दिवाली का पौराणिक महत्व, पंच-पर्वों का त्‍यौहार: दीपावली

दिवाली का पौराणिक महत्व, पंच-पर्वों का त्‍यौहार: दीपावली

दिपावली पूजा

दिपावली पूजा

“धनतेरस” दीपावली पर्व की शुरुआत का प्रतीक…

दीपावली की पूरी रात दीपक प्रज्‍वलित रखते हैं, जिसके संदर्भ में हिन्‍दु धर्म में कई मान्‍यताऐं हैं, जिनमें से कुछ का वर्णन पिछले पोस्‍ट क्‍यों मनाते हैं दीपावली के अन्‍तर्गत किया था। उनके अलावा हिन्‍दु धर्म में दीपावली की रात को दीपक जलाए रखने के संदर्भ में एक मान्‍यता और कि पितरपक्ष में श्राद्ध के दौरान पृथ्‍वी पर आने वाले पितरों को फिर से पितृ लोक में पहुंचने में परेशानी न हो, इस हेतु दिवाली की पूरी रात दीपकों द्वारा प्रकाश किया जाता है, जो पितरों को पितृ लोक का रास्‍ता प्रकाशित करने हेतु होते हैं। इस प्रथा का बंगाल में विशेष प्रचलन है।

दिपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। इसलिए दीपावली से कई दिनों पूर्व ही इसकी तैयारियाँ शुरू हो जाती है। लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का काम शुरू कर देते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफ़ेदी आदि का कार्य होने लगता हैं। लोग दुकानों को भी साफ़ सुथरा कर सजाते हैं। बाज़ारों और गलियों को भी सुनहरी झंडियों से सजाया जाता है। दिपावली से पहले ही घर-मोहल्ले, बाज़ार सब साफ-सुथरे व सजे-धजे नज़र आते हैं। लोग अपने घरो को सुन्‍दर रूप से सजाने के बाद उसमे रोशनी करते हैं क्‍योंकि दिवाली को अँधेरे से रोशनी में जाने का प्रतीक माना जाता है।

हिन्‍दु धम में दीपावली को पंच पर्वो का त्‍योहार कहा जाता है जो धनतेरस से शुरू होकर भाई दूज पर समाप्‍त होते हैं। यानी पंच पर्वों के अन्‍तर्गत धनतेरस, नरक चतुर्थी, दिपावली, राम-श्‍याम और भैया दूज सम्मिलित हैं। पूरे भारत सहित सम्‍पूर्ण दुनियां में जहां कहीं भी हिन्‍दू, जैन, सिख, आर्य समाज और प्रवासी भारतीय हैं, वे सभी इस दिपावली के त्‍यौहार को पूर्ण उत्‍साह के साथ मनाते हैं क्‍योकि इस त्‍यौहार का न केवल धार्मि‍क महत्‍व है बल्कि व्‍यापारिक महत्‍व भी है।

पंच पर्वों का त्‍यौहार

धनतेरश : इस पर्व पर लोग अपने घरों में यथासम्‍भव सोने का सामान खरीदकर लाते हैं और मान्‍यता ये होती है कि इस दिन सोना खरीदने से उसमें काफी वृद्धि होती है। लेकिन आज के दिन का अपना अलग ही महत्‍व है क्‍योंकि आज के दिन ही भगवान धनवन्‍तरी का जन्‍म हुआ था जो कि समुन्‍द्र मंथन के दौरान अपने साथ अमृत का कलश व आयुर्वेद लेकर प्रकट हुए थे और इसी कारण से भगवान धनवन्‍तरी को औषधी का जनक भी कहा जाता है।

सोने के अलावा बर्तनों की दुकानों पर भी विशेष साज-सज्जा व भीड़ दिखाई देती है क्‍योंकि धनतेरस के दिन सोने-चांदी के

दिवाली पूजा

दिवाली पूजा

बर्तन खरीदना भी शुभ माना जाता है। यद्धयपि सभी लोग सोने-चांदी के बर्तन नहीं खरीद सकते, इसलिए लोग इस दिन अन्‍य प्रकार के बर्तन खरीदना भी शुभ मानते हैं। साथ ही इसी दिन तुलसी के पौधों के पास व घर के द्वार पर दीपक जलाया जाना शुरू करते हैं, और ये दिया अगले 5 दिनों तक हर रोज जलाया जाता है।

छोटी दिपावली

नरक चतुर्दशी: नरक चतुर्दशी को कहीं-कहीं छोटी दिपावली भी कहा जाता है क्‍योंकि ये दीपावली से एक दिन पहले मनाई जाती है और इस दिन मूल रूप से यम पूजा हेतु दीपक जलाए जाते हैं, जिसे दीप दान कहा जाता है।

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