नवजात शिशु का स्नान करते वक्त रखें इन बातों का खास ख्याल...

नवजात शिशु का स्नान करते वक्त रखें इन बातों का खास ख्याल…

अधिकांश बच्चों को स्नान करने में बहुत आनंद आता है तो कुछ बच्चे स्नान करते हुए बहुत रोते हैं। वहीं अधिकतर बच्चे ऐसे भी होते हैं जो स्नान टब से बाहर निकलना पसन्द नहीं करते। स्नान प्रात: 10 बजे से पहले करा देना चाहिए। दूध पिलाने के बाद स्नान करना ठीक नहीं है। जन्म के कुछ सप्ताह बाद बच्चा स्नान में सुख अनुभव करता है। उसके लिए एक समय निश्चित कर दीजिए जब आप जल्दबाजी में न हों। अगर स्नान के बाद दूध पिया जाए, तो उसके बाद बच्चा गहरी नींद सो जाएगा।

  • प्रथम दिन का स्नान : जन्म के तत्काल बाद बच्चे को जैतून के तेल से मालिश कीजिए, ताकि उसकी त्वचा पर फैली हुई झिल्ली साफ हो जाए। उसके बाद साबुन घोलकर गर्म पानी से स्नान करा दें। तत्पश्चात दस दिन तक एक गीले तौलिए से शरीर पोंछकर साफ करते रहिए। नाभि का घाव सूख जाने पर ही स्नान कराएं। उसके बदन पर तौलिया न रगड़ें और उत्तम कोटि का साबुन ही प्रयोग में लाएं, क्योंकि बच्चे की त्वचा अत्यंत कोमल होती है।

    स्नान का पानी अधिक गर्म नहीं होना चाहिए

    स्नान का पानी अधिक गर्म नहीं होना चाहिए

स्नान का पानी अधिक गर्म नहीं होना चाहिए। 90 से 100 डिग्री फारेनहाइट तक गर्म होना चाहिए। अधिक गर्म पानी त्वचा को जला देगा। हाथों में साबुन का झाग बना लीजिए और उससे बच्चे के शरीर को धो दीजिए। कपड़े से रगडऩा हानिकारक है। नहाने के पश्चात नाभि को रूई या मुलायम कपड़ा रखकर सुखा लीजिए और उस भाग में कीटाणु नाशक पाउडर छिडक़ दें। अगर नाभि को स्वच्छ व सूखा रखा जाए तो किसी दवा की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

तेल स्नान : भारतीय घरों में नवजात शिशु को तेल की मालिश आवश्यक मानी जाती है। यह उसके लिए बड़ी लाभदायक है। तेल मालिश के बाद गर्म पानी से स्नान करवा दें ताकि तेल व मैल घुल जाए। अनेक भारतीय घरों में तौलिया, टब, पाउडर व साबुन नहीं होता, परन्तु इतना ध्यान रहे कि प्रयोग की जाने वाली प्रत्येक वस्तु स्वच्छ हो। बच्चों के स्नान का भारतीय ढंग अति उत्तम है। माता अपनी दोनों टांगों को फैलाकर बच्चे को उसमें बैठा देती है और नहलाती है। एक गर्म पानी की बाल्टी, एक तेल की बोतल रख देती है। इस प्रकार सभी वर्ग की महिलाएं अपने बच्चों को प्रतिदिन नहलाती हैं। प्रतिदिन स्नान कराना हमारे देश की परम्परा है। इसके लिए माताओं को कुछ प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, ताकि वे बच्चे की नाक, आंख व कान में तेल न डालें।

  • कभी-कभी स्वच्छ तेल की कुछ बूंदें कान में डालनी चाहिए, ताकि कान का मैल पिघल सके।
  • नाभि में तब तक तेल लगाना उचित नहीं, जब तक घाव सूख न जाए। उसे कपड़े अथवा रूई से सुखाकर पाउडर का प्रयोग करें।
  • शरीर में तेल की मालिश करने से उसकी उष्णता बनी रहेगी, परन्तु गर्मियों में यह बच्चे को अरूचिकर लग सकता है। स्नान के पश्चात बच्चे के शरीर में तेल की मालिश न करें। उसे गर्म कपड़े पहनाना पर्याप्त है, परन्तु त्वचा को छूने वाले कपड़े सूती होने चाहिए।

कान : बच्चे के कानों के प्रति विशेष सावधानी होनी चाहिए। परम्परागत तरीके न केवल गलत है, वरन् खतरनाक भी हैं। कान में पानी नहीं जाना चाहिए। तौलिए के कोने से कान के बाहरी भाग को सुखा लीजिए। तौलिए को कान के अन्दर न डालें।

आंखें : आंखों में सुरमा अथवा काजल लगाना अनावश्यक है। सुरमा या काजल आंखों को हानि पहुंचा सकते हैं। आंखों से बहने वाले आंसू उन्हें समय-समय पर धोते रहते हैं।

मुंह : मुंह के लिए विशेष सावधानी की आवश्यकता है। बहुत गर्म पानी भी बच्चे के मुंह में न डाले।

 

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