"मंडी की अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि" धार्मिक, संस्कृतिक व पुरातात्विक का प्रतीक

“मण्डी की अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि” धार्मिक, सांस्कृतिक व पुरातात्विक का प्रतीक

शिवरात्री मेला परम्परागत लोक कला एवं संस्कृति का प्रतीक

शिवरात्री मेला परम्परागत लोक कला एवं संस्कृति का प्रतीक है। सदियों से इस मेले का प्रारूप व्यापारिक व सांस्कृतिक ही था। परन्तु जैसे-जैसे समाज ने करवट बदली इसने आधुनिकता को भी सरलता से अपने में समेट लिया। वर्तमान में इसमें सांस्कृतिक कार्यक्रमों, प्रदर्शनियों, खेलों व अन्य मनोरंजनों को भी जोड़ दिया गया है। जिससे आधुनिक युग की उपलब्धियों की झलक भी देखने को मिलती है। वर्तमान में श्रद्धा और विश्वास, मानव और देवता के मिलन का ऐसा मनोरम दृष्य शायद ही कहीं और देखने को मिलता होगा। जैसा कि शिवरात्री के पावन अवसर पर मण्डी में देखने को मिलता है।

शिवरात्री मेला परम्परागत लोक कला एवं संस्कृति का प्रतीक

शिवरात्री मेला परम्परागत लोक कला एवं संस्कृति का प्रतीक

मुख्य आकर्षण

श्री देव कमरूनाग का स्वागत

समस्त देवी-देवताओं द्वारा श्री माधोराव के मन्दिर में नमन

महाशिवरात्री के दिन रियासत काल में निर्मत यज्ञशाला में अध्यक्ष एवं उपायुक्त मण्डी द्वारा यज्ञ

महाशिवरात्री के ही दिन भूतनाथ मन्दिर में भी यज्ञ

श्री देव कमरूनाग की अध्यक्ष एवं उपायुक्त मण्डी द्वारा पूजा-अर्चना

महाशिवरात्री के अगले दिन मुख्य अतिथि द्वारा श्री राजमाधवराय की पूजा अर्चना व श्री राजमाधवराय की अगुवाई में जलेब में भागीदारी

पड्डल मैदान में मुख्य अतिथि द्वारा सात दिवसीय मेले का विधिवत उद्घाटन

मेले में प्रस्तुत प्रदर्शनियों तथा बेबी शो आदि का अवलोकन

प्रतिदिन सांय सांस्कृतिक संध्याओं का आयोजन

मेले के उद्घाटन की संध्या से समापन की पूर्व संध्या तक प्रतिदिन सांय सांस्कृतिक संध्याओं का आयोजन किया जाता है। इन कार्यक्रमों में स्कूली बच्चे, स्थानीय कलाकार, प्रदेश व देश के नामी कलाकारों के अतिरिक्त विदेशी कलाकार भी अपनी प्रस्तुति देते हैं।

इन सात दिनों में पड्डल मैदान में प्रति दिन विभिन्न खेलों का आयोजन किया जाता है जिसमें महिला रस्साकशी, कुश्ती, हॉकी, बालीबाल प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त मेले से पूर्व हॉफ़ मैराथन का भी आयोजन किया जाता है।

पुरातन परम्पराओं को जागृत रखते हुए वाद्ययन्त्रों की प्रतियोगिता व देवलू नाटी प्रतियोगिता का आयोजन भी प्रतिदिन

मेले के अन्तिम दिन चौहाटा जातर में प्राचीन देवी देवताओं का दर्शन सौभाग्य से प्राप्त होता है।

महाविद्यालय के कला केन्द्र मंच पर किया जाता है।

शिवरात्री से चौथे दिन मध्यम जलेब का आयोजन किया जाता है। मुख्य अतिथि राजमाधव जी की अगुवाई में भागीदारी प्रदान करते हैं।

मेले के अन्तिम दिन चौहाटा जातर में प्राचीन देवी- देवताओं का दर्शन सौभाग्य प्राप्त होता है।

मुख्य अतिथि विभिन्न प्रतिस्पर्धाओं के विजेताओं को पुरस्कृत करते हैं व पड्डल मैदान में आए श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हैं।

इसके पश्चात मेले के समापन की घोषणा के साथ ही शिवरात्री ध्वज को अध्यक्ष एवं उपायुक्त मण्डी को सौंप कर शिवरात्री मेले का विधिवत समापन किया जाता है।

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