दिवाली का पौराणिक महत्व, पंच-पर्वों का त्यौहार: दीपावली
दिवाली का पौराणिक महत्व, पंच-पर्वों का त्यौहार: दीपावली
स्वामी रामतीर्थ, महर्षि दयानन्द सरस्वति, महावीर स्वामी व हर गोबिन्द सिंह
दिवाली के दिन ही पंजाब प्रांत में स्वामी रामतीर्थ नाम के महान संत का जन्म हुआ था और दिवाली के दिन ही स्वामी रामतीर्थ का महाप्रयाण हुआ था क्योंकि स्वामी रामतीर्थ ने दिवाली के दिन ही गंगातट पर स्नान करते समय ॐ शब्द का उच्चारण करते हुए जलसमाधि ले ली थी। इसी प्रकार से आर्य समाज की स्थापना करने वाले महर्षि दयानन्द सरस्वति ने भी भारतीय संस्कृति के महान जननायक बनकर दिपावली के दिन ही अजमेर के निकट महाप्रयाण किया था।
जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस भी दिपावली ही है।
जबकि सिक्खों के लिए भी दीवाली महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन ही अमृतसर में 1577 में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था।
मुगल कालीन दिपावली विषेशता
मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में दौलतखाने के सामने 40 गज ऊँचे बाँस पर एक बड़ा आकाशदीप दिपावली के दिन लटकाया जाता था। बादशाह जहाँगीर भी दिपावली धूमधाम से मनाते थे। मुगल वंश के अंतिम सम्राट बहादुर शाह जफर दिपावली को त्योहार के रूप में मनाते थे और इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों में वे भाग लेते थे। शाह आलम द्वितीय के समय में समूचे शाही महल को दीपों से सजाया जाता था एवं लालकिले में आयोजित कार्यक्रमों में हिन्दू-मुसलमान दोनों भाग लेते थे।
जैन धर्मानुसार दिपावली
दिवाली रंगोली
जैन धर्म में लक्ष्मी का अर्थ होता है निर्वाण और सरस्वती का अर्थ होता है कैवल्यज्ञान, इसलिए प्रातःकाल जैन मंदिरों में भगवान महावीर स्वामी का निर्वाण उत्सव मनाते समय भगवान की पूजा में लड्डू चढ़ाए जाते हैं।
भगवान महावीर को मोक्ष लक्ष्मी की प्राप्ति हुई और गौतम गणधर को कैवल्यज्ञान रूपी सरस्वती की प्राप्ति हुई, इसलिए जैन धर्म में इस दिन को लक्ष्मी-सरस्वती का पूजन दिवस के रूप में मनाया जाता है। लक्ष्मी पूजा के नाम पर रुपए-पैसों की पूजा, जैन धर्म में स्वीकृत नहीं है।
दिपावली पर लक्ष्मीजी का पूजन घरों में ही नहीं, दुकानों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों में भी किया जाता है। कर्मचारियों को पूजन के बाद मिठाई, बर्तन और रुपये आदि भी दिए जाते हैं। दिपावली पर कहीं-कहीं जुआ भी खेला जाता है जिसका प्रधान लक्ष्य वर्ष भर के भाग्य की परीक्षा करना होता है और इस संदर्भ में भी हिन्दुधर्म के शास्त्रों में एक पौराणिक कथा का उल्लेख मिलता है।
क्यों खेलते है जुआ दिवाली की रात्रि ?
सामान्यत: इस प्रथा के साथ भगवान शंकर तथा पार्वती के जुआ खेलने के प्रसंग को भी जोड़ा जाता है। माना जाता है कि देवी पार्वती और भगवान शिव ने दिपावाली की रात्रि को जुआ खेला था और देवी पार्वती ने छल से भगवान शिव को हरा दिया। उसके बाद देवी पार्वती ने कहा कि जो कोई भी दिपावली कि रात्रि जुआ खेलेगा और जीतेगा, उस पर पूरे साल लक्ष्मी की कृपा होगी। जबकि जो व्यक्ति दीपावली की रात्रि खेले गए जुआ में हार जाएगा, उसे पूरे वर्ष सावधानी पूर्वक ही रहना उचित होगा।
यदि दीपावली की रात्रि को जुआ खेलकर लोग इस बात का पता लगाते हैं कि आने वाला वर्ष धन-समृद्धि के संदर्भ में उनके लिए कैसा रहेगा। यदि वे जुए में जीत जाते हैं, तो ये इस बात का संकेत होता है कि आने वाला वर्ष उनके लिए धन-समृद्धि के लिहाज से काफी अच्छा होने वाला है। परिणामस्वरूप वे ज्यादा जोखिम वाले काम-धन्धे व्यापार आदि में बेझिझक आगे बढते हैं।
लेकिन यदि वे जुए में हार जाते हैं, तो ये इस बात का संकेत होता है कि आने वाला वर्ष उनके लिए धन-समृद्धि के लिहाज से ज्यादा अच्छा नहीं होने वाला है। परिणामस्वरूप आने वाले वर्ष में नए काम-धन्धे व्यापार आदि में जितना जरूरी हो, उतना जोखिम ही उठाना उनके लिए उपयुक्त रहेगा।
कैसे मनाते हैं दीपावली?
जहां तक धार्मिक दृष्टि का प्रश्न है, दीपावली पूरे दिन पूरे परिवार को व्रत रखना चाहिए और मध्यरात्रि में लक्ष्मी-पूजन के बाद ही भोजन करना चाहिए तथा महालक्ष्मी, गणेशजी और सरस्वतीजी का संयुक्त पूजन करना चाहिए । मान्यता है कि इस दिन प्रदोष काल में पूजन करके जो स्त्री-पुरुष भोजन करते हैं, उनके नेत्र वर्ष भर निर्मल रहते हैं।
ब्रह्म-वेला में सूप या थाली पीटना
दीपावली की रात्रि लक्ष्मी-पूजा आदि करने के बाद अन्त में सुबह के समय ब्रह्मबेला अर्थात प्रात:काल चार बजे स्त्रियां पूराने सूप में कूड़ा रखकर उसे दूर फेंकने के लिए ले जाती हैं तथा सूप बजाती हुई वापस घर आती है और लौटते समय कहती हैं कि-
आज से घर में लक्ष्मीजी का वास हो और दु:ख दरिद्रता का सर्वनाश हो।
फिर घर आकर स्त्रियां अपने पूजा स्थान पर जाती हैं और कहती हैं कि-
इस घर से दरिद्रता चली गई है। इसलिए हे लक्ष्मी जी… आप निर्भय होकर यहाँ निवास करिए।
इस कृत्य के संदर्भ में मान्यता ये है कि इससे कूडे-कचरे के रूप में घर में रहने वाली लक्ष्मी की बहन दरिद्रता दूर चली जाती है, तथा माता लक्ष्मी अभिवादन के साथ घर में प्रवेश करती हैं।
चूंकि वर्तमान समय में ज्यादातर घरों में सूप उपलब्ध नहीं होता क्योंकि अब घरों में इनकी जरूरत ही नहीं रह गई है। इसलिए अब ज्यादातर स्त्रियां सूप के स्थान पर चम्मच से थाली को पीटते हुए यही प्रक्रिया करती हैं व लक्ष्मीजी को अपने घर में रहने का आवाह्न करती हैं।