भारतीय वैदिक साहित्य में हिन्दी वर्णमाला के प्रत्येक अक्षर को मंत्र की संज्ञा दी गई है। वहीं नाद ब्रह्म है। प्रत्येक मंत्र में कितने अक्षर होंगे, इसका चुनाव मंत्र के फल के अनुसार किया गया है। मंत्र में स्थित अक्षरों के अनुसार इसके फल में परिवर्तन होता है। उदाहरणरार्थ ऊँ नम: शिवाय में 6 अक्षर हैं इसलिए यह षडाक्षरी मंत्र है। यदि इसमे ऊँ न प्रयुक्त किया जाए तो यह पंचाक्षरी मंत्र बन जाता है। इसी प्रकार ऊँ नमो नारायणाय अष्टक्षरी मंत्र है तथा ऊँ नमो भगवते वसुदेवाय द्वादसक्षरी मंत्र है। मंत्रों मे प्रयुक्त अक्षरों की संख्या के आधार पर मंत्रों का उचित चयन कर के संबन्धित देवी देवताओं का विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आह्वान किया जाता है।
मंत्र वह माध्यम है जिनके द्वारा विभिन्न देवी देवताओं का आह्वान किया जाता है, उनसे प्रार्थना, याचना की जाती है जिससे वे जातक के शारीरिक, मानसिक, भौतिक एवं आध्यात्मिक विकास मे संतुलन स्थापित कर सकें तथा जातक के जीवन को सुखी बना सकें। मंत्र शास्त्र को एक पूर्ण विकसित आध्यात्मिक विज्ञान की संज्ञा दी जा सकती है। मंत्रों का सही चुनाव एवं सही उच्चारण जातक के शारीरिक, मानसिक, भौतिक एवं आध्यात्मिक विकास में संतुलन स्थापित करता है एवं जातक के जीवन मे सुख, समृद्धि एवं शांति स्थापित करता है।
यदि मंत्रों को पूर्ण वैदिक रीति से पूर्ण शुद्धता एवं श्रद्धा के साथ उच्चरित किया जाए तो इनसे निकलने वाली तरंगें संबन्धित दैविक शक्ति की तरंगों से संपर्क स्थापित करती हैं। हमारे ऋषियों को इन तरंगों की जानकारी थी तथा उन्होंने इन तरंगों से संपर्क स्थापित करने के लिए ही विभिन्न मंत्रों की खोज की। मंत्रों का सही रूप से उच्चारण मानव शरीर मे सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह को बढ़ाता है एवं मानव शरीर से निकलने वाली तरंगें संबन्धित दैवीय तरंगों के संपर्क में आकार मानव मस्तिस्क पर सकारात्मक प्रभाव डालतीं हैं। परंतु शब्दों के क्रम में विपर्याय होने पर नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह भी हो सकता है। विभिन्न यंत्रों को सक्रिय एवं शक्ति पूर्ण बनाने की क्षमता भी मंत्रों में ही है, उनके बिना यंत्र मात्र आकार रूप में ही रह जाएंगे।