हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में 2019-2023 के बीच शिक्षकों की भर्ती संदेह के घेरे में : SFI

शिमला: SFI ने प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से कहा कि प्रदेश विश्वविद्यालय में शिक्षकों की नियुक्तियों का अधिकार कार्यकारी परिषद (ईसी) के पास है। ईसी ने ये अधिकार कुलपति को दिए थे। हालांकि, ईसी ऐसे अधिकार कुलाधिपति को नहीं दे सकता। अगर ईसी ऐसा करता है तो इसे एचपीयू के एक्ट 12 सी 7 के खिलाफ माना जाएगा। इन भर्तियों को लेकर हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर की गई हैं। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि ईसी ने अपनी बैठक में प्रस्ताव पारित कर कुलपति को ऐसे अधिकार दिए हैं। हाईकोर्ट ने इसे अवैध करार देते हुए गणित विभाग के दो एसोसिएट प्रोफेसर और एक ईडब्ल्यूएस की नियुक्ति भी रद्द कर दी थी। हाईकोर्ट ने कहा था कि शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में तय मानकों की अनदेखी की गई है। याचिकाओं में आरटीआई के जरिए जुटाई गई जानकारी में पाया गया कि कुलपति ने शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में चहेतों का इस्तेमाल किया। लाभ देने के लिए यूजीसी मानकों की अनदेखी की गई है। शिक्षक भर्ती के संबंध में एग्जीक्यूटिव काउंसलिंग ही निर्णय लेती है।

SFI ने कहा कि पूर्व कुलपति डॉ. सिकंदर कुमार और एसपी बंसल पर आरोप हैं कि उन्होंने पद पर रहते हुए अपने अधिकारों का दुरुपयोग किया। पीएचडी नियमित मोड में की हो। पीएचडी का मूल्यांकन बाहरी परीक्षक से कराया हो। हाईकोर्ट ने दो एसोसिएट प्रोफेसर और एक ईडब्ल्यूएस की नियुक्ति रद्द की। कोर्ट में दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि जिन लोगों को नियुक्ति दी गई है, उनमें से अधिकांश इन शर्तों को पूरा नहीं करते हैं। कोर्ट में ईडब्ल्यूएस और ओबीसी प्रमाण पत्रों पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन ने अवैध रूप से अयोग्य व्यक्तियों को शिक्षक नियुक्त कर योग्य उम्मीदवारों के साथ खिलवाड़ किया है। अयोग्य शिक्षकों की भर्ती ने लाखों छात्रों के जीवन को अंधकार में डाल दिया है। विश्वविद्यालय शोध और नए विचारों के आदान-प्रदान के लिए जाना जाता है। ऐसे में अगर शिक्षक चयन प्रक्रिया सवालों के घेरे में है तो यह आने वाले समय के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं। सरकार को इसकी जांच करनी चाहिए।

लगभग 250 शिक्षकों और 400 गैर शिक्षक की गलत तरीके से नियुक्ति की गई है। ये सभी एचपीयू में विभिन्न पदों पर कार्यरत हैं। याचिकाओं में आरोप लगाया गया था कि चयन प्रक्रिया में फर्जी शोध पत्रों के आधार पर नियुक्तियां की गईं। इसलिए SFI मांग कर रही है कि जल्द से जल्द इस भर्ती पर माननीय उच्च न्यायालय शिमला के मुख्य न्यायधीशों का आयोग बनाया जाए जो इसकी जांच कर सके।

भर्ती में भ्रष्टाचार और प्रक्रियाओं के उल्लंघन का पैमाना इतना बड़ा है कि यह केवल कुछ शिक्षकों की भर्ती का मामला नहीं है, बल्कि यह एक व्यापक धोखाधड़ी है जिसका नेतृत्व सत्ताधारी लोगों ने किया है और इसमें काफी मात्रा में रिश्वतखोरी शामिल है। इसलिए इस मामले की पूरी तरह से जांच करने के लिए एक आयोग की आवश्यकता है, जो न केवल हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय और उसके अधिकारियों के अवैधताओं की जांच करे बल्कि उन संस्थानों व लोगों की भी जांच करे जिन्होंने अनुभव प्रमाणपत्र धोखाधड़ी से और नियमों के विरूद्ध प्रदान किए हैं।

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