तबाह होती हमारी वन सम्पदा; विकास नहीं विनाश की तरफ जा रहे हैं हम…
तबाह होती हमारी वन सम्पदा; विकास नहीं विनाश की तरफ जा रहे हैं हम…
लोग कम से कम धार्मिक दृष्टि से तो वृक्षों के महत्व को समझें…
वन जितने घने होंगे, उतने ही वर्षा के लिए भी लाभकारी होंगे
नगरीय विकास हो अथवा जल-विद्युत परियोजनाओं का कार्यान्वयन, गाज गिरती है तो वह जंगलों पर
पहाड़ी क्षेत्रों में हिमाचल और उतराखंड जैसे स्थानों में हमारी वन संपदा हर वर्ष आग की भेंट चढ़ रही है। यह बहुत ही चिंता का विषय है। कागज पर योजनाएं बनती हैं टेबल पर मंत्रियों से लेकर अधिकारियों की इस मुद्दे पर चर्चाएँ भी बहुत होती हैं लेकिन धरातल में क्या होता है हर वर्ष स्वाह होते जंगल उदाहरण हैं। करोड़ों की वन संपदा, जड़ी बूटियां, हरे-भरे पेड़-पौधे, मासूम जानवर, पक्षी और दूषित होता हमारा पर्यावरण…हम विकास की नहीं विनाश की तरफ जा रहे हैं, लेकिन जानकर भी अनजान बने हुए हैं। दुखद और अति दुखद विषय है इस पर काम करने की जरूरत है अनदेखी की नहीं। विकास के नाम पर पहाड़ खोखले किये जा रहे हैं अंधाधुंध पेड़ काटे जा रहे हैं बरसातों में परिणाम भी भुगतने पड़ रहे हैं लेकिन सबक कोई नहीं लेता और चर्चाएँ और नुक्स आरोप प्रत्योरोपों की राजनीति तक सब सीमित रह जाता है। लोग भी नहीं सुधरते, संबंधित अधिकारी भी सजग नहीं होते, नेताओं को राजनीति गतिविधियों से फुर्सत नहीं मिलती। फिर हम-आप जैसे लोग किस किस से कब तक उलझे….
हम प्रतिवर्ष वन महोत्सव मनाते हैं। एक रस्म अदा करते हैं यह दिखाने के लिए कि हम वनों के पालक हैं, उनको बढ़ाने के ठेकेदार हैं। यह सब ढोंग है क्योंकि चाहे नगरीय विकास हो अथवा कृषि विकास, जलागारों का निर्माण हो अथवा जल-विद्युत परियोजनाओं का कार्यान्वयन, गाज गिरती है तो वह जंगलों पर ही गिरती है।
लोग कम से कम धार्मिक दृष्टि से तो वृक्षों के महत्व को समझें…
वन लगाना पुण्य काम है। पुराने जमाने में कई पेड़ों, पौधों तथा लताओं को काटना, विनष्ट करना अथवा बरबाद करना पाप समझा जाता था। कुछ पौधों को लगाने से यज्ञ करने का फल मिलता है-ऐसा उल्लेख हमारे धर्म ग्रंथों में मिलता है। बरगद, पीपल, पिलखन वृक्षों का विशेप महत्त्व बताया गया है और यह कहा गया है कि जो व्यक्ति इन वृक्षों को लगाता है, उसे यज्ञ करने, नगर भोज करने तथा अनेक गायों के दान करने का फल मिलता है। प्राचीन मान्यताओं को आज के वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जब हम देखते हैं, तो साफ पता चलता है कि प्राचीन ऋषि मुनि यही चाहते थे कि ऐसे व्यक्ति जो वृक्षों के महत्व को नहीं जानते वे कम से कम धार्मिक दृष्टि से तो उनके महत्व को समझें, उनको लगायें, उनकी रक्षा करें तथा उनका उपयोग अपने किसी निजी काम के लिए न करें। गांवों में पीपल, वट की लकड़ी का ईंधन के रूप में उपयोग करना वर्जित माना गया है। यदि कोई उसका उपयोग करता है, तो पाप का भागी होता है। इन दोनों वृक्षों की लकड़ी का उपयोग हवन तथा यज्ञ कार्य के लिए ही किया जा सकता है।
वट, पीपल, पिलखन दीर्घजीवी वृक्ष
पीपल पेड़ के सर्वांग में कोई-न-कोई देवता निवास करता है, धरती पर पीपल एकमात्र पेड़, जो रात में आक्सीजन छोड़ता है
वट, पीपल, पिलखन दीर्घजीवी वृक्ष माने जाते हैं। वट की जटाएं जिन्हें दाढ़ी कहा जाता है, वे जमीन में आकर घुस जाती हैं और पूरे वृक्ष को चारों ओर से खम्भों की तरह रोकने का काम तो करती ही हैं, इसके अलावा वे वृक्ष को आवश्यक खुराक पहुंचाती है तथा उसे सदा हरा-भरा रखने में सहायक होती है। पिलखन की जटाएं इतनी ज्यादा बड़ी तो नहीं होतीं, फिर भी यदि उनकी रक्षा की जाए तो जमीन तक पहुंच जाती है और वही काम करती हैं, जो तट के लिए उसकी दाढ़ी (जड़े) करती हैं। इन पेड़ों पर लगने वाले छोटे खटे-मिट्ठे फल आदमी तो प्रायः नहीं खाते, किन्तु पक्षी इन्हें बड़े चाव से खाते हैं और इनको सघन शाखाओं और पत्तियों में बैठकर विश्राम करते, घोंसले बनाते एवं प्रजनन कार्य करते हैं। पीपल पेड़ के बारे में तो कहा जाता है कि इसके सर्वांग में कोई-न-कोई देवता निवास करता है। धरती पर शायद एकमात्र यही पेड़ है, जो रात में आक्सीजन छोड़ता है। इस वृक्ष का तांत्रिक उपयोग किया जाता है। उक्त तीनों पेड़ वानिकी की दृष्टि से अंजीर जाति के पेड़ हैं, इनमें गूलर को भी शामिल करना उपयुक्त होगा, जिसके कच्चे फलों की सब्जी जायकेदार बनती है तथा पकने पर इसे मनुष्य, पशु, पक्षी बड़े चाव से खाते हैं।
वन जितने घने होंगे, उतने ही वर्षा के लिए भी लाभकारी होंगे
वन जितने घने होंगे, उतने ही वर्षा के लिए भी लाभकारी होंगे
वनों में नाना प्रकार के अन्य पेड़-पौधे, जड़ी-बूटियां, जीव-जन्तु आदि पाए जाते हैं। वन जितने घने होंगे, उतने ही लाभकारी भी होंगे। सघन वनों को आर्द्रता वातावरण में शीतलता रखती है। यदि वन ज्यादा होंगे, तो वर्षा भी ज्यादा होगी। वनों का आधिक्य एक सीमा तक बाढ़ तथा भूमि के कटाव को भी रोकता है। पहाड़ियों की मिट्टी बरसात में कटकर जलाशयों नदियों में भर जाती है, जिसकी वजह से नदियां जलाशय उथले हो जाते हैं। उथली नदियों और जलाशयों के होने से बाढ़ आने का खतरा ज्यादा बढ़ जाता है। पहाड़ियों पर जंगल लगवाने होंगे जिससे जंगल सघन हो सके और भूमि कटाव रोकने में भी मदद मिले।
वनों में पशु-पक्षी, जीव-जन्तु निर्भय होकर विहार करते हैं, ये सभी पर्यावरण को साफ-सुथरा रखने में हमारे मददगार
वनों में पशु-पक्षी, हिंसक और अहिंसक जीव-जन्तु निर्भय होकर विहार करते हैं। ये सभी पर्यावरण को साफ-सुथरा रखने में हमारे मददगार हैं। हमें न तो इनके मारने का हक है और न इन्हें सताने का। फिर भी हमारी अदूरदर्शिता के कारण सबसे बड़े प्राणी, हाथी, गैंडे को हम लोगों ने बहुत नुकसान पहुंचाया है। पशु-पक्षियों को अनेक जातियां और प्रजातियां लुप्त हो गई हैं और यदि हमारी यही मनोवृत्ति रही तो जो शेष हैं, वे भी धीरे-धीरे समाप्त हो जाएंगी। अतः हमारा कर्तव्य है कि हम सभी वन्य प्राणियों को जंगलों में उसी प्रकार स्वच्छन्द विचरण करने का अवसर दें, जिस प्रकार का अवसर हम सभी चाहते हैं। इससे वन की शोभा बढ़ेगी, वे पर्यावरण और वातावरण दोनों को साफ-सुथरा रखने में हमारे सहयोगी बने रहेंगे।
लोग बिना सोचे-विचारे अंधाधुंध वनों के विनाश में लगे हुए हैं
अधिक से अधिक पेड़ लगाएं, ताकि वातावरण, पर्यावरण साफ-सुथरा बना रहे
जंगलों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए, क्योंकि वे हमें बहुत कुछ देते हैं। जंगलों में कई प्रकार के फल-फूल, जंगली सब्जियां, जड़ी बूटियां इत्यादि पाई जाते हैं। वंशलोचन, लाख, गंधक, विरोजा, गोंद, रबर, रेशम, जड़ी-बूटियां भी मिलती हैं। इसके अतिरिक्त वनों की इमारती सूखी लकड़ी एवं सघन वनों में उगे पुराने अवांछित पेड़ों को काटकर उनका विविध प्रकार से होने वाला उपयोग भी ऐसा उपहार है जो वन हमें सहर्ष देते हैं। इन सब गुणों के बावजूद हम वनों के बैरी बन गए हैं और बिना किसी बात को सोचे-विचारे अंधाधुंध वनों के विनाश में लगे हुए हैं। इस मनोवृत्ति को रोकना चाहिए, ताकि देश में वर्षा ज्यादा हो, वातावरण, पर्यावरण साफ-सुथरा बना रहे और वनों से होने वाली उस आय में भी वृद्धि हो जो हमें वन उपहार के रूप में स्वतः देते हैं।
वनसम्पदा घटना चिन्ताजनक
भारत में वनसम्पदा घटी है और चिन्ताजनक रूप से इसके घटने की वजह से सरकार को सावधान होना होगा। इसमें चिन्ताजनक बात यह भी है कि वनों का घनत्व (सघन वनों का होना) भी कम होता जा रहा है, वनों पर केन्द्र तथा राज्य सरकारों का नियंत्रण होने पर भी अनेक गैरकानूनी कार्य होते।आए दिन खबरें छपती हैं कि बाघों, तेंदुओं, चीतों की खालें मिली हैं, जिनकी कीमत करोड़ों रुपये है। वन्य जीवों की हड्डियाँ मिली हैं जो लाखों रुपए की है। लेकिन यह सब होता क्यों है, कैसे हैं वे लोग जो चन्द रुपयों के लोभ में उन्हें मरवा डालते हैं? ऐसे भ्रप्ट लोगों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
अधिक भू-भाग में वृक्षारोपण का कार्य किया जाना चाहिए
जंगल बने रहेंगेतो हम बचे रहेंगे, पर्यावरण शुद्ध होगा
बस्तियां बसानी हैं तो ऊसर-बंजर पड़ी जमीनों पर बसाइए। दलदली जमीन को पाटिए। कुछ ऐसा कीजिए कि जंगल बने रहें। अगर जंगल बने रहेंगे, तो हम बचे रहेंगे। पर्यावरण शुद्ध होगा, बरसात होगी, अन्न पैदा होगा। इसलिए वन विकास के लिए सोचना पड़ेगा। मात्र योजनाएं बनाने से कुछ नहीं होगा। सोच-विचार कर ऐसे काम करने होंगे, ताकि वन बढ़े, उनकी हरियाली बढ़े, वहां रहने वाले जीव-जन्तु बढ़े और वहां के पेड़-पौधे फले-फूलें। जहां वन उजाड़े गए हैं, वहां वन लगाए जाने चाहिए। यदि ऐसा संभव न हो, तो अन्यत्र उससे भी अधिक भू-भाग में वृक्षारोपण का कार्य किया जाना चाहिए।
हमें सदा वनों के विकास की बात ही सोचनी चाहिए, जिससे उनकी वृद्धि होती रहे और वे निरंतर फलते-फूलते रहें
वन हमारी अचल एवं प्रकृति प्रदत्त-सम्पदा हैं। इनको सुरक्षित रखने से हमारी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी, कृषि की पैदावार बढ़ेगी, वातावरण और पर्यावरण शुद्ध होगा। वन-सम्पदा एक न्यास है, हम उसके न्यासी हैं। हमें सदा वनों के विकास की बात ही सोचनी चाहिए और वही करना चाहिए जिससे उनकी वृद्धि होती रहे और वे निरंतर फलते-फूलते रहें।