दशहरे की एक ओर सामाजिक महत्वता तो दूसरी ओर सांस्कृतिक लोकोत्सव की धूम

दशहरे की एक ओर सामाजिक महत्वता तो दूसरी ओर सांस्कृतिक लोकोत्सव की धूम

विजयदशमी यानी दशहरा का त्यौहार

विजयदशमी यानी दशहरा का त्यौहार

हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार आश्विन शुक्ल दशमी के दिन विजयदशमी यानी दशहरा का त्यौहार मनाया जाता है। इस बार का दशहरा 30 सितम्बर को  मनाया जाएगा। हिंदी रीति-रिवाज के अनुसार आज यानी दशहरे के दिन का विजय मुहूर्त शुभ कार्यों और यात्रा शुरु करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण और शुभ माना जाता है। इस बार का दशहरे का त्यौहार का शुभ मुहूर्त दोपहर 1 बजकर 57 मिनट से 2 बजकर 42 मिनट तक रहेगा। जिसमे आप अपने सुभ काम की शुरुवात कर सकतें हैं। अधिकांश लोग दशहरे के दिन नई गाडियां, मकान, गहना और अपने दफ्तरों में रखें सामान की पूजा करते हैं।

विजय दशमी का त्यौहार प्रतीक है सच्चाई का

दशहरा त्यौहार को सत्य की असत्य पर विजय के रूप माना जाता है। इस विजय दशमी का त्यौहार प्रतीक है सच्चाई का और यह जुड़ा है रावण के वध से दशहरा को विजयदशमी के नाम से भी जाना जाता है इस मौके पर लोग बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के तौर पर दशानन रावण, उसके पुत्र मेघनाद और भाई कुंभकरण के विशालकाय पुतले जलाते हैं। गर्मी के खत्म होने और ठंड की दस्तक के तौर पर भी देखे जाने वाले दशहरा से पहले नौ दिनों का नवरात्र महोत्सव मनाया जाता है, जिसमें भक्त पूजा-अर्चना करते हैं और व्रत रखते हैं। नवरात्र के दौरान पुरे भारत में विभिन्न हिस्सों में रामलीलाएं भी आयोजित की जाती है।

क्यों मनाते हैं  दशहरा

प्रभु श्री राम और रावण की कथा और रामायण की हर बात लोगो के जुबान पर है। हम यह भी जानतें है की किस तरह से रावण के अत्याचार को खत्म कर लोगो को मुक्ति दिलाने के लिए किस तरह राम को भगवान विष्णु का एक अवतार बताया गया है। प्रभु श्री राम का जन्म अयोध्या नरेश दशरथ के पुत्र के रूप में हुआ था। अपने पिता दशरथ के दिए गए वचन को पूरा करने के लिए उन्होंने किस तरह से उन्होंने 14 साल का वनवास सहर्ष स्वीकार कर लिया था। लेकिन इस वनवास में लेकिन वनवास के दौरान ही लंका नरेश रावण नामक एक राक्षस ने भगवान राम की पत्नी सीता का हरण कर लिया था। प्रभु श्री राम ने अपनी पत्नी को असुर रावण से छुड़ाने और इस संसार को रावण के अत्याचार से मुक्त कराने के लिए लगातार 10 दिनों तक राम ने रावण से भयंकर युद्ध किया था। और इस दसवे दिन राम ने रावण का वध किया और माता सीता को रावण के चंगुल से मुक्त करा के लाये थे। प्रभु श्री राम की इस जीत को सत्य का असत्य पर विजय के रूप में माना जाता है । तब हर साल दशहरे के दिन रावण का पुतला जलाकर दशहरा का त्यौहार मनाया जाता है।

रावण को मारने से पूर्व राम ने मां दुर्गा की आराधना की थी। मां दुर्गा ने उनकी पूजा से प्रसन्न होकर उन्हें विजय का वरदान दिया था। इसी लिये मां दुर्गा की विशेष आराधना इस त्यौहार से पूर्व देखने को मिलती है। दशमी के दिन त्योहार की समाप्ति होती है। इस दिन को दशहरा कहते हैं। भगवती के ‘विजया’ नाम पर से इस पर्व को ‘विजयादशमी’ भी कहते हैं।

ऐसा माना जाता है कि आश्विन शुक्ल दशमी को तारा उदय होने के समय ‘विजय’ नामक काल होता है। यह काल सर्व कार्य सिद्धि दायक होता है। इसलिए भी इसे विजयादशमी कहते हैं। विजयादशमी के दिन श्रीराम चौदह वर्ष का वनवास भोग कर तथा रावण का वध कर अयोध्या पहुँचे थे , इसलिए भी इस पर्व को ‘विजयादशमी’ कहा जाता है।

पौराणिक कथा के अनुसार दुर्योधन ने पांडवों को जुए में पराजित करके बारह वर्ष के वनवास के साथ तेरहवें वर्ष में अज्ञातवास की शर्त दी थी। तेरहवें वर्ष यदि उनका पता लग जाता तो उन्हें पुनः बारह वर्ष का वनवास भोगना पड़ता। इसी अज्ञातवास में अर्जुन ने अपना धनुष एक शमी वृक्ष पर रखा था तथा स्वयं वृहन्नला वेश में राजा विराट के पास नौकरी कर ली थी। जब गौ रक्षा के लिए विराट के पुत्र कुमार ने अर्जुन को अपने साथ लिया, तब अर्जुन ने शमी वृक्ष पर से अपने हथियार उठा कर शत्रुओं पर विजय प्राप्त की थी। इसी कारण आज के दिन वाहन व शस्त्रों की पूजा भी की जाती है।

दशहरा का सामाजिक महत्व भी है एवं सांस्कृतिक पहलू भी है। हम जानते हैं कि भारत कृषि प्रधान देश है इसी लिये जब किसान अपने

 विजय दशमी का त्यौहार प्रतीक है सच्चाई का 

विजय दशमी का त्यौहार प्रतीक है सच्चाई का

 

खेत में सुनहरी फसल के रुप में अनाज रूपी संपत्ति घर लाता है तो उसके उल्लास और उमंग की कोई सीमा नहीं रहती इस प्रसन्नता के अवसर पर वह भगवान की कृपा को मानता है और उसे प्रकट करने के लिए वह उसका पूजन करता है।

इतना ही नहीं भारतवर्ष में यह पर्व विभिन्न प्रदेशों में विभिन्न प्रकार से मनाया जाता है।

देश में नवरात्र बड़े धूमधाम से मनाया गया और इसी के साथ दशहरे की तैयारियां भी शुरू हो गई हैं। भारत के अलग-अलग हिस्सों में त्योहारों को मनाने का तरीका बदल जाता है। देश के दक्षिण में मैसूर तो उत्तर में कुल्लू का दशहरा दुनियाभर में मशहूर है। देश और दुनिया से हर साल यहां हजारों टूरिस्ट दशहरा में शामिल होने के लिए भारत आते हैं। मैसूर में 600 साल पुरानी दशहरा की परंपरा काफी मशहूर है। वहीं हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में दशहरा पर लोग रावण नहीं जलाते हैं। तो वहीं हिमाचल के बैजनाथ में भी रावण का पुतला नहीं जलाया जाता अपितु माना जाता है कि यहां रावण का पुतला जलाना पाप है और ऐसा करने पर लोगों की मौत हो जाती है। जी हाँ दशहरा के बारे में कुछ ऐसी ही अनोखी जानकारियां इन परंपराओं के बारे में हम आपको यहाँ देने जा रहे हैं।

हिमाचल प्रदेश: में कुल्लू का दशहरा बहुत प्रसिद्ध है। करीब एक सप्ताह पहले से ही इस पर्व की तैयारी आरंभ हो जाती है। स्त्री और पुरुष सुंदर वस्त्रों से सज्जित होकर तुरही, बिगुल, ढोल, नगाड़े, बांसुरी अथवा जिसके पास जो वाद्य होता है, उसे लेकर बाहर निकलते हैं। पहाड़ी लोग अपने ग्रामीण देवता का धूमधाम से जुलूस निकाल कर पूजन करते हैं। देवताओं की मूर्तियों को बहुत ही आकर्षक पालकी में सुंदर ढंग से सजाया जाता है। साथ ही वे अपने मुख्य देवता रघुनाथ जी की भी पूजा करते हैं। इस जुलूस में प्रशिक्षित नर्तक नाटी नृत्य करते हैं। इस प्रकार जुलूस बनाकर नगर के मुख्य भागों से होते हुए नगर परिक्रमा करते हैं और कुल्लू नगर में देवता रघुनाथजी की वंदना से दशहरे के उत्सव का आरंभ करते हैं।

कुल्लू घाटी में विजयदशमी पर्व का परंपरा, रीतिरिवाज, और ऐतिहासिक रूप से खास महत्व

कुल्लू घाटी में विजयदशमी पर्व का परंपरा, रीतिरिवाज, और ऐतिहासिक रूप से खास महत्व

हिमाचल का कुल्लू दशहरा

पूरे देश में दशहरा खत्म होता है और कुल्लू की घाटी में  होती है उत्सव की शुरुआत

कुल्लू घाटी में विजयदशमी पर्व का परंपरा, रीतिरिवाज, और ऐतिहासिक रूप से खास महत्व है। जिस दिन पूरे देश में दशहरा खत्म होता है उस दिन से कुल्लू की घाटी में इस उत्सव की शुरुआत होती है। यहां की रथ यात्रा की रम्यता, खरीदारी का उल्लास और धार्मिक परंपराओं की धूम टूरिस्टों को लुभाती है। यहां पर सात दिन का मेला लगता है। पूरे क्षेत्र में व्यवस्थित दुकानें लगती हैं और बड़ी चहल-पहल होती है। कुल्लू का दशहरा मुख्य रूप से सांस्कृतिक लोकोत्सव है। यहां दशहरे पर रघुनाथजी की पूजा की जाती है। देवी-देवताओं को पालकी में बिठाकर जुलूस निकाला जाता है। इस मौके पर सभी लोग अपने पारंपरिक कपड़े पहनते हैं। समुद्रतल से करीब 1200 मीटर की ऊंचाई पर बसे कुल्लू को प्राचीन काल में आदमी के रहने के अंतिम छोर पर बसा स्थान माना जाता था। देशी-विदेशी टूरिस्ट यहां दशहरा देखने के अलावा कुदरत का आनंद लेने के लिए आते हैं।

हिमाचल का बैजनाथ दशहरा

हिमाचल के हजारों साल पुराने शिव मंदिर के बारे में मान्यता है कि रावण ने सालों तक यहां शिवलिंग की कठोर तपस्या की थी। भोलेनाथ को खुश करने के लिए रावण ने एक-एक करके अपने सिर काटना शुरु कर दिए। जब आखिरी सिर की बारी आई तो शिवजी ने दर्शन देकर रावण को पराक्रमी होने का वरदान दिया। माना जाता है कि यहां रावण का पुतला जलाना पाप है और ऐसा करने पर लोगों की मौत हो जाती है।

राजस्थान का कोटा दशहरा

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