बिना समाज के सहयोग के नशे की प्रवृत्ति पर रोक नहीं लगाई जा सकती – मुख्य सचिव

नशीले पदार्थों पर रोकथाम के लिए सभी हितधारक आपसी समन्वय से करें कार्य: मुख्य सचिव

शिमला: मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना ने आज यहां सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग द्वारा नशामुक्त भारत अभियान के तत्वावधान में आयोजित एक कार्यशाला की अध्यक्षता की। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने मादक पदार्थों, दवाओं इत्यादि की तस्करी के विरूद्ध शून्य सहिष्णुता की नीति अपनाई है। नशीली दवाओं के उत्पादकों और आपूर्तिकर्ताओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई सुनिश्चित की जा रही है। टोल फ्री ड्रग रोकथाम हेल्पलाइन नंबर 1908 आरम्भ किया गया है जिसका मुख्य उद्देश्य आम जनता को नशीली दवाओं के तस्करों के बारे में जानकारी साझा करने के लिए प्रोत्साहित करना है तथा नशा सेवन में संलिप्त युवाओं और उनके माता-पिता को परामर्श प्रदान करना है। नशे की आपूर्ति से जुड़े लोगों के बारे में सूचना देने वालों की पहचान गुप्त रखी जाती है।
उन्होंने कहा कि मादक द्रव्यों का सेवन युवाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है जिससे मानसिक सामाजिक व अन्य समस्याएं बढ़ रही हैं।
मुख्य सचिव ने कहा कि राज्य में मादक पदार्थों के सेवन पर रोक लगाने व नशा निवारण के लिए शिक्षा, जागरूकता, पहचान, परामर्श, उपचार और पुनर्वास, क्षमता निर्माण के लिए मानव संसाधन का विकास और नशे में संलिप्त युवाओं से भेदभाव को कम करने की रणनीति अपनाई गई है। उन्होंने कहा कि इस सम्बंध में सभी हितधारकों को जिम्मेदारियां साझा कर आपसी सहयोग की भावना से काम करना चाहिए।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एवं विशेष न्यायाधीश एनडीपीएस, दिल्ली अरुल वार्मा ने राज्य में नशीली दवाओं के खतरे को रोकने के लिए एक मजबूत और प्रभावी रणनीति पर बल दिया। उन्होंने कहा कि नशे में संलिप्त व्यक्तियों तक पहुंचने और नशीले पदार्थों की मांग को कम करने में सामुदायिक भागीदारी और सार्वजनिक सहयोग बढ़ाने पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। इन कार्यक्रमों में किशोरों और युवाओं में नशीली दवाओं के उपयोग की प्रारंभिक रोकथाम के लिए समुदाय-सहकर्मी नेतृत्व आधारित हस्तक्षेप सहित अन्य कदम उठाये जाने चाहिए।
उन्होंने कहा कि माता-पिता और शिक्षकों के बीच जिम्मेदारी की भावना विकसित करना नितांत आवश्यक है ताकि प्रारम्भिक अवस्था में रोकथाम सुनिश्चित की जा सके। उन्होंने कहा कि जिन स्कूली विद्यार्थियों को नशे के सेवन की लत हो जाती है, वे पढ़ाई में पिछड़ जाते हैं और शैक्षणिक संस्थान भी छोड़ देते हैं। ऐसी स्थिति में उनको उचित परामर्श प्रदान किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि मानक प्रक्रियाओं और श्रेष्ठ प्रथाओं को स्थापित करने के लिए उपचार और पुनर्वास स्तर पर महत्वपूर्ण प्रयास करने की आवश्यकता है। ऐसे पुनर्वास केंद्रों को कौशल विकास के साथ जोड़ने की भी आवश्यकता है। उपचाराधीन व्यक्तियों को शीघ्र पुनर्वास के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। यह कदम चिकित्सीय होने के साथ-साथ पुनरावृत्ति को रोकने के लिए प्रभावी भी है।
अपराध की रोकथाम के उपाय के रूप में, मादक द्रव्यों के आदी लोगों को चिन्हित करने और उन्हें उपचार के लिए संगठनों के पास भेजने की आवश्यकता है और यदि वे ड्रग्स बेचते पाए जाते हैं तो आवश्यक कानूनी कदम सुनिश्चित की जानी चाहिए। नशीले पदार्थों की आपूर्ति पर रोक लगाने तथा नशे में संलिप्तों के कल्याण के लिए समाज के सहयोग की आवश्यकता है क्योंकि इसके बिना समाज में नशे की प्रवृत्ति पर रोक नहीं लगाई जा सकती है।
अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक सतवंत अटवाल ने कहा कि राज्य पुलिस द्वारा नशीली दवाओं के तस्करों पर अंकुश लगाने के लिए कई नवीन प्रयास किए गए हैं, जिनके सकारात्मक परिणाम मिले हैं। उन्होंने कहा कि नशीली दवाओं के दुरुपयोग के खतरे से निपटने के लिए एक व्यापक रणनीति अपनाई गई है। उन्होंने कहा कि मादक द्रव्यों के सेवन से निपटने के लिए पहला कदम दवाओं की आपूर्ति में लगाम कसना है। मादक द्रव्य प्रवर्तन से संबंधित सभी प्रवर्तन एजेंसियां आपूर्ति लाईनों को खत्म करने के लिए निरंतर प्रयास कर रही हैं।
सचिव सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता एम सुधा देवी ने कहा कि सर्वेक्षण से ज्ञात हुआ है कि नशे के आदी लोगों द्वारा इनहेलेंट, अल्कोहल, कैनबिस, ओपियोइड पदार्थों जैसे विभिन्न प्रकार के पदार्थों का उपयोग किया जा रहा है। उन्होंने मादक द्रव्यों के सेवन की रोकथाम के लिए विभाग द्वारा किए जा रहे विभिन्न उपायों पर प्रकाश डाला।
अनुसूचित जाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यकों और विशेष रूप से सक्षम के सशक्तिकरण विभाग के निदेशक प्रदीप कुमार ठाकुर ने कार्यशाला में विस्तृत प्रस्तुति दी।
इस अवसर पर विभिन्न विभागों और गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधि भी उपस्थित थे।

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