शिमला : दिवाली के अगले दिन सोमवार को शिमला के धामी में खूनी खेल खेला गया जिसमें कुछ लोग घायल हो गए। शिमला के धामी में एक ऐसा खेल खेला जाता है, जिसमें बड़ी संख्या में लोग तब तक एक दूसरे पर पत्थर बरसाते हैं, जब तक किसी के सिर से खून न निकल जाए। हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले में आस्था के नाम पर दिवाली के अगले दिन लोगों का खून बहता है। आस्था के नाम पर चलने वाला यह खेल लोग बिना किसी डर के 10 मिनट तक खेलते रहते हैं। इस खेल में घायल हुए लोगों का खून मां काली के मंदिर में चढ़ाया जाता है।
यहां दीपावली के अगले दिन एक मेले का आयोजन होता है। इस मेले का सबसे प्रमुख आकर्षण पत्थरों का युद्ध होता है। स्थानीय बोली में इसे पत्थरों का बहेड़ भी कहते हैं। लोग एक-दूसरे को पूर्व निर्धारित स्थानों से पत्थर मारते हैं और जब किसी व्यक्ति को पत्थर लग जाता है तो उसका खून माता काली के मंदिर में चढ़ा कर मेले की परंपरा को सम्पन्न किया जाता है।
मान्यता है कि सैंकड़ों साल पहले यहां मानव बलि की प्रथा थी। यहां का जो राजा था, उसकी जब मृत्यु हुई तो उनकी रानी ने सती होने का निर्णय लिया, लेकिन रानी मानव बलि पर रोक लगाना चाहती थी, इसलिए रानी ने सती होने के बाद माता काली से बात की और लोगों को बताया कि मानव बलि को बंद करके और कोई अन्य व्यवस्था करें। फिर थोड़ा समय तक पशु बलि का प्रावधान किया गया।
यहां यह प्रथा सैकड़ों सालों से चली आ रही है। इस प्रथा को आज भी स्थानीय लोग पूरी निष्ठा से निभा रहे हैं। यहां पत्थर बरसाने से लोगों के सिर से खून निकलता है और उसे काली मां के मंदिर में चढ़ाया जाता है। धामी के चौरा में सैंकड़ों वर्षों से एक खूनी खेल खेला जाता है। जिसमें चौरा के लोग दो गुटों में बंट कर एक दूसरे पर जम कर पत्थर बरसाते हैं।