दिवाली का पौराणिक महत्व, पंच-पर्वों का त्यौहार: दीपावली
दिवाली का पौराणिक महत्व, पंच-पर्वों का त्यौहार: दीपावली
क्यूँ की जाती हैं दिवाली पर देवी लक्ष्मी की पूजा ?
पौराणिक कथाओ के अनुसार राक्षस राज बलि ने अपने शौर्य के बल पर देवी लक्ष्मी एवम अन्य कई देवी देताओ को बंधक बना लिया था। कई दिनों तक वे सभी राजा बलि के बंधक थे जिसके बाद इसी कार्तिक माह की अमावस्या को भगवान विष्णु ने सभी देवी देवताओं एवम लक्ष्मी जी को स्वतंत्र करवाया। वहाँ से निकल कर सभी देवी देवता एवम लक्ष्मी जी क्षीरसागर पहुँचे एवम गहरी निद्रा में सो गए। इसलिए पुराणों में यह कहा गया हैं कि दिवाली उत्सव में घरों में साफ़ सफाई होना चाहिये ताकि देवी लक्ष्मी उस दिन क्षीरसागर ना जाकर भक्तो के घरो में ही सो जाये। जहाँ भगवान का वास होता हैं वहाँ दरिद्रता नहीं होती हैं और वही धन का आगमन होता हैं और आज के समय में खुशियों का दूसरा नाम धन प्राप्ति ही हैं।
राजा बलि ने तीनो लोको में अपना अधिपत्य करने के लिए अश्वमेघ यज्ञ करने का निर्णय लिया जिससे परेशान होकर सभी देवता भगवान विष्णु से सहायता मांगने गये। तब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और राजा बलि के पास भिक्षा की इच्छा से पहुँचे। राजा बलि ने बोला आपको जो चाहिये मैं देने का वचन देता हूँ। वामन देव ने कहा मुझे तीन पग भूमि चाहिये। राजा बलि ने दान दे दिया । वामन देवता ने अपना विशाल रूप धर कर एक पग में पृथ्वी, दुसरे में स्वर्ग को माप लिया एवम तीसरा पग कहा रखु ऐसा प्रश्न किया। तब बलि ने कहा आप अपना तीसरा पग मेरे मस्तक पर रखे। राजा बलि की दान प्रियता को देख भगवान प्रसन्न हुए और उन्होंने वरदान माँगने को कहा। तब राजा बलि ने कहा कि वे अगले तीन दिनों तक तीनो लोको में अपना अधिपत्य चाहते हैं और इन तीन दिनों में सभी जगह जश्न हो एवम माता लक्ष्मी की पूजा की जाये और इन तीनो दिन तक माता लक्ष्मी अपने भक्तो के घर में निवास करें।
इस प्रकार उस दिन से प्रति वर्ष दीपावली का यह त्यौहार मनाते हैं इसलिए माता लक्ष्मी की पूजा का महत्व पुराणों में मिलता हैं।