हिमाचल की ऐतिहासिक धरोहर की अनमोल विरासत "वायसरीगल लॉज"

हिमाचल की ऐतिहासिक धरोहर की अनमोल विरासत “वायसरीगल लॉज”

यहीं हुआ था 1972 का ‘शिमला समझौता’

वायसरीगल लॉज ऐतिहासिक घटनाओं एवं नैसर्गिक श्रृंगार के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध

इस ऐतिहासिक भवन को स्वतन्त्रता से पूर्व भारत के वायसराय व गवर्नर जनरल लार्ड डफरिन ने बनवाया था

भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान भवन का मनमोहक दृष्य

भवन में आज भी ब्रिटिश हुकुमत के अवशेष सुरक्षित

यहीं हुआ था 1972 का ‘शिमला समझौता’

यहीं हुआ था 1972 का ‘शिमला समझौता’

वायसरीगल लॉज एक ऐतिहासिक विशाल भवन है जो शिमला नगर के प्रवेश द्वार पर स्थित बालूगंज कस्बे के समीप समरहिल नामक पहाड़ी के शीर्ष पर स्थित है। ब्रिटिश सरकार के अधिकारी एवं शासकों ने जब शिमला का दौरा किया तो गर्मी से निज़ात पाने के लिए वे पहाड़ों की ठण्डी वादियों में अपना आशियाना बनाना चाहते थे। अतः शिमला के समरहिल की ऊँची पहाड़ी की ओर वे अधिक आकर्षित हुए तथा अपना आवास यहीं बनवाया। तत्पश्चात ब्रिटिश हुकूमत ने सम्पूर्ण भारत पर इसी भवन से अपनी सत्ता चलाई और शिमला को भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी भी बनाया। यह भवन बहुत सुन्दर है और इसके आस-पास के प्राकृतिक दृश्य भी बहुत ही मनमोहक हैं। भवन के चारों ओर बड़े-बड़े ब्रास के फूलों के वृक्ष व देवदार के घने पेड़ों के मध्य विशाल, समतल, हरे-भरे एवं खुले लान जो मखमल की तरह प्रतीत होते हैं इसकी सुन्दरता और अधिक निखारते हैं, जिसके कारण स्वदेषी और विदेशी पर्यटक इसकी ओर हमेशा आकर्षित होते हुए देखे जा सकते हैं।

वायसरीगल लॉज ऐतिहासिक घटनाओं एवं नैसर्गिक श्रृंगार के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध

वायसरीगल लॉज ऐतिहासिक घटनाओं एवं नैसर्गिक श्रृंगार के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। अंग्रेजी वायसरायों के आवागमन के परिणामस्वरूप जितने भवन यहाँ अस्तित्व में आए, उनमें ऊँचे शिखर पर मुकुट की तरह सुशोभित वायसरीगल, वायसराय भवन व राष्ट्रपति निवास जैसा अन्य भवन कोई भी नहीं है। जब भी रेलगाड़ी से आते हैं तो शिमला नगर नज़दीक पहुंचे सर्वप्रथम दृष्टि इस भवन पर ही पड़ती है।

स्वतन्त्रता से पूर्व भारत के वायसराय व गवर्नर जनरल लार्ड डफरिन ने बनवाया था यह ऐतिहासिक भवन

स्वतन्त्रता से पूर्व भारत के वायसराय व गवर्नर जनरल लार्ड डफरिन ने बनवाया था यह ऐतिहासिक भवन

स्वतन्त्रता से पूर्व भारत के वायसराय व गवर्नर जनरल लार्ड डफरिन ने बनवाया था यह ऐतिहासिक भवन

इस ऐतिहासिक भवन को स्वतन्त्रता से पूर्व भारत के वायसराय व गवर्नर जनरल लार्ड डफरिन ने बनवाया था। भवन का प्रारूप कैप्टन कोल और प्रसिद्ध वास्तुकार हैनरी इरविक ने तैयार किया था। इसका निर्माण कार्य 1884 में सम्पन्न हुआ। तत्पश्चात 23 जनवरी 1888 को लार्ड डफरिन ने इस भवन को आवास बनाया और वायसरीगल लॉज व वायसराय निवास के नाम से इसका स्वरूप बना। इस आवास में ब्रिटिश सरकार के कई शासकों व वायसरायों ने अपना कार्यकाल निभाया था। लार्ड डफरिन से लेकर माऊंटबेटन तक अपने शासक के दौरान इस भवन को अपना आवास रखा।

यहीं हुआ था 1972 का ‘शिमला समझौता’

भारत की स्वतन्त्रता की योजना का प्रारूप भी शिमला में बनाया गया था। 25 जून से 14 जुलाई सन् 1945 तक ‘शिमला कॉन्फ्रैंस’ भी इसी भवन में हुई थी। इसमें राष्ट्रपिता महात्मा गान्धी, भारत के सर्वप्रथम प्रधानमन्त्री पण्डित नेहरु, मौलाना आज़ाद, सी-गोपालाचारी, मास्टर तारा सिंह, मुहम्मद अली जिन्ना उपस्थित थे। 1946 में भारतीय को सत्ता हस्तांतरित करने हेतु बातचीत और इसकी प्रक्रिया तय करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने ‘कैबिनट मिशन’ को भारत भेजा गया था, जिसके परिणाम स्वरूप कांग्रेस, मुस्लिम लीग और अंग्रेजी शासकों के बीच वायसराय भवन ‘त्रिपक्षीय कॉन्फ्रैंस’ हुई थी तथा 1972 का ‘शिमला समझौता’ भारत की पूर्व प्रधानमन्त्री इन्दिरा गान्धी व पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमन्त्री जुल्फीकार अली भुट्टो के बीच भी यहीं हुआ था, जिसके साक्ष्य आज भी इस भवन में मौजूद हैं।

ब्रिटिश शासन के आकर्षण का केन्द्र रहा

1860’ के तहत ‘भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान सोसायटी’ का पंजीकरण करके, तत्पश्चात ‘राष्ट्रपति निवास’ से इस भवन को ‘भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान’ का अस्तित्व मिला।

1860’ के तहत ‘भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान सोसायटी’ का पंजीकरण करके, तत्पश्चात ‘राष्ट्रपति निवास’ से इस भवन को ‘भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान’ का अस्तित्व मिला।

सन् 1947 में भारत के स्वतन्त्र होते ही यह भवन भारत के राष्ट्रपति के अधिकार में आ गया तथा इसको भारतीय सरकार ने राष्ट्रपति निवास का रूप दिया। एक समय में ब्रिटिश शासन के आकर्षण का केन्द्र रहा यह भवन राष्ट्रपति निवास के रूप में और महामहिम इसका उपयोग वर्ष भर में चंद दिनों के लिए ही करते थे। लेकिन उस समय भारत के राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्ण और प्रधानमन्त्री पण्डित ज्वाहर लाल नेहरु की परिकल्पना के अनुसार 6 अक्तूबर, सन् 1964 को ‘रजिस्ट्रेशन ऑफ सोसायटी एक्ट, 1860’ के तहत ‘भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान सोसायटी’ का पंजीकरण करके, तत्पश्चात ‘राष्ट्रपति निवास’ से इस भवन को ‘भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान’ का अस्तित्व मिला।

वर्तमान में ‘भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान’ के नाम से अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध

वर्तमान में यह भवन जिसने अपने अस्तित्व के कई पड़ाव पार किए हैं, ‘भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान’ के नाम से अन्तर्राष्ट्रीय

भवन में आज भी ब्रिटिश हुकुमत के अवशेष सुरक्षित

भवन में आज भी ब्रिटिश हुकुमत के अवशेष सुरक्षित

स्तर पर प्रसिद्ध है। इस संस्थान में मानविकी और समाज विज्ञान पर निरन्तर शोध चल रहा है। आज भी यहाँ सीनियर रिसर्च फैलो, गैस्ट फैलो, साहित्यकार, ऐतिहासकार शोध में लीन हैं।

भवन में आज भी ब्रिटिश हुकुमत के अवशेष सुरक्षित

इस भवन में आज भी ब्रिटिश हुकुमत के ऐसे अवशेष सुरक्षित हैं जिनको देखने के लिए वर्ष भर में पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है। बीते युग की स्मृति का दृश्य यह भवन सामने स्वंय ही प्रस्तुत करता है। इस भवन की एक प्रमुख विशेषता है कि यह मात्र केवल एक भवन ही ऐसा है जहां से मानो ऐसा प्रतीत होता है कि नीले आसमान को भी छुआ जा सकता है। आस-पास के दृष्य को देखकर मन भी पुलकित हो जाता है। यह वास्तुकला का एक अनुपम प्रमाण है।

सम्बंधित समाचार

अपने सुझाव दें

Your email address will not be published. Required fields are marked *