हिमाचली धाम नहीं है आम

नहीं है आम म्हारी… हिमाचली “धाम”

देवभूमि हिमाचल प्रदेश जहां देश-विदेश में अपनी धर्म आस्था, प्राकृतिक सौंदर्य, लोक संस्कृति, त्यौहार, व मेलों जैसी आलौकिक संस्कृति व रीति-रिवाजों के लिए विख्यात है, वहीं हिमाचल प्रदेश अपने पहाड़ी पारम्परिक खान-पान के लिए न केवल देश में ही, बल्कि विदेशों में भी अपने लज़ीज पहाड़ी व्यंजनों के लिए विशेष ख्याति प्राप्त किए हुए है। इसी के चलते इस बार हम आपको हिमाचल प्रदेश के शादी ब्याह या अन्य मांगलिक अवसरों पर आयोजित सामूहिक भोजन जिसे हिमाचल में धाम कहते हैं के बारे में विस्तार से जानकारी देने जा रहे हैं। हिमाचल के सभी जिलों में अपने-अपने पारम्परिक तौर तरीकों से शादी ब्याह, त्यौहार, उत्सवों या अन्य मांगलिक अवसरों पर खाना परोसने का अपना ही एक अनूठा ढंग है। यह प्रथा पूर्वजों द्वारा कई सालों से चली आ रही है। जिसका पालन इस आधुनिकी युग में भी लोग भली-भांति रूप से कर रहे हैं।

धाम तैयार करता बोटिया

धाम तैयार करता बोटिया

हिमाचली धाम की हम बात कर रहे हैं तो आपको पहले ये बात बता दें कि प्रदेश के हर जिले में धाम बनाने का अपना तरीका होता है। धाम का नाम लेते ही मुहं में पानी आ जाता है। तरह- तरह के स्वादिष्ट व्यंजन। शादी-ब्याह हो या फिर कोई और मागंलिक कार्य हिमाचली धाम की अपनी ही विशेषता है। निचली पहाड़ी धाम में बनाए जाने वाले स्वादिष्ट व्यंजन चने का मदरा, माह की दाल, सेपू बड़िया, अरबी, राजमाह, पूड़े, खीर, मीठा कद्दू, या खटा कद्दू, वेदाना व कई अन्य व्यंजन बनाए जाते हैं। साथ ही अगर खाने में कढ़ी की बात न हो तो धाम अधूरी ही समझो। जी हां निचली पहाड़ी इलाकों में धाम में मीठे में वेदाना और कढ़ी ख़ास हैं। वहीं ऊपरी पहाड़ी इलाकों में जहां तीज-त्यौहारों में सीडू बनाए जाते हैं। धाम में मीट और शाकाहरी धाम बनाई जाती है। मीट को ख़ास तौर से कई तरह से बनाया जाता है। लुह्न्दरी मीट, बुठा मीट व सुखा मीट आदि को विशेष रूप से धाम के लिए तैयार किया जाता है। वहीं शाकाहरी धाम में मटर पनीर, मटर मसरूम व अन्य कई दालें बनाई जाती हैं। मीठे में चावलों का बरंज बनाया जाता है। हिमाचली धाम के स्वादिष्ट होने की ख़ास वजह यह भी होती है कि इसमें गाँव के लोगों का अपना प्यार भी शामिल होता है। हिमाचल के हर जिले के हर गांव की यह ख़ास बात है कि सब लोग मिल-जुलकर हर खुशी, हर गम में एक-दूसरे के साथ सरीक होते हैं। वहीं शादी या फिर अन्य समारोह की बात कि जाए तो धाम बनाने के लिए विशेष रूप से बोटी यानि धाम बनाने वाले को बुलाया जाता है। जिनके घर समारोह होता है उनके घर गाँव के सब लोग मिलकर धाम बनाने में सहयोग देते हैं व अन्य काम में हाथ बंटाते हैं। कहीं- कहीं खाने को गाँव के लोगों द्वारा परोसा जाता है। दरी बिछाकर लोग पालथी मारकर जमींन में बैठकर धाम का आनन्द लेते हैं। खाना (टोर नामक बेल) के पत्तों के द्वारा बनाई प्लेट यानी पतल में दिया जाता है। जिससे धाम का स्वाद चार गुना बढ़ जाता है। पेट तो भर जाता है लेकिन मन नहीं भरता।

पंक्ति में बैठकर धाम खाते लोग

पंक्ति में बैठकर धाम खाते लोग

हिमाचल में जहां त्योहारों, पारंपरिक रीति-रिवाजों का अहम स्थान है, वहीं प्रदेश में हिमाचली व्यंजनों का भी अलग महत्व है। कांगड़ा में जहां कांगड़ी धाम प्रसिद्ध है, वहीं जिला मंडी में सेपु बडिय़ां, कुल्लू के सिड्डू, बिलासपुर की मांश की दाल प्रसिद्ध है। इसी प्रकार सिरमौर में असकली, पटांडे, सिडक़ु, धरोटी-भात, लुश्के, बिलोई का अपना अलग ही स्वाद व महत्व है। धाम का मुख्य आकर्षण है सभी मेहमानों को समान रूप से, जमीन पर बिछी पंगत पर एक साथ बैठाकर खाना खिलाना। खाना आमतौर पर पत्तल पर ही परोसा जाता है और किसी-किसी क्षेत्र में साथ में डोने भी रखे जाते हैं। हिमाचली खाना बनाने, परोसने व खाने की सैंकड़ों बरस पुरानी परंपरा के साथ-साथ एक कहावत भी पक चुकी है- पूरा चौका कांगड़े आधा चौका कहलूर, बचा खच्या बाघला धूढ़ धमाल हंडूर। इसके अनुसार चौके (रसोई) की सौ प्रतिशत शुद्घता तो कांगड़ा में ही है। कहलूर (बिलासपुर) क्षेत्र तक आते-आते यह पचास प्रतिशत रह जाती है। बचा खुचा बाघल (सोलन) तक और हंडूर (नालागढ़) क्षेत्र तक आते-आते धूल, मिट्टी में जूतों समेत बैठ कर खाना खा लिया जाता है।

पत्तल

पत्तल

धाम में चावल परोसता बोटिया

धाम में चावल परोसता बोटिया

प्रदेश की राजधानी शिमला के ग्रामीण अंचल से शुरू करें तो वहां माह (उड़द) की दाल, चने की दाल, मदरा (स्पेशल सब्जी) के रूप में दही में बनाए सफेद चने, आलू, जिमीकंद, पनीर, माहनी (खट्टा) में काला चना या पकौड़े, मीठे में बदाणा या छोटे गुलाब जामुन। मीठे के बाद और मिठाई भी परोसी जाती है। हालांकि परंपरा के मुताबिक सभी पकवान एक निश्चित क्रम से आने चाहिए मगर समय के साथ थोड़ा बहुत बदलाव कई जगह आ चुका है।

चंबा में डोने भी पतल का साथ देते हैं। यहां चावल, मूंग साबुत, मदरा, माह, कढ़ी, मीठे चावल, खट्टा, मोटी सैंवियां खाने का हिस्सा हैं। यहां मदरा हैड बोटी (खाना बनाने वाली टीम का मुखिया) डालता है। किसी जमाने में बोटी पूरा अनुशासन बनाए रखते थे और खाना-पीना बांटने का सारा काम बोटी ही करते थे। एक पंगत से उठ कर दूसरी पंगत में बैठ नहीं सकते थे। खाने का सत्र पूरा होने से पहले उठ नहीं सकते थे। मगर जीवन की हड़बड़ाहट व अनुशासन की कमी ने बदलाव लाया है।

कांगड़ा में चने की दाल, माह (उड़द साबुत), मदरा (दही चना), खट्टा (चने अमचूर), पनीर मटर, राजमा, सब्जी (जिमीकंद, कचालू, अरबी), मीठे में ज्यादातर बेसन की रेडीमेड बूंदी, बदाणा या रंगीन चावल भी परोसे जाते हैं। यहां चावल के साथ पूरी भी परोसी जाती है। हमीरपुर में दालें ज्यादा परोसी जाती हैं। वहां कहते हैं कि पैसे वाला मेजबान दालों की संख्या बढ़ा देता है। मीठे में यहां पेठा ज्यादा पसंद किया जाता है मगर बदाणा व कद्दू का मीठा भी बनता है। राजमा या आलू का मदरा, चने का खट्टा व कढ़ी प्रचलित है।

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