पितृ पक्ष तिथि, नियम, विधि, भोजन और महत्व श्राद्ध में इन बातों का रखें विशेष ध्यान: आचार्य महिंद्र कृष्ण शर्मा

पितृ पक्ष: “श्राद्ध” जानें- तिथि, नियम, विधि, भोजन और महत्व: आचार्य महिंद्र कृष्ण शर्मा

आइए जानें:- तिथि, नियम, विधि, भोजन और महत्व

पितृ पक्ष की शुरुआत भाद्रपद पूर्णिमा तिथि से होती है और समापन आश्विन की अमावस्या पर होता है। इन 16 दिनों में पितरों का श्राद्ध कर उनका तर्पण किया जाता है। पितृ पक्ष 17 सितंबर से शुरू हो गए हैं। इस दिन

आचार्य महिंद्र कृष्ण शर्मा

पूर्णिमा श्राद्ध मनाया जाएगा। वहीं अगर पहले श्राद्ध की बात करें तो वो 18 सितंबर को पड़ रहा है। श्राद्ध पक्ष वास्तव में पितरों को याद करके उनके प्रति श्रद्धा भाव प्रदर्शित करने और नई पीढ़ी को अपने प्राचीन वैदिक और पौराणिक संस्कृति से अवगत कराने का पुण्य पर्व है। यही नहीं, पितरों का श्राद्ध करने से जन्म कुंडली में व्याप्त पितृदोष से भी हमेशा के लिए छुटकारा मिलता है।

श्राद्ध के माध्यम से पितर तृप्त होते हैं

आचार्य महिंद्र कृष्ण के अनुसार इसमे प्रथम तिथि प्रतिपदा और अन्तिम तिथि अमावस्या होती है। शास्त्रों मे तीन प्रकार के ॠण बताए गए हैं, देवॠण, ॠषि ॠण और पितृॠण। धर्मशास्त्र के अनुसार पितृपक्ष मे हमारे पितरों का पृथ्वी पर अवतरण होता है। उनके अवतरण पर उनके वंशज उन्हे तृप्त करने के लिए और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए जो कुछ भी श्रद्धा से अर्पण करते है, उसे उनके पूर्वज स्वीकार कर लेते हैं। यह कार्य सनातन धर्म की परम्परा मे आश्विन कृष्ण पक्ष (पितृ पक्ष ) में किया जाता है। इस पितृपक्ष को महालय भी कहा जाता है। ब्रह्म पुराण के अनुसार जो वस्तु उचित काल या स्थान पर पितरों के नाम पर उचित विधि से दिया जाता है, वह श्राद्ध कहलाता है। श्राद्ध के माध्यम से पितर तृप्त होते हैं। पिण्डदान श्राद्ध का अभिन्न अंग होता है। पितरोंस के अप्रसन्न होने से अनेक बाधाएं समुपस्थित होती है। यह अपने दिवंगत पूर्वजों के लिए श्राद्ध अवश्य किया जाए।

इस साल श्राद्ध पक्ष 17 सितंबर से शुरू हो गया है और इसकी समाप्ति 2 अक्टूबर को होगी। 17 सितंबर को पूर्णिमा श्राद्ध मनाया जाएगा तो वहीं 18 सितंबर को प्रतिपदा श्राद्ध पड़ेगा। 2 अक्टूबर को सर्वपितृ अमावस्या के साथ श्राद्ध पक्ष की समाप्ति हो जाएगी।

क्यों मनाया जाता है श्राद्ध पक्ष

pitra26ऐसा माना जाता है कि श्राद्ध या पितृ पक्ष के दौरान पूर्वज धरती पर आते हैं, इसलिए पितृ पक्ष में तर्पण और श्राद्ध के साथ दान करने का विधान बताया गया है। मान्यता है कि ऐसा करने से पितर प्रसन्न होते हैं और आर्शीवाद प्रदान करते हैं।

श्राद्ध में कैसा भोजन बनाएं?

ऐसा माना जाता है कि श्राद्ध का भोजन बहुत ही साधारण और शुद्ध होना चाहिए वरना आपके पूर्वज उस खाने को ग्रहण नहीं करते और आपको श्राद्ध पूजा का पूरा लाभ नहीं मिल पाता श्राद्ध के भोजन में खीर पूरी अनिवार्य होती है। जौ, मटर और सरसों का उपयोग कना श्रेष्ठ माना जाता है। ज्यादा पकवान पितरों की पसंद करने के लिए होने चाहिए। गंगाजल, दूध, शहद, कुश और तिल सबसे ज्यादा ज़रूरी है। तिल ज़्यादा होने से उसका फल ज्यादा मिल सकता है। तिल पिशाचों से श्राद्ध की रक्षा करने में मदद कर सकता हैं।

श्राद्ध वाली तिथि पर सूर्योदय से पहले उठकर नहाएं और जब तक श्राद्धकर्म न हो तब तक कुछ न खाएं। सिर्फ पानी पी सकते हैं। दोपहर 12 बजे के आसपास श्राद्ध किया जाता है।

दक्षिण दिशा में मुंह रखकर बांए पैर को मोड़कर, बांए घुटने को जमीन पर टीका कर बैठ जाएं।

इसके बाद तांबे के चौड़े बर्तन में जौ, तिल, चावल गाय का कच्चा दूध, गंगाजल, सफेद फूल और पानी डालें।

हाथ में कुशा घास रखें। फिर उस जल को दोनों हाथों में भरकर सीधे हाथ के अंगूठे से उसी बर्तन में गिराएं। इस तरह 11 बार करते हुए पितरों का ध्यान करें।

महिलाएं शुद्ध होकर पितरों के लिए भोजन बनाएं।

पितरों के लिए अग्नि में खीर अर्पण करें। इसके बाद पंचबलि यानी देवता, गाय, कुत्ते, कौए और चींटी के लिए भोजन सामग्री अलग से निकाल लें।

इसके बाद ब्राह्मण भोजन करवाएं और श्रद्धा के अनुसार दक्षिणा और अन्य सामग्री दान करें।

भोजन में उड़द की दाल, बडे, चावल, दूध, घी से बने पकवान, खीर, मौसमी सब्जी जैसे तोरई, लौकी, सीतफल, भिण्डी कच्चे केले की सब्जी ही भोजन में मान्य है। आलू, मूली, बैंगन, अरबी तथा जमीन के नीचे पैदा होने वाली सब्जियां पितरों को नहीं चढ़ती है।

क्या हैं पितृपक्ष के नियम? तर्पण में कुश और काले तिल का विशेष महत्व है।  इनके साथ तर्पण करना अद्भुत परिणाम देता है।  जो कोई भी पितृपक्ष का पालन करता है, उसे इस अवधि में केवल एक वेला सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए, पितृपक्ष में सात्विक आहार खाएं, प्याज लहसुन, मांस मदिरा से परहेज करें।  जहां तक संभव हो दूध का प्रयोग कम से कम करें।

ब्राह्मण भोजन से पहले पंचवली यानी गाय, कुत्ता, कौआ, देवता और चीटियों के लिए भोजन सामग्री पत्ते या डोने में अवश्य निकालें जिस घर में पितरों का श्राद्ध होता है, उनके सकल मनोरथ सिद्ध होते हैंघर-परिवार, व्यवसाय तथा आजीविका में उन्नति होती है साथ ही शिक्षा व्यापार अथवा वंश वृद्धि में आ रही रुकावटें हमेशा के लिए दूर हो जाती हैं

श्राद्ध में मुख्यतः देय पदार्थ :

श्राद्ध मे तिल, जौ,चावल का अधिक महत्व है। कुश और कुतप बेला का भी महत्व सर्वाधिक माना गया है। पुराणों के अनुसार श्राद्ध करने का अधिकार सुयोग्य पुत्र को है, इसके अतिरिक्त पौत्र, भातृ, भतीजा या परिवार के किसी सदस्य अथवा इनके अनुपस्थित मे स्त्रियो को भी श्राद्ध करने का अधिकार है।भाद्रपद की पूर्णिमा से अश्विन कृष्ण की अमावस्या तक कुल 16 दिन तक श्राद्ध रहते हैं। इन 16 दिनों के लिए हमारे पितृ सूक्ष्म रूप में हमारे घर में विराजमान होते हैं। श्राद्ध में श्रीमद्भागवत गीता के सातवें अध्याय का माहात्म्य पढ़कर फिर पूरे अध्याय का पाठ करना चाहिए। इस पाठ का फल आत्मा को समर्पित करना चाहिए। श्राद्धकर्म से पितृगण के साथ देवता भी तृप्त होते हैं। श्राद्ध-तर्पण हमारे पूर्वजों के प्रति हमारा सम्मान है। श्राद्ध का समय हमेशा जब सूर्य की छाया पैरो पर पड़ने लग जाए यानी दोपहर के बाद ही शास्त्र सम्मत है। सुबह-सुबह अथवा 12 बजे से पहले किया गया श्राद्ध पितरों तक नहीं पहुंचता है। 

kiपितृपक्ष में कैसे करें पितरों को याद?

पितृपक्ष में हम अपने पितरों को नियमित रूप से जल अर्पित करें। यह जल दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके दोपहर के समय दिया जाता है। जल में काला तिल मिलाया जाता है और हाथ में कुश रखा जाता है। जिस दिन पूर्वज की देहांत की तिथि होती है, उस दिन अन्न और वस्त्र का दान किया जाता है। उसी दिन किसी निर्धन को भोजन भी कराया जाता है। इसके बाद पितृपक्ष के कार्य समाप्त हो जाते हैं।

श्राद्ध कब कब है कालयोगी आचार्य महिंद्र कृष्ण शर्मा बताते है:-

“मध्याह्ने श्राद्धम् समाचरेत” इसके ​अनुसार श्राद्ध का कार्य व्यक्ति को दोपहर के समय में ही करना चाहिए। इस वजह से पितरों के लिए पिंडदान, श्राद्ध आदि 11:30 बजे से दोपहर 03:30 बजे तक कर लिया जाता है।

प्रतिपदा का श्राद्ध: 18 सितंबर
द्वितीया का श्राद्ध: 19 सितंबर
तृतीया का श्राद्ध: 20 सितंबर
चतुर्थी का श्राद्ध: 21 सितंबर
पंचमी का श्राद्ध: 22 सितंबर
षष्ठी का श्राद्ध: 23 सितंबर
सप्तमी का श्राद्ध: 24 सितंबर
अष्टमी का श्राद्ध: 25 सितंबर
नवमी का श्राद्ध: 26 सितंबर
दशमी का श्राद्ध: 27 सितंबर
एकादशी का श्राद्ध: 28 सितंबर
द्वादशी का श्राद्ध: 29 सितंबर
त्रयोदशी का श्राद्ध: 30 सितंबर
चतुर्दशी का श्राद्ध: 1 अक्टूबर
अमावस्या/पूर्णिमा का श्राद्ध: 2 अक्टूबर

 

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