काम के मुताबिक प्राइवेट स्कूलों में वेतन बहुत कम
निजी स्कूल के टीचर्स का कहना होता है कि उन्हें काम के मुताबिक प्राइवेट स्कूलों में वेतन बहुत कम मिलता है। निजी स्कूली संस्थाओं को इस बारे में भी ध्यान देना चाहिए। हम अच्छा कर रहे हैं तभी हमारे स्कूलों में बच्चों की हर वर्ष बढ़ोतरी हो रही है… लेकिन टीचर्स के मान-सम्मान और वेतन पर भी ध्यान देना आवश्यक है। जोकि नही के बराबर है…जबकि सरकारी स्कूलों में बच्चों की बहुत कम संख्या होती है, वेतन बहुत अधिक मिलता है और काम कुछ भी नहीं करना पड़ता। लेकिन उसके वाबजूद भी कुछ टीचर्स अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाते हैं तो कुछ सरकारी नौकरी फर्ज कम फायदे के लिए करते हैं।
सरकारी स्कूलों में कोई देखने सुनने वाला नहीं
दूर-दराज इलाकों के सरकारी स्कूलों में कोई पूछने वाला नहीं
टीचर्स का मन हुआ तो आ गए, नहीं हुआ नहीं आए…
सब गरीब बच्चे अफसर तो नहीं बन सकते न? सरकारी नौकरी में चपरासी तक की नौकरी पाने के लिए रिश्वत लेते हैं हम पढ़ा तक नहीं सकते रिश्वत क्या खिलाएंगे? जैसे हैं चलने दो। गरीब का कुछ नहीं बदल सकता।…..वहीं गांव के कुछ दूर-दराज इलाके ऐसे भी हैं जहां सरकारी स्कूल तो बहुत हैं पर बच्चों की संख्या कम। अध्यापक कभी आते हैं कभी नहीं। दूर-दराज इलाका है कोई पूछने वाला नहीं। 8-10 बच्चे हैं बहुत गरीब लोगों के। बाकियों के बच्चे निजी स्कूलों में जाते हैं। सरकारी स्कूलों में कोई देखने सुनने वाला नहीं। टीचर्स का मन हुआ तो आ गए, नहीं हुआ नहीं आए।
दु:खद है न, सरकारी स्कूल में टीचर्स हजारों रुपये वेतन लेते हैं बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए। कुछ टीचर्स अपने फर्ज को बखूबी निभाने के लिए बहुत मेहनत करते हैं तो कुछ अपने ही भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए बच्चों के भविष्य से खिलवाड़।
टीचर्स और प्रशासन के ढुलमुल रवैये के चलते मासूम बच्चों का भविष्य दांव पर
निजी स्कूलों की बात हो या सरकारी स्कूलों की, कुछ टीचर्स और प्रशासन के ढुलमुल रवैये के चलते इसमें मासूम बच्चों का भविष्य दांव पर ही रहता हैं। जिनका भविष्य नर्सरी से शुरू होता है और 12वीं कक्षा तक उसे घर, परिवार और स्कूल के मीठे-कड़वे अनुभव से गुजरते हुए वे अपने भविष्य को तय करने की नई दिशा की और अग्रसर होते हुए बाहर निकलते हैं।
समझना चाहिए कि बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए अभिभावकों की और टीचर्स की सबसे अहम भूमिका रहती है। कुछ अभिभावक समय के अभाव के चलते बच्चों की जरूरतों को पैसों से पूरी करने की कोशिश करते हैं क्योंकि उनके पास बच्चों के साथ समय बिताने का वक्त नहीं होता, तो वहीं कुछ अभिभावक बच्चों से बड़ी-बड़ी अपेक्षाएं करनी शुरू कर देते हैं जो पूरी न होने पर बच्चों पर दबाव बनाते हुए उनके मासूमियत को खत्म कर देते हैं। टीचर्स को भी समझना चाहिए कि सभी बच्चे एक से नहीं होते लेकिन हमें सभी बच्चों को अपने देश के लिए व आने वाले कल के लिए मजबूत कड़ी बनाना है। निजी हों या सरकारी स्कूल, हर टीचर्स पर हर बच्चे के अनुशासन, संस्कार और शिक्षा को लेकर उसके भविष्य की बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है। नर्सरी से 12वीं तक हर टीचर्स की होनहार बच्चों को अच्छा नागरिक अच्छा इंसान बनाने की अहम जिम्मेदारी होती है जिसमें अभिभावकों की भी उतनी ही अहम भूमिका होती है जितनी टीचर्स की।
प्रतिस्पर्धा के दौर में बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित
…सभी अपने कर्तव्य बखूबी निभाते, तो शायद शिक्षा तंत्र मजबूत तंत्र साबित होता
आजकल देखा-देखी के चलते प्रतिस्पर्धा के दौर में बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। बच्चे हमारे देश की आने वाले कल की नींव हैं। आवश्यक है टीचर्स और अभिभावक आपसी तालमेल से इसे मजबूत बनाएं। मासूम बच्चों की नर्सरी क्लास की मासूमियत 12वीं क्लास के युवा बच्चे के भविष्य को स्कूल से निकलते हुए परिपक्वता के सारे पाठ पढ़ा कर उनके खुद के भविष्य के निर्णय लेने के लिए तब तक परिपक्व बना चुकी होती है। लेकिन इसमें हर उस शख्स की अहम भूमिका होती है जो समय-समय पर बच्चों को कदम-कदम पर प्ररेणा देकर उनका मार्गदर्शन करते हैं। अफ़सोस! सभी अपने कर्तव्य को बखूबी निभाते, तो शायद शिक्षा तंत्र सबसे मजबूत तंत्र साबित होता। लेकिन ऐसा नहीं है….
सरकार और प्रशासन द्वारा निजी और सरकारी स्कूलों पर कड़ी निगरानी रखने की आवश्यकता
सरकार और प्रशासन द्वारा निजी और सरकारी स्कूलों पर कड़ी निगरानी रखने की आवश्यकता है वहीं जो टीचर्स अपने काम के प्रति ईमानदार नहीं है उनके खिलाफ कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए। लेकिन जो अपने काम के प्रति ईमानदार हैं और अपने कार्य का निर्वहन बखूबी कर रहे हैं उन सभी को सम्मानित भी किया जाना चाहिए। जिससे टीचर्स अपने काम के प्रति सजग रहें उत्साहित रहें ताकि हमारे बच्चे जो आने वाले कल का भविष्य हैं उनकी नींव मजबूत हो और हमारे देश का भविष्य उज्जवल।
सरकार द्वारा शिक्षा पर करोड़ों रूपये खर्च तो हो रहे हैं लेकिन कागज़ों पर धरातल पर क्या..सोचने को विषय है!