रोहडू : पब्बर घाटी…

पब्बर घाटी हाटकोटी से प्रारम्भ होती है

शिमला जिले के रोहडू (पब्बर, स्पैल, रणसर, नवार, मण्डलगढ रोहाल आदि) या पब्बर घाटी में वह क्षेत्र आता है जो कि चांशल की हिम श्रृंखला से निकलने वाली पब्बर नदी तथा उसकी सहायक नदियों की धाराओं के मध्य में स्थित है। यह घाटी हाटकोटी से प्रारम्भ होती है जो कि अपने प्राचीन मन्दिरों के कारण प्रसिद्ध है और चांशल की तलहटी में स्थित टिकरी तक फैली है। ऊँचाई से देखने पर यह एक बेडौल प्याले-सी दिखती है जिसका पैंदा छोटा-सा है और जिसमें पब्बर नदी खमोशी से बहती है और दक्षिण-पूर्वी किनारे की तंग-सी दरार से बाहर निकल जाती है। इस प्याले के किनारों का निर्माण  हिमालय की महान मध्वर्ती श्रृंखला करती है और इसकी सीमा का निर्माण करती है तथा दो अन्य चौटियां इसकी दक्षिणी पूर्वी सीमा का निर्माण करती हैं। इस घाटी के साथ-साथ अनेक छोटी-छोटी ढलानें और घाटियां हैं जहां खेती होती है। पब्बर और उसकी सहायक अन्धरा खंड, पजौर और शिकरी नालों के अतिरिक्त जो भी जलधाराएं इन घाटियों से बहती हैं वे अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं क्योंकि उनमें अधिक जल नहीं रहता।

सतलुज घाटी की अपेक्षा यहां की पर्वतीय ढलानें कम तीखी हैं परन्तु कुल्लू घाटी की अपेक्षा अधिक तीखी हैं। कुल्लू की घाटी अधिक खुली है और वहां नदियों को नियन्त्रित करना सरल है। जहां पर पर्वतीय क्षेत्र पेड़ रहित नहीं हो गए हैं और पेड़ लगाने की सुविधा मौजूद है, वहां पेड़ 1500 से 2000 मीटर ऊँचाई पर भी लगाए गए हैं। कम ऊँचाई पर नीली चीड़ तथा अधिक ऊँचाई पर स्प्रूस और सिल्वर फ़र के पेड़ लगे हैं।

घाटी में सेबों से लदे पेड़ यहाँ के मनमोहक दृश्य को और भी लुभावना कर देते हैं

इस घाटी में गेहूँ, जौ, दालें, चावल, मक्की, आलू तथा बाजरे की खेती होती है। 1938-39 में पंजाब के ब्रिटिश वन संरक्षक श्री ग्लोवर ने पब्बर तथा अन्ध्रा नाले में ट्राऊट मछली गशवानी गांव के निकट पालनी प्रारम्भ की थी। अब इस क्षेत्र में सेब की खेती बड़े पैमाने पर ट्रेने लगी है। घाटी में सेबों से लदे पेड़ यहाँ के मनमोहक दृश्य को और भी लुभावना कर देते हैं।शिमला की घाटियों में कोटखाई, मन्दो, मल्याणा, बड़ाग्रां, रामपुर, कोटगढ, सोनी, धामी आदि भी आती हैं।

घाटी के लोग सादा जीवन व्यतीत करते हैं

घाटी के लोग सादा जीवन व्यतीत करते हैं। कम आवश्यकताओं और कम चिन्ताओं के कारण वे सन्तोषमय जीवन बिताते हैं। वे जीने की इच्छा से भरपूर, मिलनसार और नाच-गाने के शौकीन हैं। इनके गीतों की लय सरल एवं संभ्रान्त लोगों को भी मोहित करने वाली होती है। खेतों में काम करती, घास काटती औरतों को गाते हुए सुनना एक सुखद अनुभव है। शिमला से 120 किमी दूर स्थित पब्बर घाटी ट्रैकिंग, कैम्पिंग, मछली पकड़ने और साहसिक खेलों के लिए बेहतरीन है।

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