धौलधार की ऊंचे पर्वत पर बसा प्राचीन मंदिर “भागसूनाग”

“भागसूनाग” के पवित्र जल के स्नान-पान करने से दूर होती हैं रोग-ब्याध्यिां

भागसू नाग के प्राकृतिक स्त्रोवर को और मंदिरों को देखा जा सकता है

भागसू नाग के प्राकृतिक स्त्रोवर को और मंदिरों को देखा जा सकता है

धौलधार के ऊंचे पर्वत पर बसा प्राचीन मंदिर “भागसूनाग”

र्मशाला में मैक्लॉडगंज गंज से दो किलो मीटर दूर धौलधार की ऊंची पर्वत श्रृंखलाओं के आंचल में  5200 फुट की ऊंचाई पर स्थित भागसू नाग के प्राकृतिक स्त्रोवर को और मंदिरों को देखा जा सकता है। यहां एक पक्का कुण्ड बना है जिसमें ठंडा जल निर्बाघ गति से हर ऋतु में बराबर गिरता रहता है। भागसु नाग के स्त्रोवर के पीछे एक पौराणिक

धौलधार के ऊंचे पर्वत पर बसा प्राचीन मंदिर “भागसूनाग

धौलधार के ऊंचे पर्वत पर बसा प्राचीन मंदिर “भागसूनाग

कथा है। द्वापर युग में आज से 5100 वर्ष पूर्व राजस्थान की अजमेर रियास्त का एक राजा भागसु था वह न्याय प्रिय और प्रजा पालक राजा था। उसके शासन काल में एक बार तीन वर्ष तक वर्षा न होने के कारण कारण धरती सूख गई और दरारें पड़ गईं। राज्य में भीषण अकाल पड़ गया, यज्ञ पूजा पाठ कोई काम न आए। तब नागवंश के देवी-देवताओं का कभी इस भू-भाग पर पूरा साम्राज्य स्थापित था। जो आज भी नामभूमि नाम से विख्यात है। भागसूनाग भगवान शिव का अत्यंत प्राचीन स्थान है। जिसकी कहानी प्राचीन ग्रंथी में इस प्रकार की गई है। कहते हैं कि

राजस्थान निवासी असुरों के राजा भागसू के प्रदेश में एक बार देर तक वर्षा न होने के कारण भयानक सूखा पड़ गया प्रजा में त्राहि-त्राहि मच गई तो प्रजा ने

धौलधार की ऊंची पर्वत श्रृंखलाओं के आंचल में 5200 फुट की ऊंचाई पर स्थित भागसू नाग

धौलधार की ऊंची पर्वत श्रृंखलाओं के आंचल में 5200 फुट की ऊंचाई पर स्थित भागसू नाग

राजा भागसू के प्रदेश में एक बार देर तक वर्षा न होने के कारण भयानक सूखा पड़ गया

राजा भागसू के प्रदेश में एक बार देर तक वर्षा न होने के कारण भयानक सूखा पड़ गया

मिलकर राजा भागसू से निवेदन किया कि तत्काल कहीं से पानी का प्रबंध करें। यदि ऐसा न हो सका तो हम लोग इस स्थान को छोडक़र कहीं अन्यत्र चले जाएंगे। प्रजापालक राजा भागसू ने सबको वहीं रहने का आश्वासन दिया और पानी की तलाश करता हुआ नागों के इस प्रदेश में आ पहुंचा। यहां भागसूनाग के ऊपर फैली धौलाधार पर्वतमाला के बीच अनेक सुंदर सरोवर आज भी विद्यमान है। जो आज भी पर्यटकों के मुख्य-आकर्षण केंद्र बने है। भागसूनाग से लगभग अठारह हजार फुट धौलाधार

शिखर पर राजा भागसू को एक सरोवर लहराता हुआ दिखाई दिया। जिसे “नागडल” के नाम से जाना जाता है। उस एकांत सरोवर का जल मायावी भागसू ने अपनी माया दारा कमंडल में भर लिया और वापस लौट चला। चलते-चलते इस स्थान पर अंधेरा हो गया तो भागसू यहीं विश्राम करने का विचार किया। उधर जब नागो ने देखा कि उनका सरोवर खाली पड़ा हुआ है तो  वे भागसू का पता लगाते हुए आ पहुंचे। तब इसी स्थान पर भागसू के साथ नागो का भयंकर युद्ध हुआ। उस युद्ध में कमंडल का जल नीचे गिर गया जो तब से आज तक निरंतर जलधाराओं के रूप में प्रवाहित होता चला आ रहा है। युद्ध में नागों ने भागसू को परास्त कर दिया। वह समझ गया कि नाग भी भगवान शंकर के ही स्वरूप हैं।  अपनी पराजय स्वीकार करते हुए भागसू ने नागदेव शंकर से कहा कि आपके जल को चुरा लाने की सजा अब मेरी मृत्यु निश्चित हैं। कितुं अपनी प्रजा के हित में मुझे ऐसा करना पड़ा है। इसलिए क्षमा प्रार्थना करता हूं।

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