दुर्गा सप्तशती पाठ विधि:- दुर्गा सप्तशती सबसे अलग— दुर्गा सप्तशती के अन्तर्गत देव दानव युद्ध का विस्तृत वर्णन है। इसमें देवी भगवती और मां पार्वती ने किस प्रकार से देवताओं के साम्राज्य को स्थापित करने के लिए तीनों लोकों में उत्पात मचाने वाले महादानव से लोहा लिया इसका वर्णन आता है। यही कारण है कि आज सारे भारत में हर जगह दुर्गा यानी नवदुर्गाओं के मन्दिर स्थपित हैं और साल में दो बार नौ दिन के लिए उत्तर से दक्षिण तक उत्सव का माहौल होता है। सम्पूर्ण दुर्गासप्तशती का अगर पाठ न भी कर सकें तो निम्नलिखित सप्तश्लोकी पाठ को पढऩे से सम्पूर्ण दुर्गासप्तशती और नवदुर्गाओं के पूजन का फल प्राप्त हो जाता है। ओम् ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा। बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।।1।। दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो: स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभांव ददासि। दारिद्र्यदु:खभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता।। 2।। सर्वमंगलमंगलये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्रयम्बके गौरि नारायणि नमोऽतु ते।।3।। शरणांगतदीन आर्त परित्राण परायणे सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते।। 4।। सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते। भयेभ्यारत्नाहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते।।5।। रोगान शेषान पहंसि तुष्टा रूष्टा तु कामान् सकलानाभीष्टान। त्यामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता श्रयतां प्रयान्ति।। 6।। सर्वाधाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि। एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम।। 7।। वैसे तो दुर्गा के 108 नाम गिनाये जाते हैं, लेकिन नवरात्रों में उनके स्थूल रूप को ध्यान में रखते हुए नौ दुर्गाओं की स्तुति और पूजा पाठ करने का गुप्त मंत्र ब्रहमा जी ने अपने पौत्र मार्कण्डेय ऋ षि को दिया। इसको देवी कवच भी कहते हैं। देवी कवच का पूरा पाठ दुर्गा सप्तशती के 56 श्लोकों के अन्दर मिलता है। नौ दुर्गाओं के स्वरूप का वर्णन ब्रहमा जी ने इस प्रकार से किया है। प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रहमचारिणी। तृतीयं चन्द्रघण्टेति कुष्माण्डेति चतुर्थकम।। पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च। सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम।।। नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:। उक्तान्येतानि नामानि ब्रहमणैव महात्मना।। अग्निना दमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे। विषमें दुर्गमे चैव भयार्ता: शरणं गता:।।