हिमाचल: ढलानों की तलहटी पर बसा हिमाचल का खूबसूरत “केलांग”; “केलंग” देवता से पड़ा था “केलांग” का नाम

हिमाचल प्रदेश को देव भूमि के साथ-साथ खूबसूरत पर्यटक स्थल के रूप में भी जाना जाता है। प्रदेश के खूबसूरत मनमोहक दृश्य दिल को छू लेते हैं। यहां पर अपार शांति का अनुभव होता है। प्रदेश के प्रकृति स्थल के ऊंचे ऊंचे पहाड़, हरी-भरी वादियां, बर्फ की चादर ओढे मनमोहक बर्फीली चोटियां, कलकल बहती नदियों का पानी जिस शांति का अनुभव कराता है उसे शब्दों में पिरोना बहुत ही कठिन है आज हम आपको जानकारी दे रहे हैं लाहौल स्पीति के एक खूबसूरत प्राकृतिक स्थल “केलांग” की। जो ना केवल पर्यटकों के लिए अपितु प्रदेश के लोगों के लिए भी पसंदीदा प्राकृतिक स्थल और आकर्षण का केंद्र है।

लाहौल-स्पीति में बसा खूबसूरत केलांग पर्यटकों के साथ-साथ हिमाचलवासियों का भी बारह महीने आकर्षण का केंद्र बना रहता है। केलांग समुद्र तल से 3350 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। चारों तरफ गगनचुंबी शिखर हैं। केलांग “मठों की भूमि” के नाम से प्रसिद्ध है। केलांग में कई पर्यटक स्थल हैं और यह लाहौल और स्पीति जिलों का मुख्यालय है। केलांग नाम केलंग देवता से पड़ा है। यह देवता गद्दियों का मुख्य देवता है। इस देवता का एक मंदिर कुगती दर्रे में है। इसे भगवान शिव का रूप मानते हैं। यहां देवी-देवताओं के प्रति गहरी आस्था है। ऊंची-ऊंची पहाड़ियां और वादियों पर छाई हरियाली मन को आनंदित करती है। केलांग के सामने दक्षिण की ओर डिलबुरी चोटी है। मध्य में प्रसिद्ध कारदंग गोम्पा बौद्धों और हिंदुओं की पूजा स्थली और तीर्थ है। इस चोटी की परिक्रमा होती है।

लेडी आफ केलांग’ से विख्यात डिलबुरी चोटी

‘लेडी आफ केलांग’ की चोटी दूर से देखने पर किसी महिला के सोई हुई आकृति का देती है आभास

शिखर पर कितनी ही बर्फ क्यों न गिर जाए लेकिन यह आकृति नहीं ढकती

किंवदंती है कि प्राचीन समय में इस चोटी के नीचे एक मंदिर था। यहां एक महात्मा और कन्या आपस में प्यार के बंधन में बंध गए और उन्होंने विवाह कर दिया। कन्या के बालक हुआ तो कुछ लोग उन्हें मारने की इच्छा से मंदिर की तरफ चल दिए। जब लोग वहां पहुंचे तो उनके देखते-देखते वे तीनों आसमान में बिजली बनकर उड़ गए। तभी से लोग इस चोटी की परिक्रमा करते हैं। चोटी काफी ऊंची है। इस पर बहुमूल्य जड़ी-बूटियां हैं। ‘लेडी आफ केलांग’ दूर से देखने पर यह चोटी किसी महिला के सोए हुए रूप का आभास देती है। इस शिखर पर कितनी ही बर्फ क्यों न गिर जाए लेकिन यह आकृति नहीं ढकती है। चांदनी रात में तो इसका दृश्य चमत्कृत करता है। केलांग के ऊपर कियारक्योक्स चोटी है। यह समुद्र तल से साढ़े उन्नीस हजार फुट के करीब ऊंची है। इसी के साथ गांग्सतंग चोटी है।

केलंग देवता से पड़ा था केलांग का नाम

यहां के लोगों को अपने धर्म में अटूट आस्था और विश्वास

केलांग का नाम केलंग देवता से पड़ा है। यह देवता गद्दियों का मुख्य देवता है। इस देवता का एक मंदिर कुगती दर्रे में है। इसे भगवान शिव का रूप मानते हैं। लोग लामाओं को घर में बुलाकर विशेष कर सार्दियों के मौसम में अनुष्ठान और पूजा करवाते हैं। केलांग को प्रसिद्धि ‘मोरावियन मिशन’ के जर्मनी से यहां आने के बाद मिली। यह मिशन 1853 से लेकर 1940 तक यहां रहा। इस मिशन ने अपने धर्म के बारे में प्रचार किया और लोगों को ईसाई बनने की प्ररेणा दी। वे इस कार्य में सफल नहीं हुए। यहां के लोगों को अपने धर्म में अटूट आस्था और विश्वास है। मोरावियन मिशन का घाटी के विकास में बड़ा योगदान रहा है।

कर्दंग और शासुर यहां के दो प्रसिद्ध मठ

केलांग में कई बौद्ध धार्मिक स्थल देखने को मिलेंगे जो अपनी निर्माण शैली और इनमें छिपे इतिहास के लिए प्रसिद्ध है। कर्दंग और शासुर यहां के दो प्रसिद्ध मठ हैं। कर्दंग मठ लगभग 900 साल पुराना और 3500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। जबकि शासुर मठ का निर्माण भूटान के राजा नावंग नाग्याल के धर्म प्रचारक ज़न्स्कार के लामा देवा ग्यात्शो ने 17वीं सदी में किया था। इनके आलावा गुरु घंटाल मठ, तायुल मठ, और गेमुर यहां के प्रसिद्ध मठ है।

तांदी, सिस्सू और उदयपुर केलांग के विशिष्ट स्थल

तांदी, सिस्सू और उदयपुर केलांग के विशिष्ट स्थान है। सिस्सू चन्द्र नदी के किनारे स्थित छोटा सा गांव है जो अपने पर्यटक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। पतझड़ और बसंत ऋतु में यहां कलहंस और बतखें पाई जाती हैं। जबकि उदयपुर अपने दो मंदिरों त्रिलोकिनाथ मंदिर और मर्कूला मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। पर्यटक केलांग केवल धार्मिक स्थानों के दर्शन करने ही नहीं आते, बल्कि यहां कई ऐडवेंचर स्पोर्ट्स खेले जाते हैं जैसे ट्रैकिंग, फिशिंग व जीप सफारी कैम्पिंग इत्यादि का आनन्द लेने भी आते हैं।

केलांग के लिए आवागमन सुविधा

केलांग के लिए यात्री सड़क मार्ग, रेल मार्ग या हवाई मार्ग द्वारा आ सकते हैं। भुंतर हवाई अड्डा केलांग के लिए सब से नज़दीकी हवाई अड्डा है जो केवल 165 कि.मी. की दूरी पर है। यहां से भारत के कई प्रमुख शहर जैसे दिल्ली, मुंबई के लिए उड़ानों की सेवा उपलब्ध है। जोगिन्दर रेलवे स्टेशन यहां का सब से नजदीकी रेलवे स्टेशन है जो केवल 280 कि.मी दूर है। यात्री किसी सरकारी या निजी बस द्वारा मनाली होते केलांग पहुंच सकते हैं।

केलांग घूमने का सबसे बेहतरीन समय मई से अक्टूबर का

केलांग में गर्मियां मई से लेकर अक्टूबर तक रहती है और यह केलांग घूमने का सबसे बेहतरीन समय है। 

कर्दंग मठ केलांग का प्राचीन गोम्पा

12वीं सदी में बने इस मठ का ग्रंथालय भारत का सबसे बड़ा बौद्ध ग्रंथालय

हिमाचल के केलांग से केवल 5 कि.मी दूर कर्दंग मठ काफी प्राचीन गोम्पा है। यह प्राचीन गोम्पा भगा नदी के किनारे, 3500 मीटर की ऊंचाई पर है। यह लगभग 900 साल पुराना है और यह मठ बुद्धियों के द्रुप कग्युद्ध स्कूल के अंतर्गत है। 12वीं सदी में बने इस मठ का ग्रंथालय भारत का सबसे बड़ा बौद्ध ग्रंथालय है। इस ग्रंथालय में भोटिया और शर्पा भाषाओं में लिखे कंग्युग और तंग्युग धर्म ग्रन्थ मौजूद है। इसके अलावा इस ग्रंथालय में तंका चित्र, वाद्ययंत्र जैसे तम्बूरा, ढोल, भोपू और कुछ पुराने हथियारों का संग्रहण किया है। 1912 में लामा नौर्बू रिन्पोच ने इसका नवीनीकरण किया।

गोम्पा के पहले कमरे में लामा नौर्बू की अस्थियां है। इसी कमरे में पद्मसंभव और तारा देवी की प्रतिमा भी स्थापित है। दूसरा कमरा एक प्रार्थना कक्ष है जहां ग्यारा सरों की अवलोकितेश्वर की मूर्ति है। तीसरे कमरे में लकड़ी का 6 फीट ऊंचा प्रार्थना चक्र जिसके ऊपर पीतल की घंटी है।

मठ में एक बड़ा सा ढोल है और एक कागज़ पर 6 शब्दान्शा का पवित्र मंत्र “ॐ मणि पद्मा हम” लाखों बार लिखा गया है। इस मठ में सन्यासी और सन्यासिन के हक एक सामान हैं। वे चाहे तो अपने पारिवारिक जीवन की शुरुआत कर सकते हैं। सन्यासी अपनी गर्मियां परिवार के साथ बिताते हैं और सर्दियां मठ में।

गुरु पद्मसंभव ने की थी गुरु घंटाल मठ की स्थापना

लाहौल जिले में स्थित यह मठ सब से प्राचीन और पवित्र धार्मिक स्थान

गुरु घंटाल मठ की स्थापना गुरु पद्मसंभव ने 8वीं सदी में की थी। इसे घंढोल मठ भी कहा जाता है। केलांग से 8 कि.मी दूर लाहौल जिले में स्थित यह मठ सब से प्राचीन और पवित्र धार्मिक स्थान है। मठ में बनी लकड़ी की मूर्तियां मठ के प्रमुख आकर्षण का केंद्र है। मठ की निर्माण शैली काफी अलग है। इसकी छत पिरामिड आकार की है और मठ में कई नक्काशियां की गयी है।

मठ की अवस्था ठीक न होने के कारण यहां की कई मूर्तियां तुपचिलिंग गांव के मठ में रखी गई है। चन्द्र और भागा नदी के किनारे बने इस मठ में बौधिसत्व और भगवान बुद्ध के करुना के प्रतीक अवलोकितेश्वर का क्षतिग्रस्त संगमरमर का सिर है। इस मठ का इतिहास दूसरी शताब्दी में नागार्जुन के समय का है। इस मठ में काले पत्थर की काली माँ की मूर्ति है, जिससे पता चलता है कि यह मठ पहले एक मंदिर था।

तायुल मठ, तिब्बती में ता-युल का अर्थ “चुनी हुई जगह”

यह धार्मिक और प्राचीन मठ केलांग से 6 कि.मी दूर है। समुद्री तट से 3900 मीटर ऊंचा सतिन्ग्री गांव का यह मठ केलांग का सबसे प्राचीन मठ है। इस मठ का निर्माण खाम शेत्र के ड़ोग्पा लामा, सेर्ज़ंग रिन्चन ने 17वीं सदी में किया था। तिब्बती में ता-युल का अर्थ है “चुनी हुई जगह”। इस मठ में 12 फीट ऊँची पद्मसंभव की मूर्ति के साथ सिंहमुख और वज्रवहत की मूर्ति भी रूपित है। इस मठ का प्रमुख आकर्षण है यहां की लाखों साल पुरानी मणि चक्र जो कई बौद्ध अवसरों पर स्वयं घुमती है। तायुल के लामा अनुसार यह 1986 में स्वयं घूमी थी।

सिस्सू गांव के पीछे घीपंग शिखर

सिस्सू एक छोटा सा गांव है, जो हिमाचल के केलांग में है। यह चन्द्र नदी के किनारे स्थिर समुद्री तट से 3100 मीटर की ऊंचाई पर है। सड़क के दोनों ओर लगाये गए नम्रा और पीपल के पेड़ इतने घने है कि सूरज की रोशनी भी इनमें प्रवेश नहीं कर पाती। ये सारी खूबियां इसे प्रसिद्ध पर्यटक स्थल बनाती हैं।

इसी गांव के पीछे घीपंग शिखर है, जिसका नाम लाहौल के देवता देव घीपंग पर रखा गया है। गांव से थोड़ी दूर घीपंग शिखर से सिस्सू नुलाह का प्रवाह है। यहां 11वीं और 12वीं सदी में बने दो प्राचीन फव्वारे इस स्थान को और भी आकर्षक बनाते हैं। केलांग में आलू, मटर, अनाज, जौ इत्यादि प्रमुख रूप से लगाये जाते हैं, इसके अलावा कई प्रकार के गुलाब के फूल भी लगाये जाते हैं। यात्रियों के विश्राम के लिए पीडब्ल्यूड़ी के विश्राम घरों की सुविधा उपलब्ध है। केलांग में कई सैलानी फिशिंग करने आते हैं। सैलानी जिस्पा और सिस्सू में मछली पकड़ने का आनंद उठा सकते हैं।

केलांग से 3 कि.मी दूर शासुर मठ

जून और जुलाई में छम्म अनुष्ठान

शासुर का अर्थ है नीला देवदार। शासुर मठ का निर्माण 17वीं सदी में भूटान के राजा नावंग नामग्याल के धर्म प्रचारक जन्स्कर के लामा देव ग्यात्शो ने किया था। शासुर केलांग से 3 कि.मी दूर है। यह मठ नीले देवदार के पेड़ों से घिरा हुआ है और यह प्रसिद्ध पर्यटक स्थल  है। मठ की दीवारों पर थांगका चित्रों का प्रदर्शन है जिनमें से कुछ 15 फीट ऊंचे है। यह चित्र बौद्ध धर्म के 84 सिद्धों का प्रतिनिधित्व करते है। जून और जुलाई में यहां छम्म नामक वार्षिक अनुष्ठान होता है।

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