पितृ पक्ष: “श्राद्ध” के माध्यम से पितर होते हैं तृप्त : आचार्य महिंद्र कृष्ण शर्मा
पितृ पक्ष: “श्राद्ध” के माध्यम से पितर होते हैं तृप्त : आचार्य महिंद्र कृष्ण शर्मा
आइए जानें:- तिथि, नियम, विधि, भोजन और महत्व
पितृ पक्ष की शुरुआत भाद्रपद पूर्णिमा तिथि से होती है और समापन आश्विन की अमावस्या पर होता है। इन 16 दिनों में पितरों का श्राद्ध कर उनका तर्पण किया जाता है। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से अश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या तक श्राद्ध पक्ष यानी पितृ पक्ष रहेगा। इस साल श्राद्ध पक्ष की शुरुआत सोमवार, 20 सितंबर की सुबह 5:28 बजे शुरू होगा और बुधवार, 6 अक्टूबर तक रहेगा। श्राद्ध पक्ष वास्तव में पितरों को याद करके उनके प्रति श्रद्धा भाव प्रदर्शित करने और नई पीढ़ी को अपने प्राचीन वैदिक और पौराणिक संस्कृति से अवगत कराने का पुण्य पर्व है। यही नहीं, पितरों का श्राद्ध करने से जन्म कुंडली में व्याप्त पितृदोष से भी हमेशा के लिए छुटकारा मिलता है।
श्राद्ध के माध्यम से पितर तृप्त होते हैं
आचार्य महिंद्र कृष्ण के अनुसार इसमे प्रथम तिथि प्रतिपदा और अन्तिम तिथि अमावस्या होती है। शास्त्रों मे तीन प्रकार के ॠण बताए गए हैं, देवॠण, ॠषि ॠण और पितृॠण। धर्मशास्त्र के अनुसार पितृपक्ष मे हमारे पितरों का पृथ्वी पर अवतरण होता है। उनके अवतरण पर उनके वंशज उन्हे तृप्त करने के लिए और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए जो कुछ भी श्रद्धा से अर्पण करते है, उसे उनके पूर्वज स्वीकार कर लेते हैं। यह कार्य सनातन धर्म की परम्परा मे आश्विन कृष्ण पक्ष (पितृ पक्ष ) में किया जाता है। इस पितृपक्ष को महालय भी कहा जाता है। ब्रह्म पुराण के अनुसार जो वस्तु उचित काल या स्थान पर पितरों के नाम पर उचित विधि से दिया जाता है, वह श्राद्ध कहलाता है। श्राद्ध के माध्यम से पितर तृप्त होते हैं। पिण्डदान श्राद्ध का अभिन्न अंग होता है। पितरोंस के अप्रसन्न होने से अनेक बाधाएं समुपस्थित होती है। यह अपने दिवंगत पूर्वजों के लिए श्राद्ध अवश्य किया जाए। कई ज्योतिषियों के अनुसार पहली सितम्बर को पूर्णिमा श्राद्ध होगा। क्योंकि चतुर्दशी तिथि 1 सिंतबर दिन मंगलवार को दिन में 8:46 बजे तक व्याप्त रहेगी। तत्पश्चात पूर्णिमा तिथि लग जाएगी जो 2 सितंबर दिन बुधवार को दिन में 9:34 बजे तक व्याप्त होगी। इस प्रकार दोपहर की पूर्णिमा 1 सितंबर को ही प्राप्त होगी। इसी कारण पूर्णिमा का श्राद्ध 1 सितंबर को ही होगा।
क्यों मनाया जाता है श्राद्ध पक्ष
ऐसा माना जाता है कि श्राद्ध या पितृ पक्ष के दौरान पूर्वज धरती पर आते हैं, इसलिए पितृ पक्ष में तर्पण और श्राद्ध के साथ दान करने का विधान बताया गया है। मान्यता है कि ऐसा करने से पितर प्रसन्न होते हैं और आर्शीवाद प्रदान करते हैं।
श्राद्ध में कैसा भोजन बनाएं?
ऐसा माना जाता है कि श्राद्ध का भोजन बहुत ही साधारण और शुद्ध होना चाहिए वरना आपके पूर्वज उस खाने को ग्रहण नहीं करते और आपको श्राद्ध पूजा का पूरा लाभ नहीं मिल पाता श्राद्ध के भोजन में खीर पूरी अनिवार्य होती है। जौ, मटर और सरसों का उपयोग कना श्रेष्ठ माना जाता है। ज्यादा पकवान पितरों की पसंद करने के लिए होने चाहिए। गंगाजल, दूध, शहद, कुश और तिल सबसे ज्यादा ज़रूरी है। तिल ज़्यादा होने से उसका फल ज्यादा मिल सकता है। तिल पिशाचों से श्राद्ध की रक्षा करने में मदद कर सकता हैं।
श्राद्ध वाली तिथि पर सूर्योदय से पहले उठकर नहाएं और जब तक श्राद्धकर्म न हो तब तक कुछ न खाएं। सिर्फ पानी पी सकते हैं। दोपहर 12 बजे के आसपास श्राद्ध किया जाता है।
दक्षिण दिशा में मुंह रखकर बांए पैर को मोड़कर, बांए घुटने को जमीन पर टीका कर बैठ जाएं।
इसके बाद तांबे के चौड़े बर्तन में जौ, तिल, चावल गाय का कच्चा दूध, गंगाजल, सफेद फूल और पानी डालें।
हाथ में कुशा घास रखें। फिर उस जल को दोनों हाथों में भरकर सीधे हाथ के अंगूठे से उसी बर्तन में गिराएं। इस तरह 11 बार करते हुए पितरों का ध्यान करें।-
महिलाएं शुद्ध होकर पितरों के लिए भोजन बनाएं।
पितरों के लिए अग्नि में खीर अर्पण करें। इसके बाद पंचबलि यानी देवता, गाय, कुत्ते, कौए और चींटी के लिए भोजन सामग्री अलग से निकाल लें।
इसके बाद ब्राह्मण भोजन करवाएं और श्रद्धा के अनुसार दक्षिणा और अन्य सामग्री दान करें।
क्या हैं पितृपक्ष के नियम? तर्पण में कुश और काले तिल का विशेष महत्व है। इनके साथ तर्पण करना अद्भुत परिणाम देता है। जो कोई भी पितृपक्ष का पालन करता है, उसे इस अवधि में केवल एक वेला सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए, पितृपक्ष में सात्विक आहार खाएं, प्याज लहसुन, मांस मदिरा से परहेज करें। जहां तक संभव हो दूध का प्रयोग कम से कम करें।
ब्राह्मण भोजन से पहले पंचवली यानी गाय, कुत्ता, कौआ, देवता और चीटियों के लिए भोजन सामग्री पत्ते या दोने में अवश्य निकालें। जिस घर में पितरों का श्राद्ध होता है, उनके सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं। घर-परिवार, व्यवसाय तथा आजीविका में उन्नति होती है। साथ ही शिक्षा व्यापार अथवा वंश वृद्धि में आ रही रुकावटें हमेशा के लिए दूर हो जाती हैं।
श्राद्ध में मुख्यतः देय पदार्थ :
श्राद्ध मे तिल, जौ,चावल का अधिक महत्व है। कुश और कुतप बेला का भी महत्व सर्वाधिक माना गया है। पुराणों के अनुसार श्राद्ध करने का अधिकार सुयोग्य पुत्र को है, इसके अतिरिक्त पौत्र, भातृ, भतीजा या परिवार के किसी सदस्य अथवा इनके अनुपस्थित मे स्त्रियो को भी श्राद्ध करने का अधिकार है।
पितृपक्ष में कैसे करें पितरों को याद?
पितृपक्ष में हम अपने पितरों को नियमित रूप से जल अर्पित करें। यह जल दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके दोपहर के समय दिया जाता है। जल में काला तिल मिलाया जाता है और हाथ में कुश रखा जाता है। जिस दिन पूर्वज की देहांत की तिथि होती है, उस दिन अन्न और वस्त्र का दान किया जाता है। उसी दिन किसी निर्धन को भोजन भी कराया जाता है। इसके बाद पितृपक्ष के कार्य समाप्त हो जाते हैं।
श्राद्ध कब कब है कालयोगी आचार्य महिंद्र कृष्ण शर्मा बताते है:-
इस वर्ष श्राद्ध की तिथियां पितृ पक्ष 2021 20 सितंबर से 6 अक्टूबर तक
पूर्णिमा, सोमवार 20 सितंबर को प्रातः 5:28 बजे से प्रारंभ हो रही है और श्राद्ध मध्याह्न का विषय है. अतः पूर्णिमा का श्राद्ध 20 सितंबर को ही माना जाएगा।