✍🏻✍🏻”यहाँ तो अपने ही घर के घर जलाने में लगे हैं
जिस घर को घर बनाने में जमाने लगे हैं”
कैसे थमेगा ये नफरतों का कारवां….
कि लोग ख़ंजर छुपाकर हाथ मिलाने लगे हैं।
मिलाएंगे क्या वो तुम्हें भगवान से..
जो खुद अपने दामन के दाग ही छुपाने में लगे हैं।
किस पर भरोसा करें कोई तो बताए,
यहां तो पहरेदार ही कातिल बचाने में लगे हैं।
किस-किस से हिफ़ाजत किस-किस की जाए,
सरहद से लेकर घर तक, कोई बारूद तो कोई पत्थर मारने में लगे हैं।
रक्षा और सुरक्षा के दावे कमज़ोर हो रहे हैं,
क्योंकि कई उकसाने में, तो कई मनाने में लगे हैं,
जिनके बस में कुछ नहीं वो देश को बचाने में लगे हैं।
जो बदल सकते हैं तकदीर देश की,
वो नौजवान नशे की गर्त में जाने लगे हैं।
देश के किस विकास की बात कर रहे हो दोस्तों
नफरत, ईर्ष्या, लालच और हवस की आग के आगे
जाने कितने बेकसूर मासूम मारे जाने लगे हैं।
“काफी दिनों से बहुत परेशान हूँ मैं
ये सोचकर कि किस तरक्की की तरफ हम जाने लगे हैं।
यह कैसा मुल्क बना गया हमारा,
अधंविश्वास की आंखों में पट्टी बांधकर कुएं में सब छंलाग लगाने लगे हैं।”
कहते हैं जो.. हम देश बचाने लगे हैं,
ये वही हैं जो अपने फायदे के लिए दंगे भड़काने लगे हैं।
और वो मूर्ख देखो,जो तिनके-तिनके से जोड़े अपने घर को
खुद ही आग लगाने में लगे हैं…✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻मीना कौंडल