- 12 साल बाद सोमवार को पड़ रही है “महाशिवरात्रि” : आचार्य महेन्द्र कृष्ण शर्मा
वैसे तो हर महीने में शिवरात्रि की तिथि होती है लेकिन फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को भगवान शिव का वरदान प्राप्त है और यह तिथि भगवान शिव की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित मानी गई है। शास्त्रों में कहा गया है कि महाशिवरात्री की रात देवी पार्वती और भगवान भोलेनाथ का विवाह हुआ था इसलिए यह शिवरात्रि वर्ष भर की शिवरात्रियों में सबसे उत्तम है। इस साल की महाशिवरात्रि अद्भुत संयोग लेकर आ रही है। इस बार महाशिवरात्रि का पर्व 7 मार्च, सोमवार को मनाया जाएगा। 12 वर्ष बाद इस तरह का संयोग निर्मित हुआ है जब शिवरात्रि सोमवार को पड़ रही है। सोमवार का दिन महादेव की आराधना के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है, इसलिए यह तिथि अपने आप में श्रेष्ठ है। महाशिवरात्रि फाल्गुन कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी की तिथि घनिष्ठा नक्षत्र में मनाई जाएगी। इस वर्ष महाशिवरात्रि का महत्व कई गुना अधिक होगा। यह भी एक संयोग है कि इसे सिंहस्थ कुंभ का योग भी मिल रहा है। सालों बाद सिंहस्थ का योग निर्मित हुआ है। देव गुरु बृहस्पति, सिंह राशि में गोचर करेंगे। इस प्रकार से यह तिथि धार्मिक कार्यों की दृष्टि से खास है। इस दौरान महाशिवरात्रि की पूजा करने से भगवान प्रसन्न होंगे। साथ ही अपने भक्तों पर विशेष कृपा करेंगे।
महाशिवरात्रि का पर्व दिन भर पूजन के साथ ही रात भर महादेव की भक्ति करने का होता है। महाशिवरात्रि का अर्थ ही होता है रात्रि में जागरण कर शिव की आराधना करना। महाशिवरात्रि की तिथि को रात में भजन-कीर्तन, शिव नाम जाप करने से भक्तों के कष्टों का अंत होगा। सोमवार को महाशिवरात्रि की तिथि होने से जिन राशि के जातकों की कुंडली में चंद्र देव की स्थिति कमजोर है वे जातक रात में दुग्ध से चंद्र देव को अर्घ्य अर्पित करते हुए आराधना कर इस दोष से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं।
महाशिवरात्रि के विषय में मान्यता है कि इस दिन भगवान भोलेनाथ का अंश प्रत्येक शिवलिंग में पूरे दिन और रात मौजूद रहता है। इस दिन शिव जी की उपासना और पूजा करने से शिव जी जल्दी प्रसन्न होते हैं। शिवपुराण के अनुसार सृष्टि के निर्माण के समय महाशिवरात्रि की मध्यरात्रि में शिव का रूद्र रूप प्रकट हुआ था। ज्योतिष की दृष्टि से भी महाशिवरात्रि की रात्रि का बड़ा महत्व है। भगवान शिव के सिर पर चन्द्रमा विराजमान रहता है। इस तरह शास्त्र और पुराण कहते हैं कि महाशिवरात्रि की रात का सृष्टि में बड़ा महत्व है। शिवरात्रि की रात का विशेष महत्व होने की वजह से ही शिवालयों में रात के समय शिवजी की विशेष पूजा अर्चना होती है।
चन्द्रमा को मन का कारक कहा गया है। कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की रात में चन्द्रमा की शक्ति लगभग पूरी तरह क्षीण हो जाती है जिससे तामसिक शक्तियां व्यक्ति के मन पर अधिकार करने लगती हैं जिससे पाप बढ़ता है। भगवान शंकर की पूजा से मानसिक बल प्राप्त होता है जिससे आसुरी और तामसिक शक्तियों के प्रभाव से बचाव होता है। रात्रि में शंकर जी का विशेष स्नेह होने का एक कारण यह भी माना जाता है कि भगवान शंकर संहारकर्ता होने के कारण तमोगुण के अधिष्ठिता यानी स्वामी हैं। रात्रि भी जीवों की चेतना को छीन लेती है और जीव निद्रा देवी की गोद में चले जाते हैं इसलिए रात को तमोगुणमयी कहा गया है। यही कारण है कि तमोगुण के स्वामी देवता भगवान शंकर की पूजा रात्रि में विशेष फलदायी मानी जाती है।
- घर पर कैसे करें शिवरात्रि का पूजन, जानें सरलतम विधि :आचार्य महेन्द्र कृष्ण शर्मा
महाशिवरात्रि पर्व पर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए भक्त-गण विविध उपाय करते हैं। लेकिन हर उपाय साधारण जनमानस के लिए सरल नहीं होते।
- आइये विस्तार से पूजा की विधि: घर पर ही महाशिवरात्रि पूजन की अत्यंत आसान विधि। यह पूजन विधि जितनी आसान है उतनी ही फलदायी भी। भगवान शिव अत्यंत सरल स्वभाव के देवता माने गए हैं अत: उन्हें सरलतम तरीकों से ही प्रसन्न किया जा सकता है।
- वैदिक शिव पूजन : भगवान शंकर की पूजा के समय शुद्ध आसन पर बैठकर पहले आचमन करें। यज्ञोपवित धारण कर शरीर शुद्ध करें। तत्पश्चात आसन की शुद्धि करें। पूजन-सामग्री को यथास्थान रखकर रक्षादीप प्रज्ज्वलित कर लें। अब स्वस्ति-पाठ करें।
- स्वस्ति-पाठ : स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा:, स्वस्ति ना पूषा विश्ववेदा:, स्वस्ति न स्तारक्ष्यो अरिष्टनेमि स्वस्ति नो बृहस्पति र्दधातु।
- इसके बाद पूजन का संकल्प कर भगवान गणेश एवं गौरी-माता पार्वती का स्मरण कर पूजन करना चाहिए।
- यदि आप रूद्राभिषेक, लघुरूद्र, महारूद्र आदि विशेष अनुष्ठान कर रहे हैं, तब नवग्रह, कलश, षोडश-मात्रका का भी पूजन करना चाहिए।
- संकल्प करते हुए भगवान गणेश व माता पार्वती का पूजन करें फिर नन्दीश्वर, वीरभद्र, कार्तिकेय (स्त्रियां कार्तिकेय का पूजन नहीं करें) एवं सर्प का संक्षिप्त पूजन करना चाहिए।
- इसके पश्चात हाथ में बिल्वपत्र एवं अक्षत लेकर भगवान शिव का ध्यान करें।
- भगवान शिव का ध्यान करने के बाद आसन, आचमन, स्नान, दही-स्नान, घी-स्नान, शहद-स्नान व शक्कर-स्नान कराएं।
- इसके बाद भगवान का एक साथ पंचामृत स्नान कराएं। फिर सुगंध-स्नान कराएं फिर शुद्ध स्नान कराएं।
- अब भगवान शिव को वस्त्र चढ़ाएं। वस्त्र के बाद जनेऊ चढाएं। फिर सुगंध, इत्र, अक्षत, पुष्पमाला, बिल्वपत्र चढाएं।
- अब भगवान शिव को विविध प्रकार के फल चढ़ाएं। इसके पश्चात धूप-दीप जलाएं।
- हाथ धोकर भोलेनाथ को नैवेद्य लगाएं।
- नैवेद्य के बाद फल, पान-नारियल, दक्षिणा चढ़ाकर आरती करें। (जय शिव ओंकारा वाली शिव-आरती)
- इसके बाद क्षमा-याचना करें।
- क्षमा मंत्र : आह्वानं ना जानामि, ना जानामि तवार्चनम, पूजाश्चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वर:।
इस प्रकार संक्षिप्त पूजन करने से ही भगवान शिव प्रसन्न होकर सारे मनोरथ पूर्ण करेंगे। घर में पूरी श्रद्धा के साथ साधारण पूजन भी किया जाए तो भगवान शिव प्रसन्न हो जाते हैं।
- महा शिवरात्रि व्रत विधि :
गरुड़ पुराण के अनुसार शिवरात्रि से एक दिन पूर्व त्रयोदशी तिथि में शिव जी की पूजा करनी चाहिए और व्रत का संकल्प लेना
चाहिए। इसके उपरांत चतुर्दशी तिथि को निराहार रहना चाहिए। महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव को जल चढ़ाने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है।
शिवरात्रि के दिन भगवान शिव की मूर्ति या शिवलिंग को पंचामृत से स्नान कराकर “ऊं नमो नम: शिवाय” मंत्र से पूजा करनी चाहिए। इसके बाद रात्रि के चारों प्रहर में शिवजी की पूजा करनी चाहिए और अगले दिन प्रात: काल ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण करना चाहिए। गरुड़ पुराण के अनुसार इस दिन भगवान शिव को बिल्व पत्र अर्पित करना चाहिए। भगवान शिव को बिल्व पत्र बेहद प्रिय हैं। शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव को रुद्राक्ष, बिल्व पत्र, भांग, शिवलिंग और काशी अतिप्रिय हैं।
भगवान शिव की पूजा-वंदना करने के लिए प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि (मासिक शिवरात्रि) को व्रत रखा जाता है। लेकिन सबसे बड़ी शिवरात्रि फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी होती है। इसे महाशिवरात्रि भी कहा जाता है। गरुड़ पुराण के अनुसार शिवरात्रि से एक दिन पूर्व त्रयोदशी तिथि में शिव जी की पूजा करनी चाहिए और व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इसके उपरांत चतुर्दशी तिथि को निराहार रहना चाहिए। महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव को जल चढ़ाने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। शिवरात्रि के दिन भगवान शिव की मूर्ति या शिवलिंग को पंचामृत से स्नान कराकर “ऊं नमो नम: शिवाय” मंत्र से पूजा करनी चाहिए। इसके बाद रात्रि के चारों प्रहर में शिवजी की पूजा करनी चाहिए और अगले दिन प्रात: काल ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देकर व्रत का पारण करना चाहिए।
गरुड़ पुराण के अनुसार इस दिन भगवान शिव को बेल पत्र तथा धतूरा अर्पित करना चाहिए जो भगवान शिव को बेहद प्रिय हैं। शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव को रुद्राक्ष, बेल पत्र, धतूरा , भांग, शिवलिंग और काशी अतिप्रिय हैं।
- महाशिवरात्रि व्रत कथा :
एक बार पार्वती जी ने भगवान शिवशंकर से पूछा, ‘ऐसा कौन सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्यु लोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?’ शिवजी ने पार्वती जी को ‘महा शिवरात्रि’ की व्रत कथा सुनाई –
प्राचीन काल में ,किसी जंगल में गुरुद्रुह नाम का एक शिकारी रहता था। वह वन्यप्राणियों का शिकार कर अपने परिवार का भरण-पोषण करता था। एक बार शिवरात्रि के दिन वह शिकार करने वन में गया। वह एक बार जंगल में अपने कुत्तों के साथ शिकार के लिए गया। पूरे दिन परिश्रम के बाद भी उसे कोई जानवर नहीं मिला। भूख प्यास से पीड़ित होकर वह रात्रि में जलाशय के तट पर एक वृक्ष के पास जा पहुंचा जहां उसे शिवलिंग के दर्शन हुए। अपने शरीर की रक्षा के लिए शिकारी ने वृक्ष की ओट ली लेकिन उनकी जानकारी के बिना कुछ पत्ते वृक्ष से टूटकर शिवलिंग पर गिर पड़े। उसने उन पत्तों को हटाकर शिवलिंग के ऊपर स्थित धूलि को दूर करने के लिए जल से उस शिवलिंग को साफ किया। इस प्रकार अज्ञानवश शिवलिंग की पूजा भी हो गयी।
एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी हिरणी जलाशय पर पानी पीने पहुँची। शिकारी ने धनुष पर ज्यों ही तीर खींची, हिरणी बोली, ‘मैं गर्भिणी हूँ, शीघ्र ही प्रसव करूँगी। मैं अपने बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही लौट आऊंगी, तब तुम मुझे मार लेना।’ शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और हिरणी झाड़ियों में लुप्त हो गई।
कुछ ही देर बाद एक और हिरणी उधर से निकली। शिकारी प्रसन्न हो तीर सांधने लगा और ऐसा करते हुए ,उसके हाथ से फिर पहले की ही तरह थोडा जल और कुछ बेलपत्र नीचे शिवलिंग पर जा गिरे और अज्ञानवश शिकारी की दूसरे प्रहर की पूजा भी हो गयी| इस हिरणी ने भी भयभीत हो कर, शिकारी से जीवनदान की याचना की लेकिन उसके अस्वीकार कर देने पर ,हिरनी ने उसे लौट आने का वचन दिया।शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। शिकार के आभाव में बेलवृक्ष पर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हष्ट-पुष्ट हिरण उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा।
शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर हिरण विनीत स्वर में बोला,’ यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली हिरणियों तथा बच्चों को मार डाला है तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि उनके वियोग में मुझे एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन हिरणियों का पति हूँ। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण जीवनदान देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे सामने उपस्थित हो जाऊँगा।’ उपवास, रात्रि जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से शिकारी का अंजाने में ही शिव जी की पूजा हो गई और शिवरात्रि का व्रत संपन्न हो गया, जिसके प्रभाव से उसके पाप तत्काल भी भस्म हो गए। धनुष तथा बाण उसके हाथ से स्वतः ही छूट गए। भगवान शिव की कृपा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा। तब शिवलिंग से भगवान शंकर प्रकट हुए और उन्होंने गुरुद्रुह को वरदान दिया कि त्रेतायुग में भगवान राम तुम्हारे घर आएंगे और तुम्हारे साथ मित्रता करेंगे तथा तुम्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी।
निष्कर्ष: इस प्रकार प्राणी के द्वारा अज्ञानवश या ज्ञानपूर्वक किए गए शिवरात्रि की पूजा से भी शिव जी की कृपा प्राप्त होती है।