“मधु विकास” योजना राज्य में मधुमक्खी पालन को करेगी प्रोत्साहित

हिमाचल: आधुनिक मधुमक्खी पालन, प्रदेश में बागवान देते हैं इटेलियन मधुमक्खी को अधिक महत्व

सेब की खेती में परागण के लिए इटेलियन मक्खियों के काम करने की क्षमता अधिक

वैज्ञानिक स्तर पर मधुमक्खी पालन 1954 से आरंभ हुआ, चंबा जिला के सरौल में आधुनिक ढंग का राजकीय मधुमक्खी पालन केंद्र खोला गया

हिमाचल प्रदेश के जंगलों और घरों में मधुमक्खियां सदा चलती रही हैं परंतु वैज्ञानिक स्तर पर मधुमक्खी पालन 1954 से आरंभ हुआ जब चंबा जिला के सरौल में आधुनिक ढंग का राजकीय मधुमक्खी पालन केंद्र खोला गया। उसके बाद सभी जिलों में आधुनिक ढंग के मधुमक्खी पालन केंद्र खोले जा चुके हैं

वैज्ञानिक तरीके से विधिवत मधुमक्खी पालन का काम अठारहवीं सदी के अंत में ही शुरू हुआ। इसके पूर्व जंगलों से पारंपरिक ढंग से ही शहद एकत्र किया जाता था। पूरी दुनिया में तरीका लगभग एक जैसा ही था।जिसमें धुआं करके, मधुमक्खियां भगा कर लोग मौन छत्तों को उसके स्थान से तोड़ कर फिर उससे शहद निकालते थे। जंगलों में हमारे देश में अभी भी ऐसे ही शहद निकाली जाती है।

मधुमक्खी पालन का आधुनिक वैज्ञानिक तरीका पश्चिम की देन है। यह निम्न चरणों में विकसित हुआ :

सन् 1789 में स्विटजरलैंड के फ्रांसिस ह्यूबर नामक व्यक्ति ने पहले-पहल लकड़ी की पेटी (मौनगृह) में मधुमक्खी पालने का प्रयास किया। इसके अंदर उसने लकड़ी के फ्रेम बनाए जो किताब के पन्नों की तरह एक-दूसरे से जुड़े थे।
सन् 1851 में अमेरिका निवासी पादरी लैंगस्ट्राथ ने पता लगाया कि मधुमक्खियां अपने छत्तों के बीच 8 मिलिमीटर की जगह छोड़ती हैं। इसी आधार पर उन्होंने एक दूसरे से मुक्त फ्रेम बनाए जिस पर मधुमक्खियां छत्ते बना सकें।
सन् 1857 में मेहरिंग ने मोमी छत्ताधार बनाया। यह मधुमक्खी मोम की बनी सीट होती है। जिस पर छत्ते की कोठरियों की नाप के उभार बने होते हैं, जिस पर मधुमक्खियां छत्ते बनाती हैं।
सन् 1865 में ऑस्ट्रिया के मेजर डी. हुरस्का ने मधु-निष्कासन यंत्र बनाया। अब इस मशीन में शहद से भरे फ्रेम डाल कर उनकी शहद निकाली जाने लगी। इससे फ्रेम में लगे छत्ते एकदम सुरक्षित रहते हैं। जिन्हें पुनः मौन पेटी में रख दिया जाता है।
सन् 1882 में कौलिन ने रानी अवरोधक जाली का निर्माण किया जिससे बगछूट और घरछूट की समस्या का समाधान हो गया। क्योंकि इसके पूर्व मधुमक्खियां, रानी मधुमक्खी सहित भागने में सफल हो जाती थीं। लेकिन अब रानी का भागना संभव नहीं था।

इटेलियन मधुमक्खी बेहद फुर्तीली होती है

हिमाचल में बागवान इटेलियन मधुमक्खी को अधिक महत्व देते हैं। सेब की खेती में परागण के लिए इन मक्खियों के काम करने की क्षमता अधिक है, जिससे पहाड़ी प्रजाति की मधुमक्खी पीछे रह गई है।

इटेलियन मधुमक्खी बेहद फुर्तीली होती है जो पहाड़ी मक्खी की तुलना में कम समय में ज्यादा फूलों पर जाती है। इससे परागण प्रक्रिया तेज होती है। जिससे पैदावार की संभावना बढ़ जाती है।

मधुमक्खियां पॉलीनाइजर सेब किस्म के फूलों से पराग उठाकर उसे रेड डिलिशियस, रॉयल या अन्य किस्मों के फूलों पर डाल देती हैं। इससे फल बनते हैं। सेब के फलों की दो तरह की किस्में होती हैं। एक पॉलीनाइजर किस्म होती है। ये अपना और अपने आसपास उगी दूसरी तमाम प्रजातियों के सेब के पेड़ों में पोलीनेशन करती हैं।

रेड डिलिशियस और रॉयल सेब किस्में अपना पोलीनेशन खुद नहीं कर पातीं। ऐसे में बाहरी प्रदेशों से लाई जाने वाली इटेलियन मधुमक्खियां या पहाड़ी मधुमक्खियां ही इनकी परागण प्रक्रिया में खूब सहायक होती हैं।

राज्य के बागवानी क्षेत्रों में मौसम ठंडा रहने के कारण यहां मधुमक्खियों का बड़े पैमाने पर बागवान खुद उत्पादन नहीं कर पाते

राज्य के बागवानी क्षेत्रों में मौसम ठंडा रहने के कारण यहां मधुमक्खियों का बड़े पैमाने पर बागवान खुद उत्पादन नहीं कर पाते हैं। ऐसे में हिमाचल के निचले गरम इलाकों से लाई जाने वाले मधुमक्खियां कम पड़ जाती है जिसके कारण बागवानों को बाहरी राज्यों का रुख करना पड़ता है।

एपिस सिरेना इंडिका देसी या पहाड़ी मधुमक्खी है। ये भारतीय मधुमक्खी तीन से चार सेकेंड में एक से दूसरे फल पर जाती है। एक मिनट में 20 फूलों को पोलीनेट करती है। पहाड़ी मधुमक्खियां बीमारियों से लड़ने की ज्यादा क्षमता रखती हैं, जबकि ये क्षमता इटेलियन मधुमक्खी में कम होती है।

मधुमक्खियों की किस्में

 रानी मक्खी : यह पूर्ण नारी है तथा सारे मधुमक्खी परिवार की मां होती है। इसका शरीर सुंदर चमकीला, तथा पेट नर व कमेरी मधुमक्खी से लंबा होता है। इसका कार्य केवल अंडे देना होता है। यह दो प्रकार के अंडे देती है जिसमें से कमेरी मधुमक्खियां व निखट्टू उत्पन्न होते हैं।

कमेरी मक्खी : इस पर वंश की देखभाल, बच्चे पालने, भोजन एकत्रित करने, छत्ते बनाने तथा शत्रुओं से रक्षा आदि का काम करने का भार होता है।

नर मक्खी या निखट्टू : नर मक्खी निखट्टू कहलाते हैं और कोई कार्य नहीं करते हैं। मधुमक्खी परिवार में रानी, कमेरी व निखट्टू एक-दूसरे पर पूरी तरह निर्भर होते हैं तथा किसी एक के बिना वंश का काम ठीक प्रकार नहीं चल पाता। किसी भी परिवार में कमेरी मक्खियों की जितनी अधिक संख्या होती है वह परिवार उतना ही शक्तिशाली माना जाता है।

मधुमक्खियों की जातियाँ

हिमाचल प्रदेश में पाई जाने वाली चार प्रकार की मधुमक्खियां हैं:

डूमना या भन्डौर: ये प्राय: चट्टानों, निर्जन मकानों की छतों, तथा ऊँचे पेड़ों की टहनियों में तीन चार फुट लंबा एक ही छत्ता बनाती हैं। ये बहुत मेहनती और अधिक शहद इकट्ठा करने वाली होती हैं परंतु एक ही छत्ता बनाने, अत्यंत क्रोधी स्वभाव की होने तथा एक ही स्थान पर न रुकने वाली आदत के कारण इनको आधुनिक ढंग से नहीं पाला जा सकता।

रानी मधुमक्खी : एक वर्ष में 15 से 20 किलोग्राम शहद तैयार करती हैं। यदि इस मधुमक्खी के स्थान बदलते रहे तो एक वर्ष में 100 किलोग्राम शहद भी तैयार कर सकती है। रानी मधुमक्खी की तुलना में दूसरी मधुमक्खी वर्ष में तीन से पांच किलोग्राम तक शहद तैयार करती हैं।

छोटी मक्खी : यह समुद्र तल से लगभग 2 हजार फुट की ऊंचाई तक पाई जाती है। यह 8-10 इंच की लंबाई का एक ही छत्ता झाड़ियों, छोटे वृक्षों की टहनियों तथा दीवारों आदि की दरारों में बनाती हैं। बहुत थोड़ा शहद इकट्ठा करने तथा एक ही स्थान पर न रहने वाली आदत होने के कारण इसको भी आधुनिक ढंग से नहीं पाला जा सकता।

पहाड़ी या हिंदुस्तानी मक्खी : यह हिमाचल प्रदेश के सभी भागों में पाई जाती है। पेड़ों के खोखले तनों, पहाड़ों की दरारों तथा दीवारों आदि में कई समानांतर छत्ते बनाकर अंधेरे में रहती हैं। शील स्वभाव, समानांतर छत्ते बनाने तथा एक ही स्थान पर लगातार रहने की आदत होने के कारण यह मधुमक्खी आधुनिक ढंग से पाली जाती है। इनके अतिरिक्त कुछ अन्य डंक रहित डम्बर मधुमक्खियों की जातियां, जैसे कि मैलीपोना व ट्रीगोना आदि हैं जो कि बहुत ही छोटी होती हैं। ये बहुत ही थोड़ा शहद पैदा करती हैं। इनको भी आधुनिक ढंग से पालना न तो संभव है और न ही लाभप्रद।

विदेशी मधुमक्खी : पिछले कुछ वर्षों से एक अन्य जाति जिसका नाम एफिस मैलीफैरा है और जो कि पहाड़ी या हिंदुस्तानी मक्खी की ही एक प्रजाति है, विदेशों से मंगवाकर पाली जा रही है। यह भी हिंदुस्तानी मक्खी की तरह ही पाली जा सकती है तथा शहद भी अधिक देती है। हिमाचल प्रदेश के अत्याधिक ठंडे क्षेत्रों को छोड़कर यह प्रजाति प्रदेश के सभी भागों में सफलतापूर्वक पाली जा सकती है।

 मधुमक्खी पालने के लिए उपयोगी पुष्प क्षेत्र

प्रदेश के सभी भागों में मधुमक्खियों के लिए उपयोगी फूल अधिक मात्रा में नहीं पाए जाते। परंतु जहां फूल कम होते हैं यदि उन क्षेत्रों में मधुमक्खियों के लिए उपयोगी फूलों को बढ़ावा दिया जाए तो वे क्षेत्र मधुमक्खी पालने के लिए उपयोगी बनाए जा सकते हैं।

 प्रदेश के पुष्प क्षेत्र :

निचले पर्वतीय क्षेत्र : इन क्षेत्रों में प्राय: एक बार ही शहद निकाला जाता है। दो-तीन हजार फीट तक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तुन, ओई, सरिस आदि वृक्ष पाए जाते हैं जो अप्रैल-मई में फूलते हैं इनसे पर्याप्त मात्रा में शहद एकत्रित किया जाता है।

 मध्य पर्वतीय क्षेत्र : 3 से 5 हजार फीट की ऊंचाई वाले मध्य पर्वतीय पर्वतीय क्षेत्रों में कशमल और छिछड़ी आदि झाड़ियों के फूलों के होने से पर्याप्त मात्रा में शहद एकत्र किया जाता है। कशमल अप्रैल-मई में फूलती है और छिछड़ी सितंबर-अक्तूबर में। यही कारण है कि इन क्षेत्रों में शहद दो बार प्राप्त होता है।

ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र : अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में कशमल और छिछड़ी के अतिरिक्त औगले की खेती की जाती है। ये सभी शहद के मुख्य स्त्रोत हैं। यही कारण है कि ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में शहद अधिक पैदा होता है।

मधु, परागकण आदि की प्राप्ति के लिए मधुमक्खियाँ पाली जाती हैं। मधुमक्खियां फूलों के रस को शहद में बदल देती हैं और उन्हें छत्तों में जमा करती हैं। जंगलों से मधु एकत्र करने की परंपरा लंबे समय से लुप्त हो रही है। बाजार में शहद और इसके उत्पादों की बढ़ती मांग के कारण मधुमक्खी पालन अब एक लाभदायक और आकर्षक उद्यम के रूप में स्थापित हो रहा है। एक छत्ते में इनकी संख्या लगभग 20 हजार से 50 हजार तक होती है। इनके छत्ते से प्राप्त शहद बहुत पौष्टिक होता है।

मधुमक्खियां सेब का फल लगने से पहले फूलों पर बैठती हैं और परागण करती हैं। इससे अच्छे तथा अधिक मात्रा में फल लगते हैं। मधुमक्खी परागणता के अलावा अन्य बहुत से महत्वपूर्ण पदार्थ प्रदान करती हैं। जैसे शहद, मोम एवं रायल जैली आदि। मधुमक्खी पालन के उत्पाद के रूप में शहद और मोम आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। मधुमक्खी कीट वर्ग का सामाजिक प्राणी है जो खुद के बनाए हुए मोम के छत्ते में संघ बनाकर रहता है, जिसमें एक रानी कई सौ नर एवं शेष श्रमिक होते हैं।

रानी मधुमक्खी पर सबसे पहले कांगड़ा जिला के नगरोटा बगवां में 1962 में शोध हुआ। हमीरपुर के भोटा कृषि फार्म में 2003 से रानी मधुमक्खी पर काम शुरू हुआ। औद्यानिकी एवं वानिकी महाविद्यालय शोध संस्थान नेरी में 2011 में इस पर काम हुआ और रानी मधुमक्खी का पता लगाया गया। यह मधुमक्खी ज्यादा बच्चों को जन्म देती है और शांत स्वभाव की होती है। ज्यादातर काटती भी नहीं है।

हिमाचल प्रदेश मधुमक्खी पालन लोन योजना के तहत मधुमक्खी पालन करने वाले लाभार्थी मधुमक्खी पालन करने के लिए जरूरत की सभी सामग्री उपकरणों पर एक सेट प्रति लाभार्थी को 20000 प्रति इकाई की लागत पर 80% लागत राशि अर्थात 16000 मधुमक्खी वंश प्रदान किया जायेगा। साथ ही लाभार्थी को मधुमक्खी घरों की लागत का 100% अनुदान भी दिया जायेगा।इस योजना को राज्य में बढ़ रही बेरोजगारी को कम करने और राज्य बेरोजगार महिला व शारीरिक रूप से अक्षम किसानों को रोजगार प्रदान करने और उनकी आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए इस योजना को शुरू किया गया है।

मधुमक्खी पालन दीवारों पर और मधुमक्खी गृहों में मधुमक्खी  के पालन के लिए मधुमक्खी पालकों को प्रोत्साहन के रूप में अधिकतम 5 मधुमक्खी घरों की लागत का 100% अर्थात 1000 रुपए  राशि प्रति मधुमक्खी गृह प्रदान की जाएगी।

 ट्रेनिंग और घूमने का खर्च –  सरकार द्वारा शुरू की गयी इस मधुमक्खी पालन योजना के अंतर्गत 25 नए मुख्यमंत्री पलकों के लिए प्रतिवर्ष पांच दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया जाएगा जिसके तहत 400 की राशि प्रतिदिन प्रति मधुमक्खी पालन को प्रदान की जाएगी।

सब्सिडी –  इस मधुमक्खी पालन योजना के तहत मधुमक्खी पालने वाले नागरिक को  जरूरत की सभी सामग्री उपकरणों पर एक सेट प्रति लाभार्थी को 20000 प्रति इकाई  की लागत पर 80% लागत राशि अर्थात 16000 मधुमक्खी वंश प्रदान की जाएगी।

 ट्रांसपोर्ट और उपकरण सब्सिडी इस मधुमक्खी पालन योजना के अंतर्गत परिवहन उत्पाद के रूप में प्रवास अनुदान के तौर पर अंतर राज्य प्रवास के लिए 10000 की लागत पर 5000 की राशि 100 मधुमक्खी बस प्रति लाभार्थी को प्रति यात्रा प्रति वर्ष प्रदान की जाएगी।

 हिमाचल प्रदेश “मधुमक्खी पालन लोन” योजना का लाभ कौन ले सकता है?

हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा शुरू की गयी मधुमक्खी पालन लोन योजना का लाभ राज्य के सभी गरीब बेरोजगार महिला व शारीरिक रूप से अक्षम किसानों को दिया जायेगा।हिमाचल प्रदेश राज्य सरकार ने मधुमक्खी पालन को प्रोत्साहन देने के लिए इस मधुमक्खी पालन योजना की शुरूआत की है।हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा शुरू की गयी इस मधुमक्खी पालन योजना में आवेदन करने के लिए आपको सबसे पहले हिमाचल प्रदेश की इस वेबसाइट पर विजिट करना होगा, आप हुए लिंक https://hpkangra.nic.in/ पर भी क्लिक करके इस वेबसाइट पर विजिट कर सकते है।

जैसे ही आप इस लिंक पर क्लिक करेगे आप सीधे इस इस वेबसाइट के होमपेज पर पहुँच जायेगे, यहाँ आपको मधुमक्खी पालन योजना का लिंक दिखाई देगा आपको उस लिंक पर क्लिक करना होगा।

जारी………………………………………………………………………………

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