"मंडी की अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि" धार्मिक, संस्कृतिक व पुरातात्विक का प्रतीक

“मण्डी की अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि” धार्मिक, सांस्कृतिक व पुरातात्विक का प्रतीक

पूरे देश में शिवरात्रि का त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। लेकिन हिमाचल जिसे देवभूमि के नाम से जाना जाता है यहां के हर त्यौहार की भी अपनी एक खास विशेषता है और अपनी महत्ता है। इसलिए हिमाचल में चाहे कोई भी त्यौहार हो या फिर मेले, हर उत्सव की अपनी ही धूम होती है। वैसे ही शिवरात्रि का त्यौहार हिमाचल में बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है। खासकर हिमाचल की अंतरराष्ट्रीय मण्डी उत्सव की तो बात ही निराली है।

उत्तर-पश्चिमी भारत में भगवान शिव की पौराणिक गाथाएं गहरी जड़े जमाए हुए हैं। इसलिए मंदिरों में भी शिव पूजन को बहुत महत्व दिया जाता है। अनेक स्थानीय देवता और उपदेवता, शिव के नाम पर ही पूजे जाते हैं जिससे स्थानीय लोगों पर शिव के पौराणिक स्वरूप के प्रभाव का पता चलता है। ग्रामीणलोगों के लिए यह सबसे बड़ा त्यौहार होता है इसलिए सब खुलकर खर्च करते हैं। यह त्यौहार लोग अपने-अपने घरों पर मनाते हैं। यूं तो पूरा वर्ष इस त्यौहार के लिए लोग बचत करते हैं परंतु त्यौहार से एक मास पूर्व वास्ताविक तैयारी प्रारंभ होती है।

यह त्यौहार फरवरी और मार्च के महीने में मनाया जाता है। कुछ लोग इस दिन निर्जला व्रत रखते हैं। सारा दिन घी या तेल में भोजन पकाया जाता है। बच्चे खेतों में जाकर जौ के कोमल पौधे, बेलपत्ती और जंगली फलों के वृक्षों की कोमल टलनियां तोडक़र लाते हैं। इन पत्तों से एक हार बनाया जाता है। इस हार को चन्दवा कहा जाता है और इसे एक रस्सी से छत से बांध दिया जाता है। इसके नीचे के फर्श को गाय के गोबर से लीपा जाता है और उस पर चौकोर आकार में आटे और हल्दी का एक पूजा-स्थल बनाया जाता है। इसे मण्डप या

इस दिन घर में तैयार पकवान को घर का कोई सदस्य बांस के तिकोने पात्र, जिसे किल्टा कहा जाता है, में रखकर अपने संबंधियों और विवाहित लडक़ी के ससुराल देने जाता है।

  • इस दिन घर में तैयार पकवान को घर का कोई सदस्य बांस के तिकोने पात्र, जिसे किल्टा कहा जाता है, में रखकर अपने संबंधियों और विवाहित लडक़ी के ससुराल देने जाता है।

चौक कहा जाता है। शिव-पार्वती की गाय के गोबर से तैयार मूर्तियां इस चौक में रखी जाती हैं। लोग इन मूर्तियों की पूजा करते हें और घर पर बने पकवानों का आनंद लेते हैं। इसके पश्चात वे मण्डप के चारों और बैठकर शिव ओर पार्वती की प्रशंसा के गीत गाते हैं। प्रात: चार बजे के आस-पास घर के बुजुर्ग इन मूर्तियों को वहां से उठाकर धान के खेतों में ले जाते हैं। वहां पर ये मूर्तियां अत्यधिक सम्मान के साथ, खेत के मध्य में स्थापित कर दी जाती हैं। चन्दवा भी छत से उतारकर, छत के बाहरी किनारे से लटका दिया जाता है। घर में तैयार पकवान को घर का कोई सदस्य बांस के तिकोने पात्र, जिसे किल्टा कहा जाता है, में रखकर अपने संबंधियों और विवाहित लडक़ी के ससुराल देने जाता है। इस काम के लिए उसे कई बार तीस किलोमीटर तक चलना पड़ जाता है। बचे हुए पकवान परिवार के लोग कई दिनों तक खाते रहते हैं अधिकतर लोग इस दिन व्रत रखते हैं और भोजन में अन्न नहीं खाते। शिवरात्रि के दिन बच्चों की भूमिका भी महत्वपूर्ण रहती है। बच्चे इस दिन छोटे-छोटे समूहों में जंगल में जाते हैं और कारागोरा और पाजा नामक झाडिय़ों की कोमल टहनियां इकट्ठी करके लाते हैं और घर-घर दरवाजे पर लगाते हैं। इन टहनियों को लगाने के पीछे यह विश्वास है कि इनसे भूत-प्रेतों और बुरी आत्माओं से मुक्ति मिलती है। टहनियां लगाते समय बच्चे यह मंत्र दुहराते जाते हैं, हमने दरवाजे पर पाजे और बेल की पत्तियां लगाकर घर को पवित्र व सुरक्षित कर दिया है। हे दानव, तुम यहां से भाग जाओ और पहाड़ों की चोटियों पर चले जाओ। कुछ स्थान पर इस दिन मांस अवश्य पकाया जाता है।

 कर्मकाण्ड सबन्धी देव परम्परा के संरक्षण व धार्मिक अनुष्ठानों में मण्डी नगर का विशेष ऐतिहासिक, धार्मिक, संस्कृतिक तथा पुरातात्विक महत्व

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विश्व के सांस्कृतिक इतिहास में हिमालय क्षेत्र का महत्वपूर्ण स्थान है। इस क्षेत्र की सांस्कृतिक, धार्मिक व सामाजिक गतिविधियां, पर्व, त्यौहार, मेले तथा लोकजीवन हिमालयाधिपति शिव की भक्ति से परिपूर्ण है। यहां शैव परम्परा का निर्वाह लोकजीवन का अभिन्न अंग है। इस परम्परा में वर्ष भर अनेक मेले, पर्व त्यौहार तथा धार्मिक अनुष्ठान अत्यंत श्रद्धा के साथ मनाए जाते हैं। कर्मकाण्ड सबन्धी देव परम्परा के संरक्षण व धार्मिक अनुष्ठानों में मण्डी नगर का विशेष ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक तथा पुरातात्विक महत्व रहा है जिससे यह नगर ‘छोटी काशी’ के नाम से विख्यात है। हिमाचल प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में जहां शिवरात्री अत्यन्त श्रद्धा से मनाया जाता है वहीं मण्डी के मेले को अन्तर्राष्ट्रीय मेले के रूप में मनाया जाता है।

मण्डी की राजधानी सन 1526 ई. तक पुरानी मण्डी में ही थी और आज जिस स्थान पर घनी आबादी है उस स्थान पर घनघोर जंगल..जारी

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