रामपुर शहर का लवी मेला
अति प्राचीन काल से चला आ रहा व्यापारिक मेला रामपुर का “लवी”
हिमाचल प्रदेश मेलों व त्यौहरों के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। हर त्यौहार और मेले की अपनी एक खास महत्ता है। इतना ही नहीं बल्कि कुछ खास मेले व त्यौहार देश में ही नहीं बल्कि विश्वभर में अपनी एक खास पहचान कायम किए हुए है। इन्हीं में से अति प्राचीन काल से चला आ रहा व्यापारिक मेला रामपुर का “लवी” अपनी विश्वभर जाना जाता है। व्यापारिक मेलों का प्रदेश की आर्थिकी प्रगति में अहम योगदान है। यही वजह है इन मेलों के कारण ही स्थानीय उत्पादों को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है। इन्हीं में से हिमाचल का सबसे पुराना व्यापारिक मेला “लवी” भी विश्वभर में अपनी एक खास पहचान कायम किए हुए है
लवी हिमाचल प्रदेश का सबसे पुराना व्यापारिक मेला है जो कि हर वर्ष नवंबर के प्रारंभ में रामपुर बुशैहर में मनाया जाता है। रामपुर को किन्नौर का द्वार भी कहा जाता है। लवी का मेला तीन दिन चलता है। इस मेले में कच्चाी तथा आधी बनी ऊन, ऊनी-वस्त्र, पट्टी, नमदा, पश्मीना, चिलगोजा, घोड़े, बछेरे तथा खच्चरों आदि का लाखों रूपयों का व्यापार इन दिनों होता है।
पूरे देश से खरीदार रामपुर में इकट्ठे होते हैं क्योंकि ऊन, पशमीना, चिलगोजा तथा अन्य स्थानीय उत्पाद खरीद सकें जिनका भारत में ही नहीं विदेशों में भी बड़ी मांग है। ये पदार्थ
लवी का मेला तीन दिन चलता है।
किन्नौर, लाहौल, स्पिति और लद्दाख के लोगों द्वारा लाये जाते हैं इतना ही नहीं बल्कि पंजाब के मैदानी प्रदेशों से साधारण व्यापारिक वस्तुएं भी लेकर आते हैं जो हाथों-हाथ बिक जाती हैं। भले ही यह मेला करीब 300 वर्ष से समुचित रूप ये आयोजित किया जाता रहा है, लेकिन इसका जन्म इससे भी पुराना है। पुराने समय में बुशैहर के तिब्बत से अच्छे व्यापारिक संबंध थे। यह व्यापार इतना अधिक बढ़ा कि तिब्बत से आयातित माल की बिक्री के लिए लवी मेले का प्रचलन करना पड़ा।
प्राचीन काल में स्थानीय गांवों के लोग ऊंचे पहाड़ों पर पशु चराकर लौटने वाले चरवाहों के स्वागत के लिए अलाव जला कर रखते थे। आज तक भी यह परंपरा चली आ रही है। सारा दिन तेज व्यापारिक गतिविधियां चलती हैं परंतु शाम ढलते ही छोटे-छोटे अलावों के आसपास नृत्य और संगीत के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। यह मेला भी राज्य-स्तर का होता है।
यह भीतरी हिमालय में सबसे बड़ा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापारिक मेला है जो रामपुर शहर में शिमला से सौ किलो मीटर दूरी पर लगता है। यह हर वर्ष 25 कार्तिक को लगता है और तीन दिन तक रहता है। इस मेले में किन्नौर और लाहौल संस्कृति की झलक मिलती है। भारत के हर कोने से व्यापारी लाखों रूपए का व्यापार करते हैं। पशम, ऊन के बने पट्टू शालें, गुदमे आदि के अतिरिक्त चिलगोजे, बादाम, कालाजीरा, सेब का क्रय-विक्रय होता है।
यह भीतरी हिमालय में सबसे बड़ा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापारिक मेला
पंजाब से, लाहौल-स्पीति, कुल्लू, किन्नौर, लद्दाख से माल आता है और खूब क्रय-व्रिय होता है। यह व्यापारिक मेला पिछले तीन सौ वर्ष से अधिक समय से संगठित आधार पर मनाया जाता है। बुशहर के राजा केहर सिंह और तिब्बती सेनापति की सन्धि द्वारा स्थापित हुआ था जिसमें दोनों ओर के व्यापारियों को छूट थी। लवी शब्द लोई का अपभ्रंश है। लोई भेड़ों की ऊन कतरने को कहते हैं। इस मेले की मुख्य वस्तु ऊन और ऊनी माल होता है।
बुशहर रियायत का इतिहास जितना पुराना है इस रियासत का शैल उससे भी कहीं प्राचीन है। उनका दावा है कि रियासत का शैल अस्सी करोड़ वर्ष पुराना है। माना जाता है कि यह पहाड़ कभी पृथ्वी की सतह से बीस किलोमीटर नीचे था। इस शैल का क्षेत्र किन्नर देश तक फैला था। शोणितपुर इस राज्य की राजधानी थी जो अब सराहन के नाम से जानी जाती है। इस राज्य का शासक भगवान शंकर का अन्नय भक्त और उदार स्वभाव वाला वाणासुर था। वह भक्त प्रहलाद का पौत्र और राजा बलि के 100 पुत्रों में सबसे बड़ा बेटा था।