“मण्डी की अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि” धार्मिक, सांस्कृतिक व पुरातात्विक का प्रतीक
“मण्डी की अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि” धार्मिक, सांस्कृतिक व पुरातात्विक का प्रतीक
जारी…..मण्डी की राजधानी सन 1526 ई. तक पुरानी मण्डी में ही थी और आज जिस स्थान पर घनी आबादी है उस स्थान पर घनघोर जंगल
था। लोक मान्यता के अनुसार उस समय के राजा अजबर सेन को आश्चर्यचकित करने वाला स्वपन दिखा जिसमें शिव की पिण्डी पर एक गाय दूध चढ़ा रही थी। जिस कारण सन 1526 में उसी स्थान पर भूतनाथ का मन्दिर बनवाया गया और राजधानी भी बदल दी गई। उसी समय से मण्डी नगर में शिवरात्री मेलों का आयोजन भी होने लगा। मण्डी में भगवान विष्णु के अवतार भगवान राजमाधव जी की स्थापना सन 1648 ई. में राजा सूरजसेन ने की थी। राजा सूरजसेन ने अपनी कोई सन्तान न होने के कारण अपनी रियासत श्री राजमाधव को अर्पित कर दी। तभी से मण्डी के सभी राजा भगवान राजमाधव के नाम से ही राज करते आए हैं।
शिवरात्री पर्व के अवसर पर आए सभी देवी देवताओं को लेकर श्री राजमाधव सबसे पहले मण्डी नगर के इष्ट देव श्री भूतनाथ जी को पुरातन संस्कृति की मनोरम झांकी प्रस्तुत करते हुए श्रद्धासुमन अर्पित करने आते हैं। इस मेले में हिमाचल प्रदेश सरकार के विभिन्न विभागों द्वारा प्रदर्शनियों के माध्यम से प्रदेश के चहुंमुखी विकास की प्रस्तुति की जाती है। स्थानीय कलाकार व बच्चे विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों को चार चांद लगा देते हैं। प्रदेश तथा देश के अन्य भागों से आए कलाकार, साहित्यकार अपने सांस्कृतिक व साहित्यिक प्रस्तुतियों से ‘अनेकता में एकता ‘ का प्रदर्शन करते हैं। विदेशों से आए सांस्कृतिक दल इस मेले को अन्तर्राष्ट्रीय सम्मान व ख्याति प्रदान करके इस मेले की गरिमा बढ़ा देते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों से आए भक्त पहाड़ी वाद्ययन्त्रों की धुन में अपने देवी-देवताओं की पालकियां अपने कन्धों पर लिए हुए जब मण्डी नगर में प्रवेश करते हैं तो वातावरण झूम उठता है। इस बात में कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि यह पहाड़ी परम्परा व अछूती संस्कृति देखने वालों पर अपनी अमिट छाप छोड़ती है।
सैकड़ों वर्षों से बड़े उत्साह से मनाया जाता है मंडी का अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि उत्सव
मण्डी का अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि उत्सव बड़े उत्साह से मनाया जाता है सैकड़ों वर्षों से
यह धार्मिक उत्सव मंडी नगर में बड़े उत्साह से सैकड़ों वर्षों से मनाया जाता है। इसमें 80 के करीब देवी-देवता बारात के रूप में भाग लेते हैं। चारों ओर से हजारों लोग अपनी- अपनी वेशभूषा में आते हैं। इस अवसर पर सैकड़ों व्यापारी, फेरी वाले भी पहुंचते हैं। शिवरात्रि के मेले की मान्यता वर्तमान मंडी नगर की नींव के साथ जुड़ी है। राजा अजबर सेन को लगातार कई रात स्वपन में दिखाई दिया कि गाय अपना दूध शिवजी की पिण्डी पर भेंट कर रही है। राजा ने स्वप्र को सत्य माना। उस स्थान को देखा और वहां मंदिर बनवा दिया। यह मंदिर अब भूत नाथ का मंदिर कहलाता है। राजा शिव भक्त बन गया। अपनी राजधानी वहीं बदल ली। तबसे शिवरात्रि का मेला लगता है। मेला, शिवरात्रि के दूसरे दिन प्रारंभ होता है। दूसरे मंदिरों जगन्नाथ, टारना देवी, त्रिलोकी नाथ में भी पूजा होती है। पहले समय में यह व्यापारिक मेला था अब खेल, मैच, प्रदर्शनी होती है। रात्री को सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं।
शिवरात्री मेला परम्परागत लोक कला एवं संस्कृति का प्रतीक…जारी