हिमाचल की धरा पर प्रसिद्ध “बाबा बालकनाथ दियोटसिद्ध”

हिमाचल की धरा पर प्रसिद्ध “बाबा बालकनाथ दियोटसिद्ध” मन्दिर का विशेष महत्व

हिमाचल में बहुत से प्राचीन व प्रसिद्ध मन्दिर है इन सभी मन्दिरों की अपनी खास महत्ता व विशेषता है ऐसे ही  बाबा बालकनाथ के हिमाचल प्रदेश में तथा बाहर यूं तो अनेक मंदिर हैं किन्तु हिमाचल की इस धरा पर बाबा बालकनाथ दियोटसिद्ध मन्दिर का विशेष महत्व है।

बाबाजी को माना जाता है शुकदेव का अवतार

शिव ने तपस्या से प्रसन्न हो आशीर्वाद दिया कि जिस बाल्यावस्था में तुम यहां उपस्थित हो, सदा उसी में रहोगे अत: बाबा बालकनाथ कलियुग में भी बालकरूप में

बाबा जी के विषय में कई किंवदन्तियां प्रसिद्ध हैं। एक जनश्रुति के अनुसार बाबाजी को शुकदेव का अवतार भी माना जाता है। अन्य मान्यता के अनुसार बाबा जी सत्युग में स्कन्द, त्रेता में कौल, द्वापर में महाकौल हुए। द्वापर में ही इन्होंने कैलासपर्वत पर शिव आराधना की। शिव ने तपस्या से प्रसन्न हो आशीर्वाद दिया कि जिस बाल्यावस्था में तुम यहां उपस्थित हो, सदा उसी में रहोगे। अत: बाबा बालकनाथ कलियुग में भी बालकरूप में रहे। सम्भवत: शुकदेव से भी उनकी तुलना इसीलिए की जाती है कि शुकदेव भी बाल्यावस्था में ही ब्रह्मज्ञान को प्राप्त हो गए थे।

बाबा जी का काठियावाड़ गुजरात में हुआ जन्म

विवाह के भय से घर छोड़ भक्ति की खोज में निकल पड़े

रूप बाल रूप था, अत: बालकनाथ कहलाए

कहा जाता है कि बाबा जी ने काठियावाड़ गुजरात में जन्म लिया। बाल्यावस्था से ही वे भक्ति में लीन रहते थे, अत: माता-पिता ने इनका विवाह करवाना चाहा। ये विवाह के भय से घर छोड़ भक्ति की खोज में निकल पड़े। सर्वप्रथम ये जूनागढ़ अखाड़े के महन्त दत्तात्रेय के पास गए। गुरू दत्तात्रेय से दीक्षा ग्रहण कर ये सिद्धि को प्राप्त हुए। इनका रूप बाल रूप था। अत: बालकनाथ कहलाए।

बाबा जी घूमते-घूमते बिलासपुर के बच्छरेटू गांव पहुंचे

शाहतलाई आ गए और एक वट वृक्ष के नीचे धूणी रमाई

बाबाजी को माना जाता है शुकदेव का अवतार

बाबाजी को माना जाता है शुकदेव का अवतार

बालकनाथ और रतनोमाई की कथा प्रसिद्ध है। बाबा जी घूमते-घूमते बिलासपुर के बच्छरेटू गांव पहुंचे। बच्छरेटू के बाद ये शाहतलाई आ गए और एक वट वृक्ष के नीचे धूणी रमाई। बाबा जी ने वहां रतनो माई से कहा कि वह साधना भी करेंगे और उसकी गाएं भी चराएंगे। रतनो जो रोटी और छाछ लाएगी उसे वह समय मिलने पर खा लिया करेंगे। वहां बारह वर्ष तक तप किया।

गुरू गोरखनाथ और बाबा बालकनाथ ने अपने-अपने चमत्कार दिखाए

गोरखनाथ ने अपने शिष्यों से कहा कि बालकनाथ के कान छेद कर इन्हें हमारा शिष्य बनाया जाए…

बारहवें वर्ष लोगों ने शिकायतें आरम्भ की, कि बाबा जी आंखें मूंदे सोये रहते हैं और गाएं खेतों को नुकसान कर रही हैं। इससे रतनो माई नाराज हुई और बालकनाथ को डांटा। जब खेत देखे गए तो कोई नुकसान नहीं था। बाबा जी ने वट वृक्ष के तने में चिमटा मारा तो बारह वर्ष से रखी रोटियां प्रकट हो गईं, धरती से छाछ का फुहारा फूटा। तभी वह स्थान शाहतलाई कहलाया। यहां से जाकर बाबा जी ने एक गरूना झाड़ी के नीचे तपस्या की। वहीं पर इनकी भेंट गोरखनाथ से हुई। यहां गुरू गोरखनाथ और बाबा बालकनाथ ने अपने-अपने चमत्कार दिखाए। अन्त में गोरखनाथ ने अपने शिष्यों से कहा कि बालकनाथ के कान छेद कर इन्हें हमारा शिष्य बनाया जाए। जब शिष्य कानों में छेद करते, वे तुरन्त भर जाते। अंतत: बाबा जी किलकारी मार कर चरणपादुका के स्थान पर जा पहुंचे। वहां से वे गुफा में चले गए।

दियोट के जलने के साथ ही यह स्थान दियोटसिद्ध कहलाया जाने लगा….

एक बार चकमोह गांव का एक ब्राह्मण बनारसी दास बाबा जी के पास गाय चराने आया और बाबा जी से आग्रह किया कि उसकी सभी गाएं औसर हैं, दूध नहीं देती। बाबा जी ने ब्राह्मण को चमत्कृत किया और कहा-मैं गुफा में लीन हो रहा हूं। तुम मेरा धूणा जगाए रखना और पूजा करने रहना। ब्राह्मण ने बाबा जी की गुफा के पास एक दियोट दीपक जलाना प्रारम्भ किया। इस दियोट के जलने के साथ ही यह स्थान दियोटसिद्ध कहलाया जाने लगा।

बाबा जी को पौणाहारी माना जाता है। इन्हें दूधाधारी, कलाधारी, धजाधारी भी कहा जाता है। महिलाएं बाबा जी की गुफा में नहीं जा सकती हैं। वे सामने से बाबा जी के दर्शन करती हैं।

बाबा जी को रोट जाता है चढ़ाया, वही बाबा जी का प्रसाद

बाबा का रोट ही प्रमुख भेंट

प्रत्येक रविवार को धूणे के पास होता है हवन

बाबा जी को रोट चढ़ाया जाता है। वही बाबा जी का प्रसाद है। यह रोट गेंहू के आटे में घी-गुड़ मिलाकर पकाया जाता है। बाबा का रोट ही प्रमुख भेंट है। प्रत्येक रविवार को धूणे के पास हवन होता है। मंदिर में बकरे चढ़ाने की परम्परा है। इन्हें काटा नहीं जाता, समय-समय पर नीलाम कर दिया जाता है।

शुभ कार्यों के समय बाबा जी का स्मरण आवश्यक.. अन्यथा बाबा का हो जाता है खोट

खोट प्रभाव को दूर करने के लिए बाबा जी को रोट सुखना आवश्यक 

बाबा बालक नाथ जी का मूल स्थल गुफा है जो प्राकृतिक है

यहां करोड़ों रुपयों का चढ़ावा चढ़ता है जो भक्तों की सुविधाओं पर लगातार होता है खर्च

बाबा जी का प्रभाव हर घर में बना हुआ है। शुभ कार्यों के समय बाबा जी का स्मरण आवश्यक है। अन्यथा बाबा का खोट हो जाता है जिसके प्रभाव को दूर करने के लिए बाबा जी को रोट सुखना आवश्यक है और शुभ समय पर इसे बाबा जी के मंदिर में चढ़ाया जाता है।

बताया जाता है कि जब बाबा जी ने गुफा के अंदर समाधि ली तो वहां एक दियोट (दीपक) जलता रहता था जिसकी रोशनी रात्रि में दूर-दूर तक जाती  थी इसलिए लोग बाबा जी को दियोट सिद्ध के नाम से भी जानते हैं। बाबा बालक नाथ जी का मूल स्थल गुफा है जो प्राकृतिक है। गुफा के पीछे पहाड़ी पर शिखर शैली का नया मंदिर बना है वहां भगवान शिव का मंदिर भी है। वर्तमान महंत श्री 1008 राजेंद्र गिरि जी मुख्य रूप से गद्दीनशीन हैं। यहां करोड़ों रुपयों का चढ़ावा चढ़ता है जो भक्तों की सुविधाओं के लिए लगातार खर्च किया जाता है।

हिमाचल सरकार द्वारा हिन्दु सार्वजनिक धार्मिक संस्थान तथा पूर्व विन्यास अधिनियम 1984 के अन्तर्गत जिन चौबीस मंदिरों को न्यासीकृत किया गया है उनमें श्री बाबा बालकनाथ दियोटसिद्ध की आय सबसे अधिक है। यह आय पांच करोड़ वार्षिक तक पहुंच गई है। हमीरपुर से पैंतालीस किलोमीटर और चण्डीगढ़ से एक सौ पच्चासी किलोमीटर की दूरी पर स्थित बाबा बालकनाथ मंदिर हमीरपुर जिला में आता है। दियोटसिद्ध से नीचे सरयाली खड्ड के साथ शाहतलाई जिला बिलासपुर में है। शाहतलाई से पांच किलोमीटर ऊपर पहाड़ी पर बाबा बालकनाथ की प्रसिद्ध गुफा है।

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