हिमालयी राज्यों के लिए होगा आपदा राहत निधि का सृजन : निदेशक एवं विशेष सचिव (राजस्व एवं आपदा प्रबंधन) डी.सी. राणा

  • हिमालयी राज्यों के लिए सृजित की जाएगी आपदा राहत निधि: डी.सी. राणा
  • हिमालयी क्षेत्रों में पर्यटकों व पर्यटन स्थलों के लिए मजबूत नीति तथा प्रोटोकोल विकसित करने पर किया जाएगा ध्यान केन्द्रित
  • उत्तर-पश्चिमी हिमालयी पहाड़ी शहरों में आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर कार्यशाला सम्पन्न

रीना ठाकुर/शिमला: उत्तर-पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र के पहाड़ी शहरों में आपदा जोखिम न्यूनीकरण की चुनौतियों पर दो दिवसीय कार्यशाला बुधवार सायं यहां सम्पन्न हुई। कार्यशाला के समापन पर उत्तर-पश्चिमी राज्यों के लिए आपदा प्रबन्धन की तैयारियों तथा आपदा की प्रतिक्रिया में सुधार पर चर्चा की गई।

निदेशक एवं विशेष सचिव (राजस्व एवं आपदा प्रबंधन) डी.सी. राणा ने बताया कि कार्यशाला के दौरान विचार-विमर्श और चर्चाओं के आधार पर, उत्तर-पश्चिमी हिमालयी राज्यों की भौगोलिक संवेदनशीलता के मद्देनज़र विभिन्न महत्वपूर्ण सिफारिशें और निर्णय लिए गए। उन्होंने कहा कि हिमालयी राज्यों के लिए एक आपदा राहत निधि सृजित की जाएगी। कार्यशाला में सभी  पहाड़ी शहरी क्षेत्रों के लिए एक जोखिम संवेदनशील भूमि उपयोग योजना बनाने और इसके सूक्ष्म आकलन के लिए ऐसे संभावित क्षेत्रों का खाक़ा तैयार करने की आवश्यकता पर बल दिया गया। उत्तर-पश्चिमी हिमालयी राज्यों के लिए प्राकृतिक आपदा को लेकर पूर्व चेतावनी प्रणाली को सुदृढ़ करने का सुझाव दिया गया। बाहरी एजेंसियों के वित्तपोषण द्वारा भूंकप और भूस्खलन का प्रारंभिक तौर पर विस्तृत अध्ययन किया जाएगा।

डी.सी. राणा ने कहा कि हिमालयी क्षेत्रों में पर्यटकों व पर्यटन स्थलों के लिए एक मजबूत नीति तथा प्रोटोकोल विकसित करने पर ध्यान केन्द्रित किया जाएगा। वर्तमान उपलब्ध संरचनाओं को प्राथमिकता के आधार पर चरणबद्ध तरीके से पूर्ववत विकसित किया जाएगा। कार्यशाला में इस बात पर बल दिया गया कि भवन निर्माण के उप-नियम व्यापक होने चाहिए तथा भवनों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक प्रावधान किए जाएं। पहाड़ी राज्यों के उप-नियमों में राष्ट्रीय भवन निर्माण नियमों को यथावत लागू किया जाना चाहिए। कार्यशाला में यह भी सुझाव दिया गया कि ग्रामीण क्षेत्रों में बनने वाले पुराने व नए व्यावसायिक भवन भी भवन उप-नियम के तहत आने चाहिए तथा इन नियमों का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए। भवन उप-नियमों को बनाने और लागू करने का कार्य नगर नियोजन तथा शहरी विकास विभागों जैसी नोडल एजेंसियों के माध्यम से किया जाना चाहिए जो इसके लिए पूर्ण रूप से सक्षम हैं। इन एजेंसियों को नियमित रूप से भवन उप-नियमों के व्यावहारिक प्रावधानों को अपडेट करने तथा प्रभावी रूप से लागू करने की आवश्यकता है।

 उन्होंने कहा कि अग्निश्मन तथा नागरिक सुरक्षा जैसी एजेंसियों की संख्या में बढ़ोतरी के प्रयास करने तथा इन्हें आपदा के समय खोज एवं बचाव कार्य के लिए नवीनतम तकनीकी उपकरणों के साथ सुदृढ़ करने पर बल दिया जाना आवश्यक है। विभिन्न आपदाओं की निगरानी को लेकर अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के उपयोग के लिए प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। यह भी सुझाव दिया गया है कि सामुदायिक स्तर पर प्रतिक्रिया तंत्र को विकसित किया जाना चाहिए तथा विभिन्न आपदाओं के बारे में नीति निर्माताओं व अधिकारियों को जागरूक किया जाए।

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