सायर किसानों की खुशहाली और समृद्धि से जुड़ा अनाज पूजा का त्योहार
मण्डी: मण्डी जनपद में सायर का त्योहार रविवार को जिला भर में धूमधाम और उल्लास के साथ मनाया जाएगा। इसके लिए पूरे जनपद में सायर को मनाने की तैयारियों जोरों पर हैं। बड़ी संख्या में लोग अखरोट और सायर ( धान, तिल, कोठा, गलगल आदि के पौधों) की खरीदारी कर रहे हैं।
सायर पर्व हर वर्ष भाद्रपद के समाप्त होने और माह आश्विन के प्रथम प्रविष्टे को मनाया जाता है। भाद्रपद को काला महीना भी कहा जाता है। इस दौरान पहाड़ोेें पर बरसात के कारण नदी नाले उफान पर होते हैं। बरसात में सुरक्षित रहने पर ईश्वर का आभार प्रकट करने के लिए यह पर्व मनाया जाता है।
सायर का यह त्योहार किसानों की खुशहाली और समृद्धि के साथ-साथ अनाज पूजा से जुड़ा हुआ भी है। प्रदेश के कई हिस्सों में सायर पर्व को अलग-अलग ढंग से मनाया जाता है। उसी प्रकार मंडी जनपद में सायर का त्योहार अनाज पूजा से शुरू होता है। मंडयाली बोली में इस मौसम को भी सैर कहा जाता है।
इस मौसम में पैदा होने वाले अनाज जैसे मक्की, धान, तिल, कोठा, गलगल आदि के पौधों को इक्टठा कर सायर तैयार कर पूजाघर में रखी जाती है। इसके बाद स्नानादि करके सायर की पूजा की जाती है। सायर पूजा के लिए अखरोट का बहुत महत्व है। अखरोट के साथ द्रुब हाथ में लेकर अपनी परिधि में घूमते हैं और फिर सायर के आगे मत्था टेकते हैं।
सायर के दिन मंडी जनपद में बड़े-बुजूर्गों को द्रुब देने की परंपरा है। यह परंपरा बड़े बुजूर्गों का सम्मान कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करने की भी है। इस अवसर पर सायर पूजन के बाद पांच या सात अखरोट दोनों हाथों में लेकर द्रुब खास की चार पांच डालियों के साथ बड़े बुजूर्गों के हाथ में पकड़ा कर उनके चरण स्पर्श कर उनका आशीर्वाद लिया जाता है। बड़े बुजूर्ग भी बड़े अदब के साथ अखरोट और द्रुब ग्रहण करते हैं और सचे मन से द्रुब की डालियां अपने कानों या टोपी से लगाकर आशीर्वाद देते हैं। भले ही आपस में कितने भी मतभेद रहे हों, लेकिन सायर के दिन बड़े -बुजूर्गों को द्रुब देकर उनका आशीर्वाद लेकर सारे गिले शिकवे दूर किये जाते हैं।