अपनाएं स्वस्थ जीवन शैली- पायें ‘निरोगी काया’; इलाज से बेहतर परहेज जरूरी

इस प्रकार करें दैनिकचर्या और ऋतुचर्या का अनुसरण, तो मनुष्य बीमारी से बच सकता है

अगर आप चाहते हैं हमेशा खुश और सुखी रहना तो जरूरी हैं आप अपने आपको स्वस्थ रखें। किसी समझदार व्यक्ति कहा है कि ‘तन्दुरुस्ती हजार-न्यामत’ अर्थात् दुनिया की श्रेष्ठ से श्रेष्ठ वस्तुएं भी अच्छे स्वास्थ्य का मुकाबला नहीं कर सकतीं। योग में भी कहा गया है – ‘शरीर माद्यं खलु धर्मसाधनं’ अर्थात् शरीर धर्मसाधना करने का सर्वप्रथम साधन है। अनेक प्रकार के सुखों में पहला सुख ‘निरोगी काया’ बताया गया है। हमारे देश के स्वास्थ्य संबंधी ग्रंथों में अच्छे स्वास्थ्य का विशेष महत्व बताया गया है।

प्रातः काल जल पीने के फायदे

चरक, सुश्रुत आदि प्राचीन आयुर्वेद विशेषज्ञों ने अच्छा स्वास्थ्य बनाए रखने के कई उपाय बताएं  हैं। एक कहावत में प्रातः कालीन जल पीने की महिमा बताई है-

प्रातकाल खटिया तै उठि कै पिए तुरंतै पानी।

वाके घर में बैद न जाई बात ‘घाघ’ कै जानी।।

घाघ ने लिखा है कि जो व्यक्ति रोज मोटी दातून करता है, हरड़ खाता है तथा गृहस्थी में संयम बरतता है, उसको घर पर वैद्य बुलाने की जरूरत नहीं पड़ती।

इलाज कराने की अपेक्षा रोग की रोकथाम पहले से कर लेना ज्यादा उचित

 Prevention is better than cure, अर्थात् इलाज कराने की अपेक्षा रोग की रोकथाम पहले से कर लेना ज्यादा उचित है। आयुर्वेदिक ग्रन्थों में दिनचर्या एवं ऋतुचर्या पर इसीलिए काफी कुछ कहा गया है, ताकि लोगों का स्वास्थ्य ठीक रह सके। यहां दिनचर्या के विषयक आयुर्वेदिक नियम दिए जा रहे हैं-

सूर्योदय से पहले उठना स्वास्थ्य के लिए लाभकारी

सदा सूर्योदय से पहले उठने से स्वास्थ्य ठीक रहता है और मनुष्य दिन भर ताजगी अनुभव करता है। प्रातः काल उठकर थोड़ा व्यायाम जरूर करना चाहिए। यदि व्यायाम करने में किसी प्रकार की बाधा आती हो, तो आधे से लेकर एक मील तक घूमने जाने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है और ऋतुओं में होने वाले परिवर्तनों से स्वास्थ्य पर अहितकर प्रभाव नहीं पड़ता।

हमें प्रतिदिन साफ-सुथरे धुले हुए वस्त्र पहनने चाहिए। पसीना और धूल-गर्द से भरे कपड़े पहनने से बीमारी होने का खतरा रहता है। रोज स्नान करना भी जरूरी है। बुजुर्ग और बीमार लोग स्नान करने की बजाए मोटे गीले तौलिए से अपना शरीर पोंछ सकते हैं।

ज्यादा खट्टा-मीठा और चटपटा भोजन स्वास्थ्य के लिए अहितकर

खान-पान सादा, ताजा, संतुलित और रुचिकर होना चाहिए। ज्यादा खट्टा-मीठा और चटपटा भोजन स्वास्थ्य के लिए अहितकर हो सकता है। गीता में भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा है कि शुद्ध ताजा सादा भोजन करने से मनुष्य की वृत्तियाँ सात्विक बनती है। भोजन हमेशा समय पर और भूख लगने पर करना चाहिए।

धूप और बरसात में बिना छाते के घूमना भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। गरमी में बिना कुछ खाए-पीए घूमने से लू लग जाने का खतरा होता है।

बेकार बैठने से और सुस्त रहने से बीमारियां जल्दी पकड़ती हैं

मनुष्य को निरंतर कुछ-न-कुछ काम करते रहना चाहिए। बेकार और सुस्त लोगों को बीमारियां जल्दी पकड़ती हैं। काम करने से अभिप्राय यह है कि मनुष्य को अपनी क्षमता-भर मेहनत अवश्य करनी चाहिए। कठोर श्रम करने से स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव भी पड़ सकता है।

शाम को यदि आवश्यक हो तो पुनः स्नान करना चाहिए। सम शीतल जल स्नान करने के लिए अच्छा माना गया है। जिन लोगों को ठंडा पानी अनुकूल नहीं आता, वे गरम पानी का इस्तेमाल कर सकते हैं।

रात में हल्का हल्का भोजन

रात में भोजन 8 बजे तक कर लेना चाहिए। जहां तक हो सके रात में हल्का सुपाच्य भोजन करने से पाचन तंत्र को ज्यादा श्रम नहीं करना पड़ता। रात में भोजन करने के पश्चात् हजार गज तक पैदल जरूर चलना चाहिए। हरी घास, खुली जगह में घूमने से भोजन जल्दी पच जाता है। जिन लोगों को रात में पढ़ने की आदत है, वे नौ से दस बजे के बीच पढ़ने-लिखने का काम कर सकते हैं। किन्तु लेटकर पढ़ना आंखों के लिए अहितकर कहा गया है। रात को सोने से आधा घंटा पहले दूध पीने से शारीरिक शक्ति कम नहीं होती।

सत्तू का सेवन करें स्वस्थ रहें

दिनचर्या की तरह ऋतुचर्या का पालन करना भी जरूरी होता है। हमारे यहां छह ऋतुएं बताई गई हैं। किन्तु मुख्य रूप से जाड़ा, गरमी और बरसात यही तीन ऋतुएं मानी जाती हैं। गरमी की ऋतु में हलका सुपाच्य भोजन, दूध, दही, शिकंजी, मट्ठे का सेवन करने से लू नहीं लगती। कच्ची अमिया भूनकर उन्हें मसलें और साफ ठंडा पानी, जीरा, काला नमक, काली मिर्च और पुदीना मिलाकर शरबत तैयार करें। यह पाचक होता है तथा इससे लू नहीं लगती और यदि लू लग गई हो तो इस जल के सेवन मे रोगी को आराम मिल जाता है। गरमी में सत्तू का सेवन भी अच्छा माना जाता है। गांवों में गरमी भर सत्तू का सेवन लोग करते हैं और स्वस्थ रहते हैं। सत्तू पानी में घोलकर गाढ़े शरबत की तरह पीना चाहिए। सत्तू में नमक, जीरा अथवा बूरा अपनी रुचि के अनुसार मिलाना चाहिए। शीत ऋतु में शक्तिवर्द्धक भोजन करने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है। इस ऋतु में गरम कपड़े पहनने से शीत का प्रकोप असर नहीं करता। ओढ़ने-बिछाने के कपड़ों को धूप में सप्ताह में एक बार जरूर डाल देना चाहिए।

यदि दैनिकचर्या और ऋतुचर्या का अनुसरण करें, तो मनुष्य बीमारी से बच सकता है

वर्षा ऋतु में भारी भोजन कभी नहीं करना चाहिए। नींबू, मिर्च, मूंग की दाल, रोटी खाने से उदर विकार नहीं होते। वर्षा ऋतु में हरे शाक खाना उचित नहीं माना जाता, क्योंकि उसमें हानिकारक कीड़े पाए जाते हैं। यदि हरे शाक खाना हो तो खूब देखकर साफ-सुथरे साग गरम पानी में धोकर बनाना चाहिए। वर्षा ऋतु में ज्यादा भीगने से वायुजनित रोग होने का डर रहता है। इस प्रकार लोग यदि दैनिकचर्या और ऋतुचर्या का अनुसरण करें, तो मनुष्य बीमारी से बच सकता है।

प्रकृति के हम जितना समीप रहेंगे, उतना ही हमारा स्वास्थ्य अच्छा रहेगा।

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