रामपुर बुशहर में स्थित तिब्बतीयन शैली में निर्मित दुम्ग्युर नामक बौद्ध मंदिर

रामपुर बुशहर में स्थित तिब्बतीयन शैली में निर्मित दुम्ग्युर बौद्ध मंदिर

बुशहर रियासत के टीका रघुनाथ सिंह ने सन 1895 ई. को स्थापित करवाया

शिमला जिला के रामपुर उपमंडल में समुद्रतल से 1000 मीटर की ऊंचाई पर बौद्ध मंदिर रामपुर बस स्टैंड के पास स्थित है। रामपुर में तिब्बतीयन शैली में निर्मित दुम्ग्युर नामक बौद्ध मंदिर बुशहर रियासत के टीका रघुनाथ सिंह ने सन 1895 ई. को स्थापित करवाया। इन्होंने बौद्ध मंदिर की प्रतिष्ठा के लिए रिन्पोचे लामा लौतसावा को शिगत्से के तालीसगयो बौद्ध विहार से सन 1897 ई. में रामपुर बुलाया था।

दस करोड़ मंत्रों का संग्रह है दुम्ग्युर

दुम्ग्युर तिब्बती भाषा का शब्द है। तिब्बती भाषा के अनुसार दुम्गयुर का अर्थ दस करोड़ मंत्रों का संग्रह होता है। दुम्ग्युर एक विशाल प्रार्था चक्र होता है जो बौद्ध मंदिर के भीतर खुले स्थान पर लगा होता है। इस चक्र के अवतल भाग पर लगे हजारों पत्रों में ऊं नम: पह्मे ह्मूं मंत्र लिखा होता है। दुम्ग्युर का संबंध इमानी-फानी में समाहित अनगिनत बौद्ध मंत्रों से लिया जाता है।

बौद्ध मंदिर में गौतम बुद्ध की चीनी-मिट्टी से बनी तीन विशाल प्रतिमाएं

मंदिर में बौद्ध गया से लाया गया एक पाषाण रत्न

यह बौद्ध मंदिर पुरातात्त्विक दृष्टि ये एक महत्त्वपूर्ण स्मारक है। इसमें स्थापित दुम्ग्युर शिमला जिला के बौद्ध मंदिरों का सबसे पुरातन और बृहद् इमानी-फानी माना जाता है। इस बौद्ध मंदिर में गौतम बुद्ध की चीनी-मिट्टी से बनी तीन विशाल प्रतिमाएं हैं। इनके अलावा 27 मूर्तियां और भी हैं। बौद्ध मंदिर की भीतर दीवारों पर बुद्ध के जीवन चरित्र को चरितार्थ करते भित्ति चित्र अत्यंत संजीव दिख पड़ते हैं। यह भित्ति चित्र सत्य, ईमानदारी, आस्तिकता आदि जीवनपयोगी सार तत्व का संदेश देते हैं। इस मंदिर में बौद्ध गया से लाया गया एक पाषाण रत्न भी रखा गया है।

बौद्ध मंदिर में 108 पुस्तकें श्रुति पर तथा 16 घूम्पति पुस्तकें

बौद्ध धर्म के यह उपयोगी धार्मिक ग्रन्थ आज भी दुम्ग्युर मंदिर रामपुर में विद्यमान

इस बौद्ध मंदिर में बौद्ध धर्म पर आधारित साहित्य का अक्षुण्ण भंडार है। महाराजा पदम सिंह (1914-47 ई.) शासनकाल में बौद्ध धर्म को सुदृढ़ करने के लिए तिब्बत से कंगयूर और तंगयूर नामक पुस्तकें मंगवाई थी जो इसी मंदिर में रखवाई गई। इस बौद्ध मंदिर में 108 पुस्तकें श्रुति पर तथा 16 घूम्पति पुस्तकें भी रखी गई। घूम्पत में बौद्ध मंत्रों का संग्रह देखा जा सकता है। बौद्ध धर्म के यह उपयोगी धार्मिक ग्रन्थ आज भी दुम्ग्युर मंदिर रामपुर में विद्यमान है।

हर्षोल्लास से मनाते हैं बौद्ध धर्म परंपरा के त्यौहार “बुद्ध पूर्णिमा और बुद्ध जयंती”

108 दीपक प्रज्वलित कर की जाती है अष्टमी, दशमी, अमावस तथा पूर्णिमा की पूजा

इस मंदिर में प्रात- और सांय द्विकाल का पूजा विधान है। यह नित्यप्रति शुद्ध देसी घी की ज्योति ज्वालायमान रहती है। बौद्ध धर्म के अनुयायी दुम्ग्युर में बौद्धित्सव प्राप्ति की कामना से पूजा-अर्चना के लिए आते हैं। बौद्ध धर्म परंपरा के त्यौहार बुद्ध पूर्णिमा और बुद्ध जयंती यहां हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। इस बौद्ध मंदिर में अष्टमी, दशमी, अमावस तथा पूर्णिमा की पूजा 108 दीपक प्रज्वलित कर की जाती है। बौद्ध धर्म की इस विशिष्ट पूजा को ‘गयेमछोद’ कहा जाता है। इस पूजा में सत्तु के 108 छोकस भी बनाए जाते हैं। यह पूजा बौद्ध धर्म की विशेष पूजाओं में एक है।

मंदिर शिमला से 130 किलोमीटर की दूरी पर

इस बौद्ध मंदिर की बुशहर रियासत के रामपुर और रोहड़ू में काफी सम्पत्ति है। इस मंदिर में इन क्षेत्रों की सम्पत्ति से भी कुछ आय प्राप्त होती है। यहां श्रद्धालुओं का आना जाना कम है। सन् 1960 ई. को इस बौद्ध मंदिर का प्रबंध एक समिति के पास था। यह मंदिर हिमाचल प्रदेश हिंदू सार्वजनिक धार्मिक संस्थान एवं पूर्त विन्यास अधिनियम 1984 के अधीन सरकार द्वारा अधिगृहीत किया गया है। यह मंदिर उपमंडल मुख्यालय रामपुर में होने पर शिमला से 130 किलोमीटर की दूरी पर है।

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