरिकता संशोधन एक्ट के नाम पर हुई हिंसा की आग भले ही थम गई हो। मगर इस हिंसा की आग से कितने घर, कितने घर के चिराग और कितने बेगुनाह मासूम बेसहारा हो गए! उनके दर्द, उनकी पीड़ा का क्या? दिल्ली की सड़कों पर अभी भी दहशत का माहौल है। 22 से 26 फरवरी के बीच उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा में जो अराजकता देखने को मिली उसे अभी तक मुझे समझ नहीं आया कि बरसों से साथ रहने वाले लोगों में जो अपनापन और मित्रता, प्यार का जो रिश्ता था वो कुछ घण्टों में हिन्दू-मुस्लिम में कैसे तब्दील हो गया? हम सभी का हर धर्म से पहले एक-दूसरे के साथ इंसानी रिश्ता है। आखिर कुछ ही पलों में ये रिश्ता एक-दूसरे के खून का प्यासा किस तरह हो सकता है। आमजनों में हिन्दू-मुस्लिम की सोच कहाँ से पनप रही है। हम सब तो हिन्दुस्तानी है।
- हिन्दू-मुस्लिम, सिक्ख और ईसाई सभी हैं तो “इंसान”
हिन्दू-मुस्लिम या अन्य किसी भी धर्म की बात की जाए, लेकिन सोचने समझने और उस पर अमल करने की बात तो यह है कि हिन्दू-मुस्लिम, सिक्ख और ईसाई सभी तो “इंसान” हैं। धर्म के नाम पर लड़ाई करना, दंगे फैलाना, खून बहाना कौन से धर्म में लिखा है। किसी भी शख्स को कोई हक नहीं कि धर्म के नाम पर झूठी अफवाह फैलाकर इंसानियत को तोड़ने की कोशिश करे। भागदौड़ और दो वक्त की रोटी कमाने में जुटे लोगों के पास इतनी फुर्सत भी नहीं कि धर्म के नाम पर एक-दूसरे से लड़ें, यहाँ तो 42 लोगों को खूनी मौत मिली। आखिर ऐसी क्या साजिश रची जा रही है कि आम लोगों को इस आग में झोंका जा रहा है और दिल्ली चलाने वाले राजनीतिक लोग आग बुझ जाने के बाद अपनी-अपनी ओछी राजनीति में खुद को हमदर्दी का मसीहा दिखाने में जुटे हैं। आखिर क्यों?
जिस जगह रोज सुबह बच्चे साथ मिलकर खेलते और पढ़ते थे बड़े लोग सुबह की शुरुआत एक दूसरे की खैरियत-खबर लेकर करते थे वहां खून की होली क्यों खेली गयी? इस हिंसा की आग में 42 लोगों की जान चली गई, जबकि सैकड़ों की संख्या में लोग घायल हैं। एक ओर हम विकास के नये आयाम छू रहे हैं तो दूसरी ओर अपने ही अपने घर को फूंकने की साजिश रच रहे हैं।
- हिन्दुस्तान को अपने घर के लोगों से होने लगा है खतरा
दिल्ली पुलिस ने बीते सोमवार को दावा किया था कि दंगे सुनियोजित साजिश के तहत करवाए गए हैं। हिंसा ग्रस्त इलाकों में कई जगह बड़ी गुलेल जैसे पेट्रोल बम लॉन्चर, पेट्रोल बम, पत्थर और एसिड पाउच मिलने से सुनियोजित साजिश की आशंका पुख्ता भी होती है। लेकिन इसके पीछे की साजिश की किसी भी कड़ी का पुलिस ने अभी तक खुलासा नहीं किया है। कितनी दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि हिन्दुस्तान को अपने घर के लोगों से खतरा होने लगा है।
- बरसों साथ रहते “इंसान” अचानक बन गए “हिंदू-मुसलमान”
एक बसा-बसाया शहर हिंसा की आग में इस कदर झुलस गया कि बरसों साथ रहते “इंसान” अचानक हिंदू-मुसलमान बन गए। चाकुओं की नोक और बंदूक की गोलियों से एक-दूसरे को छलनी करते हुए चीख-पुखारों से उनकी ना रूह कांपी न दिल पिघले।
इस वक्त मेरा इस विषय पर खुद के विचार जाहिर करने का शायद सही वक्त है… अब न यहां सड़कों पर कोई दंगाइयों का शोर है, ना गोलियों की ताबड़-तोड़ आवाज है। ना हाथों में किसी के पत्थर हैं ना जलते घर, दुकानें, ना कोई चीखें ना कोई हिंदू-मुसलमान के नाम पर खून बहाने वाले दंगेबाज। नफरत की आग में सुलगती दिल्ली का यह शहर अब सिर्फ सन्नाटा ओढ़े हुए है। सड़कें सुनसान, दंगे की आग में भेंट चढ़ी जिन घरों के 42 लोगों की लाशें हैं उन घरों में मातम, सवाल और आसूं के सिवा कुछ नहीं है अब…! सवाल तो हर इंसान के मन में है कि आखिर बसे बसाये शहर को उजाड़ने वाले दंगाई कौन थे? किसकी साजिश थी? दिल्ली की हिंसा अचानक तो नहीं हुई…!