भारत एक धर्मप्रधान देश है। यहां जनजीवन में धर्म व संस्कृति का बड़ा प्रभाव है। सुबह की दिनचर्या से निवृत्त होने के बाद व्यक्ति पूजा-पाठ हेतु ईश्वर के समक्ष होता है। पूजा पश्चात प्रार्थना का काफी महत्व है। प्रार्थना यानी ईश्वर से अपना सीधा संबंध जोडऩा।
क्या है प्रार्थना?
प्रार्थना एक धार्मिक क्रिया है। यह अखिल ब्रह्मांड की किसी विराट शक्ति यानी ईश्वर से जोडऩे का काम करती है। प्रार्थना व्यक्तिगत या सामूहिक दोनों हो सकती है। प्रार्थना निवेदन द्वारा ऊर्जा प्राप्त करने की शक्ति है।
प्रार्थना का अर्थ
प्रार्थना का अर्थ है जीवात्मा के साथ सक्रिय, अनन्य भक्ति तथा प्रेममय संबंध। ईश्वर-प्राप्ति के लिए आदर्श प्रार्थना आर्तता या व्याकुलता की भावाभिव्यक्ति है अत: हृदय में जैसे भाव उठेंगे, ईश्वर तक प्रार्थना उसी रूप में फलीभूत होगी। कमोबेश सभी धर्मग्रंथों में यह बात साफ तौर पर कही गई है कि आप ईश्वर से जिस भाव या भावना से प्रार्थना करते हैं, ईश्वर भी उसी रूप में उसे स्वीकार करता है। अत: मन तथा हृदय का पवित्र होना नितांत ही जरूरी है।
परमेश्वर से बातें
प्रार्थना और कुछ नहीं, सिर्फ परमेश्वर से बातें करना है। परमेश्वर आपको जानता है तथा वह यह भी जानता है कि आपके हृदय का व्यवहार कैसा है। सच्चे मन से परमेश्वर से की गई बातों को वह भी स्वीकारता है तथा तदनुरूप फल भी प्रदान करता है।
ईश्वर प्राप्ति का सहज मार्ग
ईश्वर व आध्यात्मिक शक्तियों को प्राप्त करने हेतु दो विधियां हैं। भक्ति मार्ग में प्रार्थना और ध्यान दोनों ही का महत्व बताया गया है। ध्यान प्रार्थना से थोड़ा कठिन है। प्रार्थना सहज है किंतु ध्यान में स्थितप्रज्ञता व एकाग्रता की आवश्यकता होती है।
भगवान से विनती
परमात्मा से हमेशा गुण ग्रहण की ही विनती की जानी चाहिए। प्रार्थना के साथ उसे आचरण में भी लाएं नहीं तो प्रार्थना फलीभूत नहीं होगी। अगर प्रार्थना भर ही की जाए तथा आचरण में नहीं लाया जाए, तो प्रार्थना का सुफल प्राप्त नहीं होगा। ईश्वर से कभी भी धन-दौलत, सोने-चांदी या गाड़ी-बंगले की अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। यह उचित नहीं है।
समस्याओं के समाधान में लाभदायी
सच्चे मन से की गई प्रार्थना से समस्या-समाधान में भी लाभ मिलता है। जब हमें कोई रास्ता नहीं सूझ रहा हो और हम अगर सच्चे मन से प्रार्थना करें तो हमें ईश्वर से मार्गदर्शन प्राप्त होता है। गांधीजी, ईसा मसीह, महात्मा बुद्ध आदि को ईश्वर पर अटूट आस्था थी। उनकी सच्ची प्रार्थना का ही कमाल था कि वे अपने मनोबल को काफी मजबूत कर पाए व अपने लक्ष्य से डिगे नहीं तथा उसकी प्राप्ति करके ही रहे।
प्रार्थना से होती है सेहत ठीक
चिकित्सकों व मनोचिकित्सकों ने अपने अनुसंधान में पाया है कि जो व्यक्ति नियमित प्रार्थना करते हैं, वे उन व्यक्तियों की तुलना में अधिक जल्दी स्वस्थ होते हैं व जो नियमित प्रार्थना नहीं करते हैं या कम या कभी-कभार ही प्रार्थना करते हैं।