शिमला का ऐतिहासिक और प्राचीन “हनुमान मंदिर जाखू”

कहा जाता है कि जब हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने जा रहे थे तब उन्होंने जाखू मंदिर पर विश्राम किया था..

जाखू मंदिर में प्रतिस्थापितं हनुमान जी की मूर्ति

देवभूमि हिमाचल जो बहुत से प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिरों के लिए जाना जाता है। उन्हीं में एक ऐतिहासिक शिमला का प्रसिद्ध जाखू मंदिर पहाड़ी के शीर्ष स्थित है। यह रिज से शायद ही 2 किलोमीटर की दूरी पर है और सुंदर देवदार के पेड़ के माध्यम में यह मंदिर स्थित है। शिमला का जाखू मंदिर भगवान हनुमान को समर्पित है। यह मंदिर 2455 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और शिमला की सबसे ऊंची चोटी पर स्थित है। पहले यहाँ छोटा सा मंदिर था मंदिर न्यास के गठन के बाद इस धार्मिक पर्यटन स्थल में मंदिर का निर्माण करवाया गया और मंदिर परिसर का सौंदर्यीकरण भी किया गया है।

108 फीट ऊंचाई इस हनुमान जी की मूर्ति का निर्माण बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन की बेटी श्वेता नन्दा और दामाद निखिल नन्दा ने करवाया है। साल 2010 में पूर्व मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल ने इस उद्घाटन किया था। इस दौरान मौके पर अभिनेता और श्वेता के भाई अभिषेक बच्चन मौजूद रहे थे। हनुमान जी की 108 फुट ऊंची प्रतिमा स्थापित करवा कर उस पर हनुमान जी सिंदूर का रंग करवाया गया है। यह प्रतिमा शिमला शहर के विभिन्न स्थानों मॉल, रिज, कच्चीघाटी बालूगंज आदि से देखी जा सकती है। हनुमान मंदिर में हर वर्ष दशहरे का व्यापक स्तर पर आयोजन किया जाता है, जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।

इतिहास

एक किवदंति के अनुसार एक पौराणिक कथा यह है कि रामायणकाल के पूर्व राम तथा रावण के मध्य लंका विजय के दौरान मेघनाद के तीर से भगवान राम के अनुज लक्ष्मण घायल बेहोश हो गये थे। उस समय सब उपचार निष्फल हो जाने के कारण वैद्यराज ने कहा कि अब एक ही उपचार शेष बचा है। जिसमें हिमालय के पर्वतमाला की संजीवनी जड़ी बूटी है जो इनका जीवन बचा सकती है। इस संकट की घड़ी में रामभक्त हनुमान ने कहा कि प्रभु मैं संजीवनी लेकर आता हूँ। आदेश पाकर हनुमान हिमालय की ओर उड़े, रास्तें में उन्होंने नीचे पहाड़ी पर ‘‘याकू’’ नामक ऋषि को देखा तो वे नीचे पहाड़ी पर उतरे। जिस समय पहाड़ी पर उतरे उस समय इस पहाड़ी ने उनके भार

शिमला का ऐतिहासिक और प्राचीन “हनुमान मंदिर जाखू”

को सहन नहीं किया परिणामस्वरूप पहाड़ी जमीन में धंस गई। मूल पहाड़ी आधी से ज्यादा धरती में समा गई इस पहाड़ी का नाम जाखू है। यह जाखू नाम ऋषि ‘‘याकू’’ के नाम पर पड़ा। श्री हनुमान ने ऋषि को नमन कर संजीवनी बूटी के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त की तथा ऋषि से वायदा किया कि संजीवनी लेकर जाते समय ऋषि आश्रम जाखू पहाड़ी पर जरूर आयेंगे परन्तु संजीवनी लेकर वापस जाते समय रास्ते में ‘‘कालनेमी’’ राक्षस द्वारा रास्ता रोकने पर उससे युद्ध कर परास्त किया। इसी दौरान समय ज्यादा व्यतीत हो जाने के कारण सूक्ष्म भाग से लंका पहुंचने का निश्चय कर रवाना हुए जहां श्रीराम उनका इन्तजार कर रहे थे। उसी भागमभाग तथा समयाभाव के कारण श्री हनुमान वापसी यात्रा में ऋषि ‘‘याकू’’ के आश्रम में जा नहीं सके जहां पर ऋषि श्री हनुमान का इन्तजार कर रहे थे। श्री हनुमान ‘‘याकू’’ ऋषि को नाराज नहीं करना चाहते थे इस कारण अचानक प्रकट होकर वस्तुस्थिति बताकर अलोप (गायब) हो गये। ऋषि याकू ने श्री हनुमान की याद में वहां मन्दिर निर्माण करवाया। मन्दिर में जहां पर हनुमानजी ने अपने चरण रखे थे, उन चरणों को मारबल पत्थर से बनवाकर रखे गये हैं तथा ऋषि ने वरदान दिया कि बन्दरों के देवता हनुमान जब तक यह पहाड़ी है लोगों द्वारा पूजे जावेंगे।

वहीं एक अन्य किवदंति के अनुसार इस मंदिर के विषय में एक पौराणिक कथा यह भी प्रचलित है। कहा जाता है कि जब हनुमान जी जब संजीवनी बूटी लेने जा रहे थे तब उन्होंने जाखू मंदिर पर विश्राम किया था। बूटी के लिए जाते समय बजरंगबली ने शिमला की उक्त पहाड़ी पर विश्राम किया था। थोड़ी देर विश्राम करने के बाद हनुमान जी अपने साथियों को यहीं पर छोड़ कर अकेले ही संजीवनी बूटी लाने के लिए निकल पड़े थे। ऐसा माना जाता है कि उनके वानर साथियों ने यह समझकर कि बजरंगबली उनसे नाराज होकर अकेले ही गए हैं उनका यहीं पहाड़ी पर वापस लौटने का इंतजार किया। इसी के परिणामस्वरुप आज यहां व्यापक संख्या में वानर पाए जाते हैं। यह शिमला का एक अत्यधिक श्रद्धेय धार्मिक स्थल है और प्रार्थना करने के लिए भारी संख्या में श्रद्धालू भारी तादाद में दूर-दूर से देश व विदेशों से पहुंचते हैं। यहां पर बहुत से श्रद्धालू व पर्यटक हजारों की संख्या में यहां पर आते हैं, तथा बन्दरों को मूंगफली तथा केले आदि खिलाते हैं, जो प्रेम से खाते हैं।

शिमला का प्रसिद्ध जाखू मंदिर

जाखू मंदिर में 1837 की खींची गई मंदिर की एक श्वेत श्याम फोटो लगी है। इसी मन्दिर परिसर में कुछ वर्ष पहले 108 फीट ऊँचे कद की आधुनिक नवीन तकनीकी युक्त हनुमान मूर्ति का निर्माण करवाया गया। मूर्ति निर्माण में सैंसर लगाया गया है जिससे पक्षी आदि मूर्ति पर नहीं बैठे। शिमला शहर में कहीं से भी आपको हनुमान जी की यह मूर्ति दिखाई देगी। मंदिर के गेट पर बंदरों से बचने के लिए छड़ी भी मिलती है। मंदिर में चढ़ाने के लिए प्रसाद भी छोटी-छोटी दुकानों में उपलब्ध है। जाखू मंदिर से शिमला शहर का विहंगम नजारा देखने का मजा ही कुछ ओर है। जाखू मंदिर के पास पहुंचने पर आप 210 मीटर से ज्यादा की ऊंचाई पर होते हैं और प्राकृतिक छटा का आनंद उठा सकते हैं। मंदिर के आस-पास हरी भरी मननोहक वादियों मन खूब आकर्षित करती हैं।

यात्रा का सही समय

मार्च से जून तक का समय अत्यंत ही उपयुक्त है। भारत के प्रत्येक बड़े शहर व राज्य की राजधानी से ‘‘कालका’’ रेलवे स्टेशन जुड़ा हुआ है। यहां तक आने के बाद यहां से छोटी लाईन से ‘‘खिलौना ट्रेन’’ के माध्यम से शिमला पहुंचा जा सकता है। बस सुविधा भी कालका से उपलब्ध है। सर्दियों में शिमला का तापमान 2 डिग्री से.ग्रे. से 8 डिग्री से.ग्रे. तक रहता है। अक्टूबर से फरवरी तक यहां पर बर्फ गिरती है जहां स्नोफॉल एवं स्केटिंग का पर्यटक आनन्द लेते हैं।

मन्दिर में दर्शन समय

गर्मियों में प्रात: 7 बजे से रात्रि 8 बजे तक तथा सर्दियों में प्रात: 8 बजे से सायं 6 बजे तक दर्शन करने हेतु मंदिर खुला रहता है।

बन्दरों से सावधान रहें

मन्दिर प्रवेश के समय बन्दरों की बहुतायत होती है इसलिए बन्दरों से छेड़-छाड़ नहीं करें तथा बिना छेड़-छाड़ बन्दर किसी को भी हानि नहीं पहुंचाते हैं। बच्चों का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है। बंदरों से बचने के लिए जरूरी है कि आप अपने साथ खाने-पीने की वस्तुएं न ले जाएं। जाखू मंदिर परिसर में सदियों से बंदरों की टोलियां रहती हैं। ये श्रद्धालुओं का कुछ बुरा नहीं करते लेकिन उनकी अपेक्षा रहती है कि आप उनके लिए कुछ दाना पानी जरूर लेकर आएं लेकिन इस बात का ख्याल रखें कि उनके साथ किसी प्रकार की छेड़छाड़ न करें।

 

सम्बंधित समाचार

अपने सुझाव दें

Your email address will not be published. Required fields are marked *