हिमाचल: किन्नौर जनपद की विवाह परंपरा, शादी में न तो मंडप बनाया जाता है, और न ही अग्नि के लिए जाते हैं फेरे

सतलुज नदी किन्नौर क्षेत्र को दो भागों में बाँटती है। यहाँ का मौसम वर्षभर सुहावना रहता है। हिमाचल की इस पावन भूमि पर हिमाच्छादित पर्वत श्रेणियों से घिरा किन्नौर एक अत्यंत रमणीय क्षेत्र है। यहाँ का कुछ क्षेत्र वनस्पति विहीन है, जो इस क्षेत्र को अलग ही पहचान देता है। यह क्षेत्र चीन से लगता भारत का सीमावर्ती क्षेत्र है, जो अपनी सांस्कृतिक सामाजिक तथा धार्मिक पहचान को संजोकर रखे हुए है। शैल-श्रृंगों के मध्य मार्ग बनाती है कल-कल करती सतलुज तथा उसकी सहायक नदियाँ, नदियों के किनारे ऊँची-ऊँची ढलानों पर बसे हुए किन्नर लोग इस क्षेत्र की विशेषता है। किन्नरों का भारतीय संस्कृति में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। इन लोगों को भारतीय वाङ्मय में उनकी सरलता, संगीत प्रियता एवं अनुपम सौंदर्य के कारण आर्धदैविक संज्ञा प्राप्त है। महाभारत के दिग्विजय पर्व में अर्जुन का किन्नरों के देश में जाना वर्णित है।

किन्नौर में अरसे पहले तक बहुपति प्रथा प्रचलित थी; जो अब समाप्ति के कगार पर

किन्नौर में प्रचलित विवाह संस्कार स्पीति को छोड़कर प्रदेश के अन्य क्षेत्रों से बिल्कुल भिन्न

किन्नौर में प्रचलित विवाह संस्कार स्पीति को छोड़कर प्रदेश के अन्य क्षेत्रों से बिल्कुल भिन्न है। यहाँ पर अरसा पहले तक बहुपति प्रथा प्रचलित थी। कुछ विद्वानों ने इसको पांडवों का अनुकरण बताया है, परंतु ऐसा नहीं है। यहाँ के बुजुर्ग लोग बताते हैं कि यह प्रथा तिब्बत से अनुकरण की गई है, क्योंकि वहाँ इसका प्रचलन था और इस क्षेत्र के लोग वहाँ व्यापार करने जाते थे। वहीं से इस प्रथा को इस क्षेत्र के लोगों ने अपना लिया, जो अब समाप्ति के कगार पर है। यहाँ पर इस प्रथा को अपनाने का एक कारण यह भी रहा कि इससे परिवार टूटने से बच जाता था और सभी लोग मिलकर रहते थे, जिस कारण ज़मीन के बँटवारे की नौबत भी नहीं आती थी। बहुपति प्रथा के चलते इस क्षेत्र में बहुत सी लड़कियाँ कुँवारी रह जाती थीं। शायद यही कारण था कि यहाँ लड़कियों के कुँवारी रह जाने को बुरा नहीं माना जाता था। उल्लेखनीय है कि पूह गाँव में यदि किसी कुँवारी लड़की के बच्चा पैदा हो जाए तो उससे यह नहीं पूछा जाता था कि बच्चे का पिता कौन है और न ही किसी अन्य तरह का कोई प्रश्न, बल्कि यहाँ के ग्राम्य देवता, जिनका नाम तोमरङ् है, का नाम बच्चे के बाप के स्थान पर रख दिया था।

हिमाचल: किन्नौर जनपद की विवाह परंपरा, शादी में न तो मंडप बनाया जाता है, और न ही अग्नि के लिए जाते हैं फेरे

डॉ. वंशी राम शर्मा ने किन्नौर में विवाह के पाँच प्रकार बताए हैं, जो इस प्रकार से है- बड़ा अथवा सामान्य प्रकार का विवाह अर्थात दो व्यक्तियों द्वारा बारात के रूप में जाकर संपन्न किया गया। विवाह ‘दमचतशिश’ अर्थात् प्रेम विवाह, ‘दोरोश व अर्थात् बलपूर्वक किया गया विवाह (इसमें दुलहिन को बलपूर्वक भाग लिया जाता है) तथा ‘हारी’ अर्थात् विवाहिता से तलाक हो जाने के पश्चात् पुनर्विवाह, जिसे ‘हार’ भी कहा जाता है। इसके अंतर्गत अविवाहित स्त्री के साथ विवाह संपन्न नहीं होता।

दरअसल किन्नौर में प्रचलित विवाह के भेदों को तीन भागों में बाँटा जा सकता है- छोटी शादी, बड़ी शादी तथा हारी या हार। विस्तृत उल्लेख निम्न प्रकार से है:-

छोटी शादी छोटी शादी किन्नौर में प्रचलित विवाह का एक ऐसा रूप है, जिसमें लड़का बारात लेकर लड़की के घर नहीं जाता, केवल पूह मंडल में छोटी-सी बारात ले जाने की परंपरा है। इस प्रकार की शादी में केवल अपने सगे-संबंधियों को ही बुलाया जाता है। इसमें सभी परंपराओं का निर्वहन भी नहीं किया जाता। पूरे किन्नौर में पहले प्रायः छोटी शादी ही होती है। इस प्रकार के विवाह के भी चार रूप हैं :-

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