हिमाचल देश का एकमात्र प्रदेश जहां पर विभिन्न किस्म के “बीज आलू” की होती है पैदावार
हिमाचल देश का एकमात्र प्रदेश जहां पर विभिन्न किस्म के “बीज आलू” की होती है पैदावार
बीज आलू का घर हिमाचल, प्रदेश की अर्थ-व्यवस्था में आलू की फसल का महत्वपूर्ण स्थान
हिमाचल को कहा जाता है आलू बीजों का घर
हिमाचल प्रदेश में आर्थिक समृद्धि का आधार कृषि, बागवानी है। प्रदेश की अर्थ-व्यवस्था में आलू की फसल का महत्वपूर्ण स्थान है। हिमाचल प्रदेश में आलू एक नकदी फ़सल के रूप में उगाई जाती है। आलू उत्पादन में इसके बीज का खास महत्व है। कहा जाता है कि यदि आलू का बीज उत्तम गुणवत्तायुक्त हो तो फ़सल उत्पादन की आधी समस्या दूर हो जाती है।
हिमाचल के 7 हजार फीट से ज़्यादा ऊंचाई वाले क्षेत्र बीज आलू के लिए उपयुक्त
हिमाचल के 7 हजार फीट से ज़्यादा ऊंचाई वाले क्षेत्र बीज आलू के लिए उपयुक्त हैं। आलू की फसल की पैदावार प्रदेश में सबसे पहली बार द्वितीय विश्व युद्ध के कारण बर्मा और दूसरे देशों से जब आलू बीज नहीं आ पा रहा था तो चौथे दशक में शिमला के आसपास के क्षेत्रों में इसकी खेती की जाने लगी। हिमाचल प्रदेश में नगदी फसल आलू को विकसित करने के लिए सन् 1956 ई. को केन्द्रीय आलू अनुसंधान संस्थान पटना से बदल कर शिमला के बेमलोई में स्थापित किया गया। आलू की उन्नत किस्मों की प्रयोगिक पैदावार कुफरी में की जाती है।
शिमला और लाहौल-स्पीति जिलों में उगाया जाता है अति उत्तम किस्म के बीज का आलू
इस क्षेत्र की जलवायु आलू उत्पादन के अनुकूल थी अत: बीमारी रहित उच्च स्तर का बीज-आलू यहां बड़ी मात्रा में पैदा किया जाने लगा। इसकी अच्छी पैदावार और मांग को देखते हुए किसानों ने आलू का उत्पादन नकदी फसल के रूप में शुरू किया। इस फसल के उत्पादन के सुधार में दिन-प्रतिदिन अधिक ध्यान दिया जाने लगा। उच्च स्तरीय बीज आलू पैदा किया जाता है। अपनी शुद्धता, स्तर, बीमारी रहित गुणवत्ता के कारण इसने पूरे भारत में अच्छा बाजार बना दिया है। यह कृषकों को भी लाभकारी सिद्ध हुआ है। इस समय शिमला और लाहौल-स्पीति जिलों में अतिउत्तम किस्म के बीज का आलू पैदा किया जाता है जिसकी देश के मैदानी भागों में सराहनीय कीमत है। आज भी हिमाचल प्रदेश, देश के कई पर्वतीय राज्यों जैसे जम्मू कश्मीर, उतराखण्ड तथा उत्तरपूर्वी राज्यों को बीज आलू की आपूर्ति करता है। लेकिन प्रदेश में आलू की उपज देश के अन्य राज्यो के मुक़ाबले काफी कम है। किसानों को स्वस्थ बीज आलू उपलब्ध न होना एवं कीटनाशकों का प्रयोग उचित मात्रा व समय पर न करना कम उपज के मुख्य कारण है।
पूरे देश में बीज आलू की पैदावार के लिए हिमाचल की अलग पहचान
हिमाचल प्रदेश में सन् 2010-11 को आलू की कुल पैदावार 2,05,970 मीट्रिक टन हुई। शिमला में सर्वाधिक 78,240 मीट्रिक टन, कांगड़ा जिले 47,700 मीट्रिक टन, मण्डी में 21,500 मीट्रिक टन आलू की पैदावार हुई। कुफरी जीवन और कुफरी ज्योति आलू की उन्नत किस्में हैं। आलू की फसल आमतौर पर खरीफ फसल है परन्तु जहां कहीं सिंचाई की सुविधा है वहां इसे सर्दियों में भी पैदा किया जाता है। पूरे देश में आलू और बीज-आलू की पैदावार के लिए हिमाचल की देश में अलग पहचान है। देश के आधे से अधिक आलू का उत्पादन इसी प्रदेश में होता है। यह केवल बीज आलू के उत्पादन के कारण है। केवल हिमाचल प्रदेश ही ऐसा राज्य है जो बीज आलू की विभिन्न किस्में बड़े पैमाने पर पैदा करता है इसलिए इसे बीज आलू का घर कहा जाता है।
हिमाचल के ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों में अप्रैल में की जाती है आलू की बीजाई
आलू की बीजाई हिमाचल के ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों में अप्रैल के महीने में की जाती है जिससे फसल अंतिम अगस्त तक तैयार हो सके। बुआई के समय को इस प्रकार चुनें ताकि वायरस फैलाने वाले मांहू कीट से बचा जा सके। बीजाई से 10 दिन पहले आलू कन्दों को हल्के प्रकाश वाले छायादार स्थान पर फैला दें ताकि उसमें अंकुरण हो सके। पहाड़ी क्षेत्रों में आलू की फसल वर्षा पर निर्भर होती है। जहां भी पानी उपलब्ध हो बीजाई से पहले एक सिंचाई पौधों के समान बढ़वार के लिए ज़रूरी होता है। मिट्टी की नमी देखते हुए 8-10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करते रहें। खेत में पानी इतना दे जिससे मेंड़ों का दो तिहाई भाग डूब जाए। खुदाई से 10-12 दिन पहले सिंचाई बंद कर दें।
हिमाचल का आलू बीमारी रहित, गुणवत्ता के लिए प्रसिद्ध
आलू चम्बा, कुल्लू, लाहौल, शिमला, मण्डी और सिरमौर के ऊंचे स्थानों में पैदा किया जाता है। राज्य के ग्रामीण लोगों की अर्थ-व्यवस्था बीज आलू पर काफी निर्भर करती है। आलू निर्यात भी होता है। हिमाचल का बीज आलू पूरे देश के बीज की 20 प्रतिशत से अधिक जरूरत पूरी करता है। यहां का आलू बीमारी रहित, गुणवत्ता के लिए प्रसिद्ध है। प्रदेश के आलू का बीज मुख्यत: महाराष्ट्र, गुजरात, मैसूर, मध्य प्रदेश और उड़ीसा आदि राज्यों को निर्यात किया जाता है।
आलूओं की प्रमुख किस्में
जिला शिमला बीज आलू उत्पादन में प्रदेश में प्रथम स्थान पर है। शिमला और लाहौल के किसान आलू की खेती से समृद्ध हुए हैं। हमेशा किसी विश्वसनीय स्त्रोत से प्राप्त बीज का ही प्रयोग करें। इसके लिए बेहतर है कि सरकारी बीज उत्पादन एजेंसी, राष्ट्रीय बीज निगम, राज्य फार्म निगमों से खरीदे गए बीज आलू का ही इस्तेमाल करें और हर 3 साल बाद प्रमाणित बीज बदल दें। अप-टू-डेट तथा क्रेग डिफायंस कुछ भागों में उगाई जाती है। कुफरी चंद्रमुखी, कुफरी जीवन, कुफरी ज्योति और कुफरी अलंकार, कुफरी हिमसोना, कुफरी चिपसोना, कुफरी पुष्कर, कुफरी गिरिराज़, कुफरी हिमालिनी, कुफरी शैलजा, कुफरी गिरधारी व कुफरी अरूण अधिक प्रचलित हैं।
हिमाचल देश का यह एकमात्र प्रदेश जहां पर विभिन्न प्रकार के बीज आलू पैदा किए जाते हैं
आलूओं और बीज आलूओं के उत्पादन की दृष्टि से हिमाचल का स्थान दसवां है। 1910-11 में यहां 205.97 सौ टन आलू पैदा हुआ तो 2012-13 में 185 सौ टन आलू पैदा हुआ। देश का यह एकमात्र प्रदेश है जहां पर विभिन्न प्रकार के बीज के आलू पैदा किए जाते हैं, और हिमाचल को आलू बीजों का घर कहा जाता है। देश के बीज आलूओं की 20 प्रतिशत आवश्यकता प्रदेश के उत्पादन से पूरी होती है।
बर्फ गिरने से पहले अक्तूबर-नवम्बर में तैयार कर लें खेत
बीज आलू हेतु ऐसे खेत का चयन करना चाहिए जिसमें पिछले वर्ष आलू न लगाए हों। बालुई दोमट मिट्टी जिसका पी. एच. 6-7 के बीच हो, बीज आलू के लिए उपयुक्त होती है। पहाड़ी क्षेत्रों में खेत ढलानदार होते हैं। अतः खेतों की जुताई ढलान के विपरीत दिशा में करनी चाहिए। ऐसे क्षेत्रों में बर्फ गिरने से पहले अक्तूबर-नवम्बर में खेत तैयार कर लें। खेत को 20-25 सेंटीमीटर गहरी जुताई कर इसे खाली छोड़ देते हैं ताकि यह पर्याप्त मात्रा में पानी सोख ले। गोबर की खाद फरवरी-मार्च में डाली जाती है।
अच्छी पैदावार के लिए लंबी हरी अंकुरण वाली स्वस्थ एवं साबुत बीज करें इस्तेमाल
लगभग 35-50 ग्राम वजन की एवं 1-2 सेंटीमीटर लंबी हरी अंकुरण वाली स्वस्थ एवं साबुत बीज का ही इस्तेमाल करें। अंकुरित कन्दों में से पतले पीले एवं रोगी कन्दों को बाहर निकाल दें। मेंड़ों पर 5-7 सेंटीमीटर गहरा गड्ढा खोद कर उसमें बीज आलू रख दें तथा मिट्टी से ढक दें। क्यारियों के बीच की दूरी 60 सेंटीमीटर एवं कन्दों के बीच की दूरी 20 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। साधारणतया आलू का बीज दर 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है। प्रदेश में लगभग 70,000 हजार हैक्टेयर भूमि पर आलू उगाए जाते हैं। खेत तैयार करते समय अच्छी तरह से सड़ी गली गोबर की खाद 15-30 टन/ हेक्टेयर की दर से नालियों में डाले। 30 टन/ हे. खाद प्रयोग करने से आवश्यक फास्फोरस और पोटाश की मात्रा की भरपाई हो जाती है। यदि 15 टन/ हे. गोबर की खाद डाली गई हो तो आवश्यक फास्फोरस और पोटाश की आधी मात्रा का ही प्रयोग करें।
पहाड़ी क्षेत्रों में पिछेता झुलसा तथा अगेता झुलसा रोग अधिक नुकसानदायक
पहाड़ी क्षेत्रों में पिछेता झुलसा तथा अगेता झुलसा जैसे फफूंद रोग आलू की फ़सल को भारी नुकसान पहुंचाते हैं। इस पर नियंत्रण पाने हेतु मानसून शुरू होने पर मेंकोजेब या प्रोपीनेब 0.2 % (2 ग्राम/लीटर पानी) का छिड़काव करें। आवश्यकता पड़ने पर 10 दिनों के अंतराल पर 2-3 छिड़काव और करें। खेतों में खरपतवार नियंत्रण हेतु शाकनाशी जैसे कि मेट्रीब्यूजीन अथवा सेनकॉर को 1 मिलीलीटर/लीटर पानी में घोलकर बीजाई के 3-4 दिनों के अंदर फसल पर छिड़काव करें। कन्दों की बीजाई के बाद मेंड़ों को चीड़ की पत्तियों या धान के पुआल से ढक दें ताकि मिट्टी की नमी बनी रहे। बीजाई तथा इसके 40-50 दिन के भीतर मिट्टी चढ़ाने एवं निराई- गुड़ाई का काम पूरा कर लें।