अंबिका/पालमपुर : वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (सी.एस.आई.आर.) का स्थापना दिवस समारोह इस परिषद की हिमाचल प्रदेश में स्थित राष्ट्रीय प्रयोगशाला सीएसआईआर-हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान, पालमपुर में आज बडे़ हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। संस्थान ने इस दिवस को जनदिवस के रुप में मनाया जिसमें आम जन, किसान, बागवान, उद्यमियों ने संस्थान की शोध एवं विकास गतिविधियों एवं उपलब्धियों के बारे में जानकारी प्राप्त की।
26 सितम्बर सन् 1942 के ऐतिहासिक दिन को विश्व की सबसे बड़ी परिषद की स्थापना हुई थी। पूरे भारत में इस संस्था की 38 राष्ट्रीय प्रयोगशाला हैं जिसमें लगभग 11400 वैज्ञानिक, तकनीकी एवं अन्य कार्मिक कार्य कर रहे हैं। परिषद के इस संस्थान सीएसआईआर-हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान, पालमपुर का लक्ष्य सामाजिक, औद्योगिक तथा पर्यावरणीय लाभ हेतु हिमालयी जैवसंपदा सतत उपयोग द्वारा जैवआर्थिकी को उन्नत करने के लिए प्रौद्यागिकी विकसित करना है।
समारोह में पदमश्री डॉ. वी प्रकाश, पूर्व निदेशक, सीएसआईआर- केन्द्रीय खाद्य प्रौद्योगिक अनुसंधान संस्थान, मैसूर (सीएफटीआरआई) ने ”परम्परा और विज्ञान के माध्यम से आरोग्य एवं स्वास्थ्यः खेत एवं परम्परा” विषय पर स्थापना दिवस संभाषण दिया। अपने संभाषण में उन्होंने आधुनिक जीवनशैली और हमारे खान-पान के विभिन्न पहलुओं के बारे में समझाया कि आधुनिक भोजन पोषक नहीं रह गया है जिसके कारण बहुत सी स्वास्थय संबन्धी समस्याएं हो रही हैं। इन सारी समस्याओं का हल हमारी प्रकृति में ही है आवश्यकता है तो केवल उसके उपयोग की जिस हम भूल चुके हैं। आज फिर से समय आ गया है कि इस परम्परागत ज्ञान का सहेजे ताकि अगली पीढ़ी इसका लाभ उठा सके। अन्यथा पोषक भोजन से हम दूर होते जाएगें और कई प्रकार के रोगों के शिकार हो जाएगें। उन्होंने बताया कि हम परम्परा से प्राप्त पौधों के औषधीय गुणों के ज्ञान को भूलते जा रहे हैं। अतः आवश्यकता इस बात की है कि आधुनिक उपायों के साथ-साथ हम परम्परागत खाद्य का मूल्यवर्धन करके इस ज्ञान को संरक्षित करने की दिशा में आगे बढ़े।
संस्थान के निदेशक डा. संजय कुमार ने आये हुए अतिथियों का स्वागत किया तथा प्रमुख प्रयोगशालाओं की प्रमुख गतिविधियों एवं उपलब्धियों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया। अपने संबोधन में उन्होंने संस्थान की परिकल्पणा जैवआर्थिकी के उन्नयन हेतु प्रौद्योगिकीय उद्भवता एवं विकास में हिमालयी जैवसंपदा के संपोषणीय उपयोग द्वारा विश्व स्तर पर अग्रणी होने के संकल्प को दोहराया। इसमें प्रौद्योगिकी, जैवआर्थिकी और जैवसंपदा तीन महत्वपूर्ण पहलु हैं। संस्थान ने प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सुपरॉक्साइड डिस्म्यूटेज, एल -एस्पराजिनेस जैसी प्रौद्योगिकियां विकसित करके उद्योगों को दी। संस्थान अरोमा मिशन के अन्तर्गत जंगदी गेंदा की फसल एवं तेल तथा पुष्प फसलों के द्वारा जैवआर्थिकी को बढ़ाने तथा पिक्रोराइजा और अन्य पौधों को उनके प्राकृतिक परिवेश में पुनः स्थापित करने जैवसंपदा संरक्षण की दिशा में योगदान कर रहा है। विटामिन की कमी को पूरा करने के लिए शिटाके मशरुम के केप्सूल तैयार किए गए हैं। हींग की खेती को प्रथम बार भारत में शुरु किया गया है। मधुमेह रोगियों के जीवन में मिठास लाने के लिए मोंक फ्रूट व स्टीविया का प्राकृतिक विकल्प उपलब्ध कराया है। केसर की खेती के क्षेत्र में भी सफलता प्राप्त हुई है।
इस अवसर पर संस्थान की प्रौद्योगिकी को अपनाने के लिए संस्थान के इनक्यूबेटी उदय सिंह, साई फूड, बैजनाथ के राजेश शर्मा तथा एग्रीनेचुरल इंडिया के रवि शर्मा एवं टीम सदस्यों को प्रौद्योगिकी ग्रहण पुरस्कार के साथ सम्ममानित किया गया।
इस अवसर पर विपिन कुमार, थमन बहादुर, प्रवीण कुमार, राजेन्द्र कुमार, पूजा अवस्थी, मनोज कुमार, राकेश चन्द, कुलदीप सिंह, जसबीर सिंह एवं राकेश वर्मा को संस्थान के सर्वश्रेष्ठ कर्मचारियों के रूप में सम्मानित किया गया। संस्थान की सेवा के 25 वर्ष पूरा करने वाले तथा सेवानिवृत हुए कर्मचारियों को भी सम्मानित किया गया। स्थापना दिवस के उपलक्ष में संस्थान के स्टाफ के बच्चों के लिए आयोजित पेंटिंग, निबन्ध एवं प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता के विजेताओं को भी पुरस्कत किया किया।