दिवाली का पौराणिक महत्व, पंच-पर्वों का त्यौहार: दीपावली
दिवाली का पौराणिक महत्व, पंच-पर्वों का त्यौहार: दीपावली
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मान्यता ये है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था। इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दीए जलाए। एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विंष्णु ने इसी दिन नरसिंह रुप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध भी किया था।
लेकिन मूल रूप से इस दिन को यम पूजा के रूप में मनाया जाता है, जो कि घर से अकाल मृत्यु की सम्भावना को समाप्त करता है। यम पूजा के रूप में अपने घर कि चौखट पर चावल के ढेरी बना कर उस पर सरसो के तेल का दीपक जलाया जाता है। ऐसा करने से अकाल मृत्यु नहीं होती है। साथ ही इस दिन गायों के सींग को रंगकर उन्हें घास और अन्न देकर प्रदक्षिणा की जाती है।
दीपावली : यह महत्व पुर्ण उत्सव है। इस दिन मूल रूप से लक्ष्मीपूजन के साथ गणेश भगवान कि पूजा-आराधना व स्तूति की जाती है। भारतीय नव वर्ष की शुरूआत इसी दिन से मानी जाती है इसलिए भारतीय व्यापारी बन्धु अपने नए लेखाशास्त्र यानी नये बही-खाते इसी दिन से प्रारम्भ करते हैं और अपनी दुकानों, फैक्ट्री, दफ़्तर आदि में भी लक्ष्मी-पूजन का आयोजन करते हैं साथ ही इसी नववर्ष के दिन सूर्योदय से पूर्व ही गलियों में नमक बिकने आता है, जिसे “बरकत” के नाम से पुकारते हैं और वह नमक सभी लोग खरीदा करते हैं क्योंकि मान्यता ये है कि ये नमक खरीदने से सम्पूर्ण वर्ष पर्यन्त धन-समृद्धि की वृद्धि होती रहती है। दीपावली के दिन सभी घरों में लक्ष्मी-गणेश जी की पूजा की जाती है और हिन्दू मान्यतानुसार अमावस्या की इस रात्रि में लक्ष्मी जी धरती पर भ्रमण करती हैं तथा लोगों को वैभव की आशीष देती है।
दिपावली के दिन यद्धपि गणेश जी की पूजा का कोई विशेष विधान नहीं है लेकिन क्योंकि भगवान गणपति प्रथम पूजनीय हैं, इसलिए सर्वप्रथम पंच विधि से उनकी पूजा-आराधना करने के बाद माता लक्ष्मी जी की षोड़श विधि से पूजा-अर्चना की जाती है। हिन्दु धर्म में मान्यता है कि इस दिन यदि कोई श्रद्धापूर्वक मां लक्ष्मी की पूजा करता है, तो उसके घर कभी धन-धान्य कि कमी नहीं होती।
हिंदुओं में इस दिन लक्ष्मी पूजन का विशेष विधान है और माना जाता है कि वृषभ लग्न व सिंह लग्न के मुहूर्त में ही लक्ष्मी पूजन किया जाना चाहिए क्योंकि ये दोनों लग्न, भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार स्थिर लग्न माने जाते हैं इसलिए स्थिर लग्न में लक्ष्मी पूजन करने से घर में स्थिर लक्ष्मी का वास होता है।
हालांकि दीपावली की पूरी रात्रि एक प्रकार से जागकर ही बिताई जाती है क्योंकि मान्यता ये है कि माता लक्ष्मी जब पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं, तब केवल उन्हीं घरों में जाती हैं, जिनमें घर के सदस्य जाग रहे होते हैं, पूजा आराधना कर रहे होते हैं अथवा अपने व्यापार से सम्बंधित किसी उपयोगी कार्य में व्यस्त होते हैं।
दीपावली
चूंकि दीपावली हमेंशा अमावश्या की रात्रि को ही मनाई जाती है, इसलिए लोग इस रात तरह-तरह की तंत्र-मंत्र टोटके आदि की सिद्धि भी करते हैं और मान्यता ये है कि इस रात्रि को तंत्र-मंत्र-टोटके आदि काफी आसानी से व जल्दी से सिद्ध हो जाते हैं। इसीलिए जो लोग नवरात्रि के नौ दिनों के दौरान किसी कारणवश दुर्गा-सप्तशती के मंत्रों अथवा किसी अन्य तरह के तंत्र-मंत्र टोटके आदि की सिद्धि नहीं कर पाते, वे लोग दिवाली की रात को ये काम करते हैं।
इसके अलावा ये भी कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने राजा बलि को पाताल लोक का स्वामी बनाया था और इन्द्र ने स्वर्ग को सुरक्षित जानकर प्रसन्नतापूर्वक दिपावली मनाई थी।